Adhuri Chaah in Hindi Short Stories by Alagat books and stories PDF | अधूरी चाह

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अधूरी चाह

ये बात तब शुरू हुई जब मेरा जन्म दिन था। वैसे तो में जन्म दिन मनाता नहीं पर ऑफिस में सबको पता चल गया था की इस ही 28 जून के दिन को मैने इस धरती पर मनुष्य अवतार में जन्म लिया था। अब जब सबको पता चल ही गया था तो चॉकलेट तो देनी ही पड़ेगी। मैने भी सोच लिया और डेरी मिल्क की चॉकलेट ले ली (वैसे ज्यादा मात्रा में यही चॉकलेट उपलब्ध थी)। फिर क्या जैसे हर बार होता वैसे ही जिसका जन्म दिन है वो सब को चॉकलेट देने जाता है, वैसे तो ऑफिस में बहुत से कमरे हैं पर उनमें से सिर्फ दौ ही मेरे लिए है, एक जिसमें में और कुछ ओर लोग (यानी दोस्त) बैठते हैं,दूसरा जिसमें दूसरे दोस्त बैठते है।

अब अपने कमरे मे तो चॉकलेट बाट दी मैने, अभी दूसरे कमरे में जाना था अकेले जाने की तो इच्छा नहीं थी पर कोई साथ नहीं आया तो अकेले ही जाना पड़ा मुझे। में कमरे के बाहर निकला कि मुझे याद आया हमारी नीचे वाले कमरे मे जो सर हे उनको भी चॉकलेट तो देनी चाहिए (वे दोनों सर बड़े अच्छे और मिलनसार हैं), फिर क्या था पहले में नीचे गया फिर में दूसरे कमरे मे गया।

दूसरे कमरे मे चॉकलेट दे रहा तब, एक दोस्त ने कहा :

दोस्त, "भाई हम जब चाय पी रहे थे तब तो तूने बताया नहीं की आज तेरा जन्म दिन है !"

मैं (शरारती हंसी के साथ), "अरे भाई, मुझे पता नहीं था न की मुझे आज चॉकलेट देनी पड़ेगी वरना बता ही देता तुझे।"

दोस्त, "ये भी सही है।"

अब एक ओर से लड़कों को चॉकलेट देते हुए आगे जा रहा था और सभी के विश करने पर धन्यवाद भी बोल रहा था। बीच में कुछ लड़कियां भी थी उनको भी चॉकलेट दी ओर आगे चला गया, बीच मे लगा की शायद एक लड़की हाथ मिलाकर जन्म दिन की शुभेच्छा देना चाहती थी। वैसे शायद ये मेरा शायद ही होगा क्यूंकि, कोई लड़की मुझे शुभेच्छा दे ओर वो भी हाथ मिलाकर, ये हो ही नहीं सकता। खैर अब इस कमरे मे भी चॉकलेट दे दी थी, फिर भी मेरे पास बहुतसी बच गई थी।

अब कमरे से निकल कर में लॉबी से अपने कमरे की ओर जा रहा था कि हमारे पास के सामने वाले कमरे से एक लड़की निकली, मैने एक पल उसे देखा उसने भी देखा ओर आगे जाने लगी। मैने इस वक्त ज्यादा कुछ भी नहीं सोचा, ओर उसके पास जाकर उसे भी एक चॉकलेट दे दी और कहा आज मेरा जन्म दिन है। उसने चॉकलेट तो ले ली और कुछ कहा भी था पर पहली बार किसी अनजान लड़की को यूं चॉकलेट दी थी, तो वह क्या कह रही थी मेरा ध्यान ही नहीं रहा। में अपने कमरे आकर बैठ गया मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था और बीच बीच मे मुझे गाली भी दे रहा था कि ऐसे थोड़ी न अचानक इतनी सुंदर, मनमोहक, रूपवती, अप्सरा जैसी लड़की से सीधे बात कर सकते हो।

वैसे तो में भी यही सोच मे था, कि मैने कैसे उसे चॉकलेट दे दी। वैसे मुझे इस बात पर भी कुछ हद तक यकीन है की उसने वह चॉकलेट खोली तक नहीं होगी, और किसी ओर को ही दे दी होगी। अब जब मुझे यह पता है में कैसा हु तो में कोई गलतफहमी नहीं पालना चाहता था, फिर भी न जाने क्यों यह दिल उसे फिर से देखने की चाहत करने लगा था। अब जब भी मौका मिलता में उसे ढूंढने और देखने लगा था, कभी वह दिखते तो कभी नहीं। मैं उनसे मिलना चाहता था पर हिम्मत ही नहीं हुई, जब भी वह सामने आते एक नज़र भर देख नजरें फेर लेता हूं मैं।

