मायावी मोहब्बत । in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | मायावी मोहब्बत ।

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मायावी मोहब्बत ।

अमावस्या की  रात के 11 बज रहे थे । भानपुर गांव का एक तांत्रिक अपनी तात्रिकं साधना करने के लिए सुंदरवन की तरफ जा रहा था । गांव मे ये मान्यता थी के जो कोई भी तात्रिकं अमावस्या की मध्य रात्री को साधना करेगा उसे असिम शक्ती के साथ साथ अपार धन भी प्राप्त होता है ।

क्योकी इस रात्री अलौकिक  शक्ती को प्राप्त करने की मंत्रो की साधना की जाती है ।

और ये तात्रिक आज परी साधना करने जा रहा था । वो तात्रिकं जंगल के काफी अंदर तक पहूँच चुका था । अब वो परी को बुलाने की तैयारी करने लगता है । सबसे पहले चो वो नहाया फिर फूल, दीपक, इत्र, दर्पण, चंदन आदि से मंडल बनाया । परी को खुश करने के लिए सुगंधित फूल, इत्र, चांदी के गहने, दूध और शहद रखा । अब उसने साधना सुरु किया , कुछ मंत्र उच्चारण करने के बाद साधक ने मंत्रोच्चार पूरा किया तो उसके चारों ओर की हवा में सुगंध भर गई। अचानक चाँदी-सी चमकती किरणों से एक परी उतरी।

उसकी आँखों में सागर-सी गहराई और मुस्कान में मदिरा-सा नशा था।

साधक परी की सुंदरता को दैखकर वो काम से वश मे आ गया था ।  परी के शरीर की बनावट को दैखकर वो साधक सारे नियम भूल गया था ।

इस साधना मो साधक को ब्रह्मचर्य, मौन व्रत, और मन की शुद्धि रखनी पड़ती है। तभी वो उससे मन चाहा वरदान प्राप्त कर सकता है । पर अगर उसने अपना ब्रह्मचर्य तोड़ा तो उसका विनाश निश्चित था ।

वह साधक के पास आई, उसके चारों ओर घूमी और अपने कोमल हाथ से उसका चेहरा छुआ।

क्षण भर में साधक को लगा जैसे उसके भीतर की सारी थकान, दर्द और खालीपन पिघल गया हो।

अब साधक से रहा नही जा रहा था , वो ये भूल चुका था के उसे परी से वो सांतक मणी चाहिए जिसके लिए वो ये साधना कर रहा था । 

परी साधक को दैखकर मुस्कुरा रही था और फिर कहती है ।

परी :- बोलो साधक , तुम्हें क्या चाहिए ?

साधक :- मुझे तो तुमसे बस तुम्हारा योवन ही चाहिए ।

साधक की बात को सुनकर परी हंसने लगती है । 

परी :- अच्छा ...! पर तुमने तो मुझे किसी और इच्छा से बुलाया था ।

साधक परी को बस निहारे जा रहा था । साधक परी की हर बात हर चेतावनी को अनसुना करने लगा और अपना आपा खो कर परी के पास जाकर उससे लिपट गया । 

परी भी उस साधक का पुरा साथ दिया और एक एक करके दोनो पुरी तरह से निर्वस्त्र हो चुके थे । परी के एक एक अंग को दैखकर वो साधक मदहोश हो चुका था ।

परी और साधक पुरी रात भर संभोग करने मे व्यस्त रहा और अब दोनो ही संतुष्ट हो चिका था । संभोग के बाद उस साधक को अपने भूलता एहसास होता है पर अब क्या फायदा जब उसने वो कर दिया था जो उसे नही करना था ।

दुसरे दिन सुबह उसका कटा हूआ सर जंगल के बाहर पड़ा मिला ।

सुबह के पाँच बज रहे थे ।  चारो और कोहरा ही कोहरा था और एक सन्नाटा छाया था । जिससे आगे का रास्ता कार चला रहे हैं नीलू को साफ साफ दिखई नहीं दे रहा था । नीलू धीरे धीरे कार को चला रहा था । नीलू कार चलता हैं और दक्षराज से पुछता है। 

निलू --- मालिक एक बात पुछूँ ? 

दक्षराज ---- हां पुछो निलू क्या बात है।  

निलू ----- मालीक आपको मैंने आज से पहले इतना परेसान कभी नहीं देखा, क्या कोई परेसानी है मालिक ?

दक्षराज एक गहरी सांस लेता है और कहता है।

दक्षराज ----  हां नीलू बात ही कुछ ऐसी है। पर इस समय में तुम्हें नहीं बता सकता, समय आने पर में तुम्हे सब बताउंगा। तू बस जल्दी जल्दी गाड़ी चला। हमें जल्दी अघोर बाबा के पास पहुँचना है। 

दक्षराज बहोत तकलीफ मे था वो जिस तरीके से बोल रहा था उससे साफ पता चल रहा था ।

नीलू अब बिना कुछ पूछे गाड़ी चलाने लग जाता है , और कुछ ही दैर मे दक्षराज सुंदरवन पहुँच जाता है। निलू गाड़ी को रोकते हूए दक्षराज से कहता है। मालिक हम जंगल पहुँच गए।

दक्षराज गहरी चिंता में होता था , जिस कारण से वो नीलू की बात पर ध्यान नही देता है। नीलू फिर से कहता है ।

निलू ---- मालिक.. मालीक...! 

