एक नन्हीं-सी चिड़िया, जो अभी-अभी घोंसला छोड़कर उड़ना सीख रही थी। उसने देखा कि दूसरी चिड़ियाएँ हवा की रफ़्तार से आसमान नाप रही हैं। उसी पल उसने ठान लिया कि वह भी उन चिड़ियों से ऊपर उड़कर दिखाएगी। वह अपने सपनों के पंख फैलाकर उड़ने लगी, आसमान को छूने की चाह में। उसके पंख भले ही नाज़ुक थे, मगर हौसला आसमान जितना ऊँचा था। उसने एक बार अपने घर की ओर देखा, फिर सिर उठाकर अनंत आकाश की ओर। एक गहरी साँस ली, पंख फैलाए, और फड़फड़ाते हुए उड़ चली।
पहली बार खुले आसमान में उड़ने का आनंद उसके दिल को छू रहा था। वह उत्साह से भरी हुई ऊँचाई की ओर बढ़ती जा रही थी। पर अचानक जैसे किसी ने उसके पंख थाम लिए हों, उसकी रफ़्तार कम होने लगी। वह हवा में डगमगाने लगी। पहले तो चिड़िया समझ ही नहीं पाई कि क्या हो रहा है। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था। उसका संतुलन बिगड़ गया, और वह एक झाड़ी से टकराते हुए ज़मीन पर आ गिरी। नन्हीं चिड़िया दर्द से सिहर उठी। उसे ज़मीन पर पड़ा देख दूसरी चिड़ियाएँ उड़कर उसके पास आईं। जब उन्हें उसकी गिरावट का कारण पता चला, तो वे समझाने लगीं,
“तेरे पंख अभी नाज़ुक हैं, तू इतनी ऊँचाई पर नहीं उड़ सकती।”
लेकिन उन बातों ने नन्हीं चिड़िया के मन को चुभो दिया। उसने किसी की बात न सुनी और डगमगाते कदमों से उड़कर अपने घर लौट आई। उसे अच्छा नहीं लगा कि कोई उसे रोक रहा है। वह सबको ग़लत साबित करना चाहती थी, और सबसे ऊँचा उड़कर दिखाना चाहती थी। उसने उसी पल से अभ्यास शुरू कर दिया।
दिन गुज़रे, और पंख भी थोड़े बड़े और कठोर हुए और एक सुबह वह एक ऊँची पहाड़ी की चोटी पर पहुँची। इस बार उसके इरादे पहले से मज़बूत थे। उसने फिर उड़ान भरी। उड़ते-उड़ते उसने महसूस किया कि आसमान उतना आसान नहीं जितना लगता है। हवाएँ तेज़ थीं, बादल भारी थे, पर उस नन्हीं चिड़िया के हौसले के आगे ये सब बेअसर लग रहे थे। फिर भी, एक तेज़ झोंके ने उसे झकझोर दिया। वह डगमगाई, मगर संभल गई। हर बार हवा का झोंका आता और उसे नीचे खींचने की कोशिश करता, पर वह फिर पंख फैलाकर उड़ने लगती।
धीरे-धीरे ऊँचाई बढ़ती गई, और उड़ना मुश्किल होता गया।
कई बार वह गिरी, कई बार फिर उठी।
आख़िर उसका सब्र जवाब देने लगा। उसने आख़िरी बार पूरी ताक़त से पंख फड़फड़ाए, पर इस बार हवा का एक प्रचंड झोंका आया, और उसने चिड़िया को ऊपर से नीचे फेंक दिया। वह अबकी बार दुबारा उड़ न सकी, अपने आप को ताकत दे न सकी। वह स्थिर गिरती हुई, किसी गेंद की तरह नीचे आ रही थी। तेज़ी से गिरती हुई वह दूर जंगल में जा गिरी। कुछ हद तक पेड़ो की पत्तियों और फर्न ने सहारा देने की कोशिश की, मगर बात बन न सकी। उसके पंख जख़्मी थे, दर्द था, पर कोई आवाज़ नहीं निकली।
उस वक्त जंगल में बहुत शांति थी, और न ही दूसरी चिड़ियों की मौजूदगी थी। कुछ देर बाद उसकी आँखें खुलीं। ऊपर फैला आसमान उसे निहार रहा था, मानो उसकी जिद पर मुस्कुरा रहा हो।
वह सोच में डूबी,
क्या सचमुच वह गलत थी?
क्या आसमान सबका नहीं होता?
या फिर हर किसी के लिए उसकी एक तय सीमा होती है?
क्या वो नन्हीं-सी चिड़िया फिर उठ पाएगी?
क्या वह एक दिन वाकई आसमान को छू लेगी?
या फिर उसे भी बाकी चिड़ियों की तरह सीमाओं के भीतर रहना सीखना होगा?