यह कहानी उस खूबसूरत एहसास की है, जब दो लोग बिना जाने एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। यह कहानी दो लोगों की अनोखे प्यार की है, जो बिना मिले एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं और असल ज़िन्दगी में मिलने की चाहत रखते हैं
आकाश मेहता और शिवानी शर्मा—दोनों ही साधारण इंसान थे, लेकिन उनकी आदतें, शौक, और ख्वाब उन्हें सबसे अलग बनाते थे। उनका सबसे बड़ा शौक था अपनी जिंदगी को लिखना। दोनों को अपनी-अपनी डेयरी में हर दिन की घटनाएँ, अपने जज़्बात, और ख्वाहिशें दर्ज करने की आदत थी। जब शब्दों में ढलकर उनके विचार पन्नों पर उतरते, तब उन्हें लगता कि मानो उन्होंने अपनी जिंदगी का एक हिस्सा कैद कर लिया हो।
आकाश, एक इंट्रोवर्ट और शांत स्वभाव का लड़का, जिसने हमेशा अपने भावनाओं को किताबों और अपने पन्नों में ढालकर जिया था। वो अपने दोस्तों के साथ समय जरूर बिताता था, लेकिन उसकी असली दुनिया उसके शब्दों में बसी थी। उसकी माँ अक्सर कहती,
"आकाश, किसी दिन तुम्हारी ये किताबें बोलने लगेंगी, तब समझोगे कि असल जिंदगी क्या है।"
दूसरी तरफ, शिवानी एक चुलबुली और जिंदादिल लड़की थी, जिसकी हर एक बात में जोश और उत्साह झलकता था। हालांकि, उसकी हंसी के पीछे भी गहराई थी। उसे अपनी ज़िंदगी की छोटी-बड़ी बातें अपनी डेयरी में उतारने का शौक था। शिवानी का मानना था कि कोई उसकी
डेयरी पढ़े तो उसे पूरी तरह से समझ सकता है, क्योंकि उसकी असली पहचान वही थी।
कहानी की शुरुआत होती है एक साधारण सी शाम से, जब आकाश और शिवानी इत्तेफाक से एक ही रेस्टोरेंट में पहुँचे। आकाश ने नीले रंग की शर्ट पहनी थी, उसकी कलाई में एक सादा काला ब्रेसलेट था, और चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान। वो एक किताब हाथ में लिए हुए अपने टेबल पर बैठा हुआ था, उसकी नजरें किताब में थीं, पर दिमाग कहीं और।
वहीं दूसरी तरफ, शिवानी सफेद कुर्ती और नीले दुपट्टे में आई थी। उसके हाथ में उसकी प्यारी डेयरी थी, जिसे वह कभी अपने से दूर नहीं रखती थी। रेस्टोरेंट में घुसते ही उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई, और अपनी मनपसंद टेबल पर बैठ गई। उसे अक्सर यहाँ आना पसंद था, क्योंकि यहाँ उसे एक खास शांति मिलती थी, और अपने विचारों को सहेजने का समय।
दोनों एक-दूसरे से अंजान, अपनी-अपनी दुनिया में मग्न थे। लेकिन किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। जब दोनों अपनी सीट से उठे, अचानक से उनकी टकर हो गई। दोनों की डेयरियाँ एक साथ नीचे गिर गईं, और दोनों झुके उन्हें उठाने के लिए। आकाश ने तुरंत सॉरी कहा, और बिना ज्यादा देखे अपनी डेयरी उठाई, जबकि शिवानी ने भी जल्दी में अपनी उठाई और दोनों अपने-अपने रास्ते चले गए।
रात का समय था। आकाश अपने कमरे में बैठा था, जब उसने सोचा कि अपनी दिनभर की बातें अपनी डेयरी में दर्ज कर ले। उसने डेयरी खोली, लेकिन उसके पहले पन्ने पर कुछ अजीब लिखा था—ये उसकी लिखाई नहीं थी। थोड़ी देर में उसे एहसास हुआ कि ये डेयरी उसकी नहीं, बल्कि किसी और की थी।
वहीं दूसरी तरफ, शिवानी ने भी अपनी डेयरी खोली, और उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। ये उसकी डेयरी नहीं थी। उसमें किसी आकाश मेहता का नाम लिखा हुआ था, और उसके विचार दर्ज थे।
दोनों ने उत्सुकता में एक-दूसरे की डेयरी पढ़ना शुरू किया। आकाश को शिवानी की डेयरी में उसका मासूमियत भरा नजरिया मिला। हर छोटी बात पर उसके दिल की बातों को पढ़कर वह मुस्कुराया। शिवानी ने अपने पन्नों में अपने जीवन की छोटी-छोटी बातें लिखी थीं जैसे कि कैसे उसे बारिश पसंद थी, कैसे वो अपने परिवार से बेहद प्यार करती थी, और कैसे उसकी छोटी खुशियाँ उसे खुशी देती थीं।
दूसरी तरफ, शिवानी ने आकाश की डेयरी में उसकी गहराई को महसूस किया। उसने पढ़ा कि आकाश एक शांत स्वभाव का इंसान था, जिसे तन्हाई से कोई परेशानी नहीं थी। उसने अपने दिल के कोनों में छुपाए हुए सपनों और संघर्षों के बारे में लिखा था। उसने अपने दोस्तों के साथ बिताए हुए पलों को, परिवार के साथ उसके रिश्तों को, और उसकी ज़िंदगी में आई उतार-चढ़ावों को बेहद संजीदगी से उकेरा था।
एक लाइन ने शिवानी को सबसे ज्यादा छू लिया था: "क्या कभी किसी अजनबी से प्यार हो सकता है?"
शिवानी ने सोचते हुए अपनी मुस्कान दबा ली। आकाश की डेयरी में लिखा ये सवाल उसके दिल के करीब आ गया था। उसे लगने लगा कि कहीं आकाश ने ये सवाल सिर्फ यूं ही नहीं लिखा था शायद इसके पीछे उसकी जिंदगी का कोई छिपा हुआ कोना था। और सच कहें तो, इस वक्त शिवानी भी खुद से यही सवाल पूछ रही थी।
आकाश ने अपनी डेयरी में यह लाइन "क्या कभी किसी अजनबी से प्यार हो सकता है?" लिखी थी, वो उसके जीवन के उस खालीपन और अजीब सी उम्मीद का हिस्सा थी, जो उसे महसूस होती थी। वह अपने जीवन में एक साथी की कमी महसूस कर रहा था, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो साथी कौन हो सकता है।
आकाश ने वो लाइन तब लिखी थी, जब वह अक्सर सोचता था कि क्या उसके लिए भी कहीं कोई है, जिसे वह समझ सके और जो उसे समझ सके—शायद कोई अजनबी, जिसे वो जानता नहीं था, लेकिन उसके ख्यालों में कहीं छिपा हुआ था। ये सवाल उसकी उम्मीदों का प्रतीक था, कि कहीं किसी कोने में कोई ऐसा है जो उसके दिल की गहराई को समझ सकेगा।
लेकिन, जब उसने शिवानी की डेयरी पढ़ी, तो उसे धीरे-धीरे एहसास हुआ कि वही अजनबी शायद शिवानी थी। उसे लगने लगा कि उसकी डेयरी में लिखी बातें, उसकी सोच और उसकी मासूमियत वही है जो वो हमेशा से ढूंढ रहा था। उसी वक्त आकाश ने महसूस किया कि उसका सवाल अब महज सवाल नहीं था, बल्कि उसका जवाब खुद शिवानी की रूप में उसके सामने था।
यही वजह थी कि जब दोनों की डेयरियाँ बदलीं और उन्होंने एक-दूसरे के बारे में पढ़ा, तो आकाश को यकीन होने लगा कि उस अजनबी के लिए जो प्यार उसके दिल में था, वो शिवानी ही है।
