भरतनाट्यम:
बच्चों का भरतनाट्यम देखने के लिए निमंत्रण मिला। सूरत रेलवे स्टेशन पर उतरकर रिक्शे वाले से बात की। उसने भाड़ा 150 रुपये बताया, गुजरात राजकीय अतिथि गृह( सर्किट हाउस) तक का। मैंने कहा," अधिक है। पाँच किलोमीटर ही है यहाँ से।" वह बोला यहाँ किसी से पूछ लीजिये। मैंने कहा चलिये।
फिर वह बोला," कल यहाँ रेल मंत्री आये थे, निरीक्षण के लिए। कितनी गन्दगी है। कुछ नहीं बदला। ये सामने मेट्रो रेल का काम तीन-चार साल से रुका है। नेपाल और बंगला देश में हाल में कैसा हुआ!---।" आगे का दृश्य देख बोला," यह यहाँ का कपड़ा बाजार है। एक ही बिल्डिंग में सैकड़ों दुकानें हैं। और सूरत हीरा उद्योग के लिए भी प्रसिद्ध है।" मुझे लगा वह सरकार से खुश नहीं है। वह बदलाव को नकार रहा है। मैंने कहा नेता तो दल बदलते रहते हैं। उसको हाँ कहना पड़ा। वह ईमानदारी चाह रहा था लेकिन मेरे से लगभग दुगना भाड़ा ले रहा था। इसमें उसे कुछ गलत नहीं लग रहा था।
भरतनाट्यम नृत्य से पहले "नटराज भगवान" की पूजा की गयी। नटराज शिवजी की नृत्य अवस्था है। भरतनाट्यम ऋषि भरत ने संहिताबद्ध किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है ब्रह्मा जी ने उन्हें यह कला दी थी। भरतनाट्यम नृत्य की मुझे जानकारी नहीं है लेकिन नृत्य सुन्दर लग रहा था। इतना सुना है कि नायिका हेमामालिनी और वैजंतीमाला इसमें पारंगत हैं। एक बार कलकत्ता में हेमामालिनी स्टेज शो के लिए आयी थी,हमारे आवास के पास ही कार्यक्रम हुआ था।
चार बच्चे गहरे तारतम्य से नृत्य को अभिव्यक्त कर रहे थे। उनकी मुखमुद्रायें देखते बन रही थीं। पैरों और मुद्राओं का अभिन्न जोड़ सुन्दर लग रहा था। लगभग छ साल के प्रक्षिक्षण के बाद वे यह प्रस्तुति दे रहे थे।
गुरुजन शब्दों से वातावरण को गूँजायमान किये हुये थे। दो श्लोक गीता के भी गाये गये। जैसे -
" यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।"
मन अनुवाद देखने लगा (जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं प्रकट होता हूँ (अवतरित होता हूँ)|"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।"
मन अनुवाद करने लगा-"साधुजनों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए, मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |"
बच्चों द्वारा कुछ नृत्य नाटिकाएं भी प्रस्तुत की गयीं। एक में माँ दुर्गा द्वारा महिसासुर वध दिखाया गया। दूसरे में यशोदा माँ को कान्हा की माखन चोरी पकड़ने के लिए उनको मुँह खोलने को कहना। जब कान्हा मुँह खोलते हैं तो यशोदा माँ को पूरा ब्रह्माण्ड वहाँ दिखाई देता है और वह मूर्छित हो जाती हैं।
तीसरी नृत्य नाटिका में द्रौपदी का चीर हरण दिखाया गया था। जब युधिष्ठिर द्यूतक्रीड़ा में पहले राज्य हार जाते हैं फिर भाइयों को और फिर द्रौपदी को। चीरहरण के समय द्रौपदी श्रीकृष्ण भगवान का स्मरण करती है और दुशासन चीर खींचते-खींचते थक कर गिर पड़ता है लेकिन चीर समाप्त नहीं होती है।
अन्त में बच्चों को प्रमाणपत्र और आशीर्वाद दिया जाता है और " भगवान नटराज" का आशीर्वाद लिया जाता है।
ताप्ती नदी में खूब पानी बह रहा है।
"दिन आते रहे
दिन जाते रहे,
अच्छाई भी देखी
बुराई भी देखी,
एक ही देह में सच्चाई भी देखी।
बेमानी आई
बेमानी गई,
जो सच्चाई की वकालत कर रहा था
मुझे से दूने पैसे माँग रहा था,
दिखने के लिए उजाला ही उजाला है,
लेकिन अँधेरे का व्यवसाय कम नहीं है।"
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*** महेश रौतेला