दक्षराज अभी भी गहरी चिंता मे था । तब दयाल जो की दक्षराज के बाजू में बैठा था, दक्षराज को हिलाते हुए कहता है। 

दयाल --- मालिक..! मालिक...! हम जंगल पहूँच गए। 

दयाल की बात सुनकर दक्षराज अपनी चिंता से बहार आता है और कहता है। 

दक्षराज ---- ओ हा ....।

दयाल फिर कहता है ।

दयाल ---- मालिक हम जंगल पहुँच गए है । अब हमें गाड़ी यही रोकनी पडे़गी और आगे हमें पैदल ही जाना पड़ेगा ।

 दक्षराज एक गहरी सांस लेता है और कहता है।

 दक्षराज ---- हां । ठिक है , चलो ।

 इतना बोलकर दक्षराज कार की खिड़की से ईधर उधर देखने लगता है फिर तीनो गाड़ी से उतर जाता है। दक्षराज नीलू से कहता है। दक्षराज --- नीलू तुम हमारा यही कार में इंतजार करो। हम लोग बाबा से मिलकर आते हैं।

नीलू हां में अपना सर हिलाते हुए कहता हैं।

निलू---- ठिक है मालिक , आप जाओ में आपका यही इंतजार करुंगा। 

नीलू इतना कह तो देता है पर उसको पता था के सुंदरवन में अभी भी देत्य आतें है। और पिछले दस सालो से जंगल में कुम्भन नाम का देत्य कैद है। जिसकी गर्जना आज भी गांव वालों को सुनाई देता है। नीलू का गला डर से सुख रहा था, पर उसके पास और कोई रास्ता भी नहीं था सिवाई अकेले यहां इंतेजार करने का ।

नीलू एक गहरी सांस लेता है और गाड़ी के अंदर चला जाता है और अपनी जेब से बिड़ी निकाल कर जलाने लगता है। दक्षराज और दयाल दोनो ही जंगल के अंदर जाने लगता है। कुछ दुर जाने के बाद जंगल अंदर से बहुत घना हो जाता है , जहा, पर सूरज की रोशनी बहोत मुश्किल से कही कही पर पहूँच रहा था ।

जंगल में चारो और एक गहरी सन्नाटा और अँधेरा था। दोनो को वहां पर अपने पैरो के आवाज के अलावा और कुछ भी सुनाई नही दे रहा था । जंगल के अंदर मे काफी सुखी पत्ते पड़े थे जिस वजह से उस पत्तों पर कदम पड़ने से पैरो की आवाज और जौर जौर आने लगी थी ।

दक्षराज और दयाल को आगे बढ़ने में काफ़ी परेसानी हो रही थी। कुछ दुर और जाने पर वहां के चारों और बड़ जाता है । और अब कुछ सिकारी  जंगली जानवर के भयानक आवाज भी आने लगती है। जिससे किसी को भी डर लगना स्वाभाविक था। पर दक्षराज बिना किसी चिज के परवाह किए बिना ही आगे बढ़ते जा रहा था ।

दक्षराज की हालत बहोत खराब थी । अब हो लड़खड़ाने लगा था । पर फिर भी आगे बड़ रहा था । पर दयाल की हालत डर के मारे बहोत ही खराब थी । दयाल के मन में बार बार कुंभ्मन का ख्याल आ रहा था। वो यही सौच रहा था के  कहीं कुम्भन यहा ना आ जाए,

दयाल अपने मन ही मन सोचता है। काश यहा गाड़ी आने का रास्ता होता तो अब तक हम लोग अघोरी बाबा के पास पहुँच गए होते । इतना सोचते सोचते वो दो जंगल के काफी अंदर चला जाता है। जहां पर बिना रोशनी के अब आगे बड़ता नामुमकिन था।  

दयाल डर से कभी अपने दायें तो अभी बायें देखता, पर अंधेरा के अलावा कुछ  दिखाई नहीं दे रहा था , पर कही कही झाड़ियों मे से  जानवर के निकलने की आवाज आ रहा था  और टॉर्च की रोशनी से उन जानवरो की आंखे चमक रही थी । दक्षराज चुप चाप अपने कदम बढ़ाए जा रहा था । उऩ्हे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी बात की गहरी चिंता है, जिस वजह से वो जल्दी जल्दी अपने कदम अघोरी बाबा के गुफा की और बड़ा रहा था।

कुछ दूर जाने के बाद दयाल को जंगल के बिच एक रोशनी दिखाई पढ़ती है। दयाल झट से दक्षराज से कहता है। 

दयाल ---- मालिक लगता है हम लोग अघोरी बाबा के गुफा पहुँच गए। 

जंगल में रोशनी दिखने से मानो दयाल के जान में जान आई और अब दयाल भी अपने कदम जल्दी जल्दी  रोशनी की और बड़ा रहा था। जैसे जैसे ये लोग अपने कदम बढ़ा रहे थे वो रोशनी और बढ़ रही थी। फिर अचानक एक मनमोहक खुशबू पुरे वातावरण में फैल जाती है। 

जहां कुछ देर पहले घोर अँधेरा और सन्नाटा था वहा पर अचानक से एक मनमोहक खुशबू और रोशनी ने उस जगह को मंत्र मुग्ध कर दिया था। ऐसा लग रहा था जैसे किसीने हजारो खुशबू वाली फुल वहा पर बिखेर दिया हो। अब दोनो ही उस गुफा वाली जगह पर पँहुच चुके थे ।