शायद अब उन्हें भी भनक लग गई थी, की मैं उन्हें घूर (शायद लड़कियों के दिमाग में पहला शब्द यही आता होगा) रहा हूं। होती भी कैसे नहीं में ऑफिस से कुछ दूर जाकर खड़ा रहता था, वैसे तो इस जगह में पहले भी बहुत बार खड़ा रहता था। क्यूंकि मुझे घर जाने से पहले फ़ोन कर के पूछना होता था, कि आज क्या लाना और क्या नहीं। पर शायद वह समझने लगें कि में उन पर लाइन मार रहा हूं, वैसे यह बात सही है कि वह इतने सुन्दर, सुशील, रूपवती, मनमोहनी, अप्सरा लगती हैं कि कोई भी पहली नजर में उनके वश मे हो जाए। तो में अगर ये कहूँ की वो मुझे पसंद नहीं तो यह तो सरासर गलत–झूठ ही होगा, पर हाँ इसका यह मतलब भी तो नहीं कि मुझे महोब्बत है।

कुछ दिन तो इसी तरह निकले पर कुछ दिन से ऐसा लगता था, की मेरा उनको यूँह देखना उन्हें पसंद नहीं। जब भी वह मुझे दिखते पता नहीं उनका मुंह उतरा हुआ नजर आता, मुझे डर था कि कही मेरे ही कारण तो वह उदास तो नहीं है। फिर शाम ऑफिस से निकलने के बाद मैं वहीं अपनी जगह पर खड़े होकर शायरी लिख रहा था, समय बीतता चला गया पर वह नहीं आए। मैने वापस जाकर देखा अंदर तो अब ज्यादा कोई बचे ही नहीं, फिर अगले दिन भी वह नहीं आए इस बार मैने ज्यादा समय नहीं जाने दिया और वापस लौटा। में देख के दंग रह गया, वो अपनी किसी सहेली के वाहन पर बैठकर दूसरी तरफ के रास्ते से जा रहे थे। 

मैं वहां से चला गया, पर पूरे रास्ते बस यही सोच रहा था कि क्या उन्होंने मेरे ही कारण अपना रास्ता तक बदल दिया होगा ?। अब दौ दिन शायद वह इस रास्ते से नहीं जा रहे थे, खैर एक दिन दुपहर का समय था ओर मैं भी दुपहर में ऑफिस आया था। वह मुझे भोजनालय से निकलते हुए मिले जब में वहां कुछ लेने गया था, वह अपनी सहेलियों के साथ थे ओर मेरे पास से जाते हुए उन्होंने अपनी सहेली से कहा, "एक उंगली दो तो लोग पूरा हाथ पकड़ने आते हैं।"

सच मानो यार उनकी बात, उनकी आवाज और उनका ये तेवर दिल के आरपार हो गया। अब फिर में उन्होंने ढूंढने और देखने लगा था, पर अब लगता था कि उनको में पसंद नहीं। खैर यह बात तो मुझे पहले भी पता थी कि वो मुझे पसंद नहीं करेंगे, इसीलिए तो मैने कभी उनसे यह तक नहीं कहा कि वो अब मुझे बहुत पसंद है। हां, मुझे एक बात पता है कि किसी को खुश करना और खुश रखने मे क्या फर्क है। इसलिए में उनके पीछे ज्यादा पढ़ना नहीं चाहता, पर क्या करूं उन्हें देख मुझे नई शायरी और मेरे रेजिन के व्यवसाय के लिए नए विचार आते हैं। अगर मेरे शब्दों मे कहूँ तो वह मेरे लिए प्रेरणा, उमंग, उत्साह हैं और यह बात मैं उनसे कह नहीं पाता।

सोचा है उन्हें बता दूं, पर डरता भी हूं कि कहीं वह नाराज न हो जाए। एक बार हिम्मत की भी थी पर इस बार वह अपनी दौ ओर सहेलियों के साथ थी, पर इस बार में पैदल था तो उनके आगे आगे निकल पड़ा। मुझे सबके सामने बात नहीं करनी थी, तो में आगे निकल गया। वह अपनी सहेलियों के साथ पीछे आ रही थीं, में वहां से मुड़कर दूसरी तरफ रास्ते पर आ गया था। वह लोग भी उस छोड़ पर आ गए थे, उन्हें देख लग रहा था कि जरूर किसी मजेदार किस्से पर बात हो रही होगी। दिल डर भी रहा था कि कहीं वह मजेदार किस्सा, में तो नहीं!