एक हफ्ते तक दोनों ने एक-दूसरे की पूरी डेयरी पढ़ी आकाश को शिवानी की हंसी, उसकी मासूमियत, और उसकी जिंदगी के छोटे-छोटे पहलू बेहद आकर्षक लगे उसने पाया कि वो लड़की उसकी सोच से कितनी अलग थी, और फिर भी दोनों के ख्यालों में अजीब सी समानता थी।
शिवानी भी आकाश की संवेदनशीलता और गहराई से प्रभावित थी। उसने महसूस किया कि आकाश की लिखी बातें उसे अपनी ओर खींच रही थीं। उसकी शब्दों में इतनी सादगी और सच्चाई थी कि वो खुद को उससे जुड़ा महसूस करने लगी थी।
दोनों ही एक-दूसरे के बारे में जानने के लिए और बेकरार हो गए थे। उनकी डेयरियाँ अब महज लिखावट नहीं थीं, बल्कि उनके दिलों की कहानियाँ थीं, जो धीरे-धीरे खुल रही थीं।
एक साल बीत चुका था वो हादसा को। आकाश और शिवानी दोनों ने तय किया कि अब उन्हें फिर से मिलना होगा और उन्हें एक दूसरे की डेयरी भी लौटाना होगा। तो दोनों उसी रेस्टोरेंट में आगाए, जहाँ उनकी पहली मुलाकात हुई थी। दोनों के दिलों में हल्की घबराहट और उत्सुकता थी।
शिवानी ने आज गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी, और हल्का सा मेकअप किया था। वहीं, आकाश ने सफेद शर्ट और काले ट्राउज़र पहने थे। दोनों अपनी-अपनी सीट पर बैठे, दरवाजे की ओर देखते रहे, मानो इंतजार कर रहे हों कि कब कोई आएगा और उनके दिल की धड़कनें तेज़ होंगी।
कई घंटे बीत गए, और जब दोनों उठे, तो फिर से दरवाजे के पास उनकी टकर हो गई। इस बार, उन्होंने एक-दूसरे को देखा और मुस्कुराए। कोई जल्दबाजी नहीं थी, कोई अजीबोगरीब हालात नहीं थे।
आकाश ने हंसते हुए कहा, "लगता है हमारी मुलाकातों की किस्मत ही टकराने में है।" शिवानी भी मुस्कुरा दी, "शायद इसी बहाने हम एक-दूसरे को जान पाएं।"
अब उनकी मुलाकातें रोज़ होने लगीं। वो रोज़ उसी रेस्टोरेंट में मिलते, एक-दूसरे की बातें करते, हँसते, और धीरे-धीरे उनके दिलों में प्यार गहराने लगा। लेकिन इकरार अभी बाकी था।
एक दिन, आकाश ने शिवानी को प्रपोज़ करने का फैसला किया। उसने वो पन्ना निकाला, जिसे उसने शिवानी की डेयरी में पढ़ा था, जिसमें लिखा था, "काश कोई मुझे ऐसे समझे जैसे मेरी डेयरी समझती है।" उसने वो पन्ना उसे दिखाया और कहा, "शायद मैं वो इंसान हूँ। क्या तुम मुझे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाओगी?"
शिवानी की आँखों में खुशी के आँसू थे। उसने धीमे से कहा, "तुम्हें हाँ कहने के अलावा मेरे पास कोई और जवाब नहीं है।"
दोनों ने ये बात अपने परिवारों को बताई, और दोनों के परिवार भी इस रिश्ते से बेहद खुश थे। शादी के दिन, आकाश ने सफेद शेरवानी पहनी थी, और शिवानी ने लाल रंग का लहंगा। दोनों ने अपनी-अपनी डेयरियाँ संभालकर रखीं, क्योंकि वे सिर्फ पन्ने नहीं, उनकी ज़िंदगियों की कहानी थीं।
और इस तरह, उनकी ज़िंदगी के पन्नों में बसा प्यार हकीकत बन गया। आकाश और शिवानी ने महसूस किया कि शायद उनके सवाल का जवाब उन्हें मिल गया था। हाँ, कभी
-कभी किसी अजनबी से भी प्यार हो सकता है।
लक्ष्मी गुप्ता