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स्नेहिल नमस्कार मित्रो
हर बार की भाँति इस बार भी दीपावली आ गई, सभीअपनी अपनी जेब के अनुसार त्योहार का स्वागत करने की तैयारी में मशगूल हैं।
कभी सोचते हैं कि क्या दीपों के इस जगमगाते त्योहार पर जहाँ हर दिन मँहगाई द्रौपदी के चीर सी बढ गई है, जहाँ मध्यम वर्गीय मनुष्य किसी तरह कतर ब्योंत करके अपने परिवार व बच्चों के चेहरों पर रोशनी लाने का प्रयास करता है, जहाँ बूढी आँखों के सपने सूखने लगते हैं, होठों पर ताले लग जाते हैं, वे अशक्य हो जाते हैं और तीसरी पीढी के सपनों को अपनी आँखों के सपनों जैसा सूखने की कल्पना मात्र से उन्हें सिहरन होने लगती है।ऐसे में झाँकना उन पगडंडी पर छप्पर के घरों में झाँकना हो जाता है ज़रूरी
'इस दीपावली पर'
निकल जाती हैं कुछ पँक्तियाँ अहसास की संवेदना की कलम से, डुबोकर दिल की स्याही. में....
महलों की ये रोशनी ,चकाचौंध होती आँखें
किन्तु कहाँ पहुंचे हैं झौंपड़ी में रोशनी की पाँखें
आओ कर लें तलाश उन कोनों को भी
जहाँ नहीं पहुँच पाती रोशनी
,समझें कारण इसका , चिंतन कर लें आज इस पर
दीपकों को बेचकर लाते आटा दाल हैं
वे ही क्यों बेचारे हैं ,रोशनी के तलबगार हैं
जब सभी के घरों में रोशनी की भर मार है
झौंपड़ी ही क्यों इस रोशनी को पाने से लाचार है
आओ ,सब मिल तम मिटा लें
आओ मन रोशन बना लें
इस धरा को स्वर्ग कर लें
हरेक कोना जगमगा लें
नन्हा सा जीवन सब कुछ समर्पित
सबको ही एक सा हो अधिकार
सब में फैले स्नेह,प्यार,दुलार
एक की संतान हम सब
एक सा ही हो अधिकार
सब कुछ उजियारे को अर्पित
मन में जब उजियारा भर जाएगा
रोशनी में सारा विश्व नहाएगा
न कोई सुबकी होगी ,न होगा आँसू किसी आँख में
,स्नेह के दीपक जला लें
आओ मिल तम को भगा लें
मन हो सबके उज्ज्वल
सब की मुसकानें छलाछल
आँख में आँसु न ठहरे
दूसरे की पीड़ा सुनकर
न बनें हम यूँ ही बहरे
प्रेम के उद्गार भर लें
आओ सब में प्रेम भर लें
प्रेम के दीपक जलाकर
और आशाएं सजाकर
नवल रोशन जग बना लें
आओ सब मिल जग सजा लें।
झाँकने लें झौंपड़ियो में
भर दें थोड़ी सी रोशनी
उन सूखी आँखों में
जहाँ, बरसों से रोशनी की
लकीर तक नहीं दी है दिखाई
कुछ भी न देता सुझाई।.
गरीब की दीपावली मन-तन कर दें रोशन...
अधिक नहीं एक प्रयास तो कर ही सके,
अपनी आत्मा में तलाश कर लें
कुछ सुनहरे स्वप्र
और सजा दें अँधकार को प्रकाश से..
सभी मित्रों को रोशनी के पर्व की मंगलकामनाएं
आप सबकी मित्र
डॉ प्रणव भारती
अहमदाबाद