Advaita in Hindi Horror Stories by Rakesh books and stories PDF | अद्वैत

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अद्वैत

रात के ग्यारह बज रहे थे। दिल्ली की सर्द हवा में एक अजीब-सी नमी थी। सड़कें लगभग खाली थीं, बस स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी में धुंध ऐसे लटक रही थी जैसे किसी पुराने राज़ की परतें। उसी धुंध के बीच, एक पुरानी लाइब्रेरी की खिड़कियों में हल्की रौशनी जल रही थी।

वहाँ बैठी थी माया — इतिहास की रिसर्च स्कॉलर। उसकी आँखों में नींद नहीं थी, बस किताबों की परछाइयाँ और सवाल थे। वो पिछले तीन महीनों से एक रहस्यमयी केस पर काम कर रही थी — "मॉर्निंग वेल हवेली" के बारे में। कहा जाता था कि उस हवेली में कभी कोई नहीं ठहर पाता। रात को वहाँ कुछ ऐसा होता था जिसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता।

माया को अंधविश्वासों पर यक़ीन नहीं था। उसने तय किया कि वो खुद जाकर उस हवेली की सच्चाई पता करेगी।

अगली शाम, जब सूरज की आखिरी किरण धूल में गुम हो रही थी, माया अपनी कार लेकर हवेली पहुँची। चारों तरफ झाड़ियाँ उगी थीं, और हवेली के टूटे दरवाज़े अपने आप हिल रहे थे। जैसे किसी ने बहुत समय से उन्हें नहीं छुआ हो।

जैसे ही माया अंदर गई, हवा और ठंडी हो गई। दीवारों पर पुरानी पेंटिंग्स थीं — राजाओं और रानियों की, जिनकी आँखें अंधेरे में चमकती-सी लग रही थीं। वो अपना कैमरा निकालने ही वाली थी कि पीछे से किसी के कदमों की आहट आई। उसने टॉर्च घुमाई, पर वहाँ कोई नहीं था।

फिर अचानक एक धीमी आवाज़ गूँजी — “यहाँ क्यों आई हो?”

वो पलट गई। सामने एक आदमी खड़ा था — लंबा, काले कोट में, और उसकी आँखों में अंधेरे की गहराई थी। पर अजीब बात यह थी कि उसका चेहरा… किसी पुराने ज़माने का लग रहा था।

“कौन हो तुम?” माया ने टॉर्च उसकी ओर की।
“वो मत करो,” उसने कहा, “रोशनी मुझे दर्द देती है।”

माया ने टॉर्च नीचे कर ली, “मैं रिसर्चर हूँ। मैं इस हवेली के इतिहास को समझना चाहती हूँ।”
वो मुस्कराया — “इतिहास? यहाँ इतिहास नहीं, अधूरी कहानियाँ हैं।”

उसने अपना नाम बताया — "अद्वैत।"
“ये हवेली मेरी थी… दो सौ साल पहले।”

माया हँसी, “दो सौ साल पहले? क्या तुम भूत हो?”
“भूत नहीं,” अद्वैत ने धीरे से कहा, “पिशाच।”

माया का दिल ज़ोर से धड़का, लेकिन उसकी आँखों में डर नहीं था, जिज्ञासा थी।
“अगर तुम पिशाच हो, तो तुम अब तक ज़िंदा क्यों हो?”
“क्योंकि मैं मरना नहीं चाहता। जब तक वो नहीं लौटती, मुझे मुक्ति नहीं मिलेगी।”

“वो कौन?”
“मायरा… मेरी प्रेमिका। उसने मुझे वादा किया था कि वो हमेशा मेरे साथ रहेगी। लेकिन इंसान वादे निभाने के लिए नहीं, भूलने के लिए बनते हैं।”

अद्वैत की आँखें गहरी हो गईं, “लोगों ने हमारे प्रेम को श्राप कहा, मुझे मारने की कोशिश की। मैंने लड़ाई लड़ी… लेकिन जब मैं मरा, उसने खुद को आग में झोंक दिया। तबसे मैं यहीं हूँ — उस रात में, उस वक़्त में, उसी दर्द में।”

माया की साँस अटक गई। “मायरा…”
उसका नाम सुनते ही दीवार पर लटकी एक पुरानी पेंटिंग से धूल गिरने लगी। और माया ने देखा — उस पेंटिंग में लड़की का चेहरा बिल्कुल उसी जैसा था… वही आँखें, वही मुस्कान।

अद्वैत ने उसके पास आकर कहा, “मैंने सोचा था ये श्राप कभी खत्म नहीं होगा। लेकिन तुम… तुम वही आत्मा हो जो लौट आई है।”

माया के भीतर कुछ टूटने लगा। यादों की परछाइयाँ, जलते हुए महल की तस्वीरें, और वो आवाज़ — “मैं लौटूँगी…”

“तो ये सच है…” उसने बुदबुदाया।
“हाँ,” अद्वैत ने कहा, “लेकिन अब मैं नहीं चाहता कि तुम फिर मर जाओ। मैं बस चाहता हूँ कि तुम मुझे माफ़ कर दो।”

माया की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने उसका चेहरा छुआ, “तुम्हें माफ़ करने के लिए मुझे तुम्हें फिर से प्यार करना होगा।”

अद्वैत की लाल आँखें अचानक नरम हो गईं। उसने धीरे से कहा, “तो करो।”

और जैसे ही माया ने उसके होंठों को छुआ, हवेली की दीवारों में कंपन होने लगा। पेंटिंग्स टूटने लगीं, हवा में जादू-सा फैला, और सदियों पुराना अंधकार एक चमक में बदल गया।

सुबह जब पुलिस हवेली पहुँची, वहाँ कुछ भी नहीं था — न अद्वैत, न माया। बस दीवार पर आग से जली हुई एक नई पेंटिंग थी — जिसमें एक पिशाच और एक लड़की एक-दूसरे को गले लगाए मुस्करा रहे थे।

कहते हैं, उस रात के बाद से हवेली हमेशा के लिए शांत हो गई।
पर जो भी वहाँ जाता है, उसे कभी-कभी किसी औरत की आवाज़ सुनाई देती है —
“अद्वैत… अब अंधेरा नहीं रहेगा…”