उनकी दौ सहेली मेरी ओर आ रही थीं और वह तो चली गई अपने रास्ते, मैने सोचा शायद उनकी सहेली मुझे कुछ कहेगी मगर नहीं वह तो मेरे पास से होकर आगे रास्ता पार कर चली गई।

अब दूसरी बार वो अपनी दूसरी दौ सहेलियों के साथ मेरे पास से जा रहे थे, इस बार में अपने बाइक के साथ उसी अपनी जगह पर खड़ा था। वह लोग मेरे पास रुके और अपने फोन पर कुछ करने लगे, शायद तस्वीर ले रहे थे। फिर वो लोग मुस्कुराते बाते करते चले गए, मुझे लगा शायद मुझसे कुछ कहना हो उनको पर इस बात का कोई सबूत नहीं मेरे पास। अब पता नहीं जब भी वह नज़र आते, मुझे देख उनका चेहरा फिर उतर जाता था। 


(दूसरे दिन ऑफिस जाते समय)

आज तो मैने ठान ही लिया था कि, उससे बात कर के ही रहूंगा। इसीलिए आज मैं अपनी बहन के साथ आधे रास्ते तक ऑफिस गया था, वहां से आगे मैं पैदल ही चल पड़ा था। अब मैं उसके इलाके के नजदीक जा रहा था, दिल में पता नहीं बेचैनी हो रही थी या गुदगुदी पर बड़ा अच्छा भी लग रहा था और साथ में डर भी लग रहा था। फिर भी मैं आगे बढ़ता चला गया, उसके इलाके से कुछ आगे जा कर में रुका शायद वो मिल जाए इस उम्मीद में। खैर वो तो कहीं दिखी नहीं तो मैने सोचा आगे खानपान की जगह है वही ठहर जाता हूं, वहां कुछ देर रुककर देखा पर वह नहीं आई और अब ऑफिस का समय भी हो रहा था।

मुझे लगा कि वह आज जल्दी चली गई होगी, वैसे भी यहां रुके हुए समय हो रहा था और ऑफिस की दूसरी लड़कियां भी दिख रही थी। तो मुझे लगा यहां से पलायन करना ही उचित होगा, मैं वहां से निकल तो गया पर ध्यान उसी ओर था।

वहां से आगे निकला और धीरे धीरे ऑफिस की तरफ जाने लगा था, पर फिर भी बार बार पीछे देख रहा था, की शायद वह मिल जाए। किन्तु वह नज़र ही नहीं आ रही थी, खैर आदत हो गई थी बार बार मुड़ने की तो एक बार ओर देख लिया। इस बार वह दिख गई, दिल सोच मे था खुश हो या सदमे मे चला जाए। में उसे देख रहा था वह काले रंग का दुपट्टा सर पे डाले हुए, गुलाबी फूलों वाली सफेद टॉप ओर काले रंग की पेंट पहने हुए जल्दी से मुस्कुराते हुए अपनी सहेली के साथ ऑफिस मे जा रही थी।

शायद उसने मुझे देखा था, पर पता नहीं क्यू वो इतनी जल्दी में जा रही थी, और उसे देख ऐसा लग रहा था कि आज तो वह कही दूर से, किसी वाहन पे सवार होकर आई हो। अब जो भी हो वह मुझे नजर तो आ गई थी, पर मैं उसके पीछे पीछे ऑफिस मे भाग कर नहीं जा सकता था। पर फिर भी हिम्मत कर मैं सीढ़ी में कुछ हद तक उसके पीछे चला तो गया था, ओर फिर एक शायद की उसने मुझे देखा होगा।

अब मैं अपना अंगूठा छापने चला गया, मुझे यकीन था कि मैं अपने कमरे में बैग रखकर बाहर निकलूंगा तो वह मुझे दिखेगी। मगर वह नहीं दिखी, पर मैं भी कहा हार मानने वाला था। मुझे जब भी मौका मिलता तो बाहर लॉबी मे चला जाता ओर आते जाते उसके कमरे मे उसे देख लेता था, वह अपने काम मे उलझीसी थी। मन तो करता था कि उसकी कुछ सहाय करदू, पर क्या करूं वह तो पहले से ही होशियार है और मैं... खैर अब अपनी क्या तारीफ करूं।

वो सुबह की पहली किरण,
में शाम का पहला चराग़।

वो सुबह की ताजगी,
में शाम का आलस।

अब ऑफिस मे बार बार मौका ढूंढ रहा था, पर जब जाता वह नहीं मिलती थी। अब मेरी आखिरी उम्मीद ऑफिस से छुटने की थी और आखिर वह समय भी आ गया। मैं ऑफिस से निकल कर उसके पीछे गया, बात करनी थी उससे पर वो तो अपनी सहेली के साथ चले ही जा रही थी, किसी भी जगह रुकी ही नहीं रही थीं।

एक बार मैने उसे गर्ल्स हॉस्टल के रास्ते पर जाते हुए देखा था तो मैं भी उसके पीछे चला गया, पर इस बार वो उस मोड पर पहुंचे उससे पहले ही मूड गई थी। मुझे लगा कि कही उसने मुझे देख तो नहीं लिया, एक बार तो मैने सोचा वापस लौट जाता हूं, पर फिर सारी बात भुला कर मैं वापस उसके पीछे चलने लगा, वो मेरे बहुत आगे थी फिर भी डर था कि वो देख न ले मुझे। मैं उसके पीछे पीछे उनके हॉस्टल की जगह से बाहर निकल गया और वह अब भी चली ही जा रही थी।

मुझे लगता था कि अब तो जरूर उसने मुझे देख ही लिया था, वरना उनका गर्ल्स हॉस्टल तो बहुत पीछे रह गया था और वो अब भी चली जा रही थी। अब हमारे बीच दूरी ज्यादा आ गई थी, तभी मुझे घर से फ़ोन आया जैसे ही उससे मेरी नजर हटी कि वो गायब हो गई। अब मैं उनको ढूंढ रहा हूं पर पता नहीं कहा चली गई वो।

मुझे लगता है वह गर्ल्स हॉस्टल में रहती हैं पर हो सकता है कि वह अपने माता पिता के साथ उस जगह पर ही कही रहती हो, अब मैं हार तो मानना नहीं चाहता था तो मैने लड़कों के हॉस्टल का पता पूछने लगा और आगे बढ़ता रहा कि शायद कही पर वह नज़र आ जाए। लेकिन लगता है ऊपर बैठे मुरलीधर को मेरा उसके पीछे जाना पसंद नहीं, वो मुझे मिल ही नहीं रही थी और घर जाने का समय भी हो गया था।

फिर मैने अपनी खोजें यहीं पर रोक दी, क्यूंकि अब आगे की खोज दो दिन बाद होगी यानी सोमवार को, जब वह ऑफिस आयेगी और मैं फिर उसका पीछा करूंगा।

मोहब्बत तो नहीं थी मुझे भी,
फिर भी एक जुड़ाव सा था।

न जाने क्या बात थी उनमें जो,
अपनी ओर खींचा करती थी।

पिछले 48 घंटों से उसे देखा नहीं मैने, मुझे लगा कि शायद मैने उस दिन निकलते समय उसे देख कर भी पलटा नहीं, वो मेरी सबसे बड़ी गलती थी। अगर उस दिन भी में उसके पीछे चला जाता तो अच्छा होता, पर अब क्या करे अब तो वह नज़र भी नहीं आती। सुने ने में आया है कि उनकी बेंच का समय पूरा हो गया है और वो लोग यहां से चले गए हैं, अब बिना नाम पता कैसे ढूंढू उनको मैं। 

अब तो बस दिल में एक ही अधूरी चाह रह गई थी, कि अगर हिम्मत कर उनसे बात कर लेता तो अच्छा होता। मुझे तो उससे बात करनी थी, मुलाकात करनी थी और उसे जो गलतफहमी थी वह दूर करनी थी। मुझे नहीं पता था कि मेरी कहानी ऐसे ख़त्म होगी, खैर अब क्या करे जब कोई उम्मीद ही न बची हो।

टूटे हुए ग्लास में हमने,
टूटी हुई आरजू छुपाई।

जो आंखों से छलक गए थे,
उनको बारिश में धो दिए थे।

मोहब्बत न थी मान लिया मैने,
पर जो जुड़ाव था वो भूले नहीं।