वो इश्क जो अधूरा था .
कुछ प्रेम कहानियाँ ज़मीन पर शुरू होकर आसमान में बिखर जाती हैं।
कुछ, मौत के बाद भी नहीं मिटती है ।
ये कहानी है एक ऐसे प्यार की, जो अधूरा रह गया…
और एक ऐसी रूह की, जो अब अधूरी नहीं रहना चाहती।
नई-नई शादी के बाद, जब अन्वेषा और अपूर्व अपने शहर लौटे, तो उन्हें इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनका प्यार किसी और की कहानी का अधूरा भाग बनने जा रहा है।
एक पुराने पीपल के पेड़ के नीचे खिंचाई गई एक मासूम सी तस्वीर, एक सन्नाटा जो सिर्फ़ बाहर नहीं, भीतर भी उतरने लगा, और फिर... वो सपना नहीं, बल्कि कोई बीती हुई हकीकत बन गई।
रुख़साना, एक ऐसी लड़की जिसकी मोहब्बत को ज़माना ना समझ सका, नासिर, जो उस मोहब्बत में ज़िंदा दफनाया गया,और आग़ाज़, जिसने इश्क़ को अपना गुनाह बना लिया।
अब वही कहानी लौट आई है — नए नामों, नए चेहरों, लेकिन पुराने जज़्बातों और ज़ख्मों के साथ।
अपूर्व, जिसे खुद नहीं मालूम कि वो किसका पुनर्जन्म है — और किसके साथ एक अनजाने पाप का बोझ लेकर जी रहा है।
अन्वेषा, जो अब खुद को खोती जा रही है — धीरे-धीरे, जैसे किसी और आत्मा की साँसों से उसकी धड़कनें बंधी हों।
हर दरवाज़ा अब किसी रहस्य की तरफ़ खुलता है।
हर सपना अब किसी बीते जन्म की पुकार बन गया है।
और हवेली… हवेली अब सिर्फ़ एक मकान नहीं, एक कैद है — जहाँ समय ठहर गया है, और इंतज़ार अब शांति का नहीं…
इंतकाम का है।
ये कहानी डराएगी, रुलाएगी, उलझाएगी और फिर उस मोड़ पर ले जाएगी जहाँ नफ़रत और मोहब्बत की सीमाएँ एक हो जाती हैं।
जहाँ आत्मा भी पूछती है —
"अगर तुम मुझसे सच्चा प्रेम करते थे, तो मुझे मरने क्यों दिया?"
"वो इश्क जो अधूरा था" — एक ऐसा सफ़र जहाँ वर्तमान के हर क़दम पर अतीत की परछाइयाँ हैं।
जहाँ प्रेम एक श्राप है, और मुक्ति…
शायद अब भी अधूरी।
(1)
“अब तो शादी भी हो गई और हनीमून भी मजे से निपट गया । लगता है जिंदगी का सारा एक्स्साईटमेंट हनीमून में ही होता है । अब तो रोज एक ही ढर्रे वाली जिंदगी जी कर बोर होना पड़ेगा ।” पन्द्रह दिन के हनीमून से वापस घर लौटते हुए टैक्सी में बैठे हुए अपूर्व ने प्रेमिका से बीस दिन पहले सात फेरे लेकर अपनी पत्नी बनी अन्वेषा के गले में अपनी बाँहे डालते हुए कहा ।
“जनाब ! अब जीने के लिए रोटी का जुगाड़ तो करना ही पड़ेगा ना ! अब हम तुम एक ही गाड़ी के दो पहिये बन चुके है । मिलकर इस गाड़ी का बोझ उठा लेंगे ।” अपूर्व की बात सुनकर अन्वेषा ने हँसते हुए जवाब दिया ।
“रोटी के लिए नौकरी करना जिंदगी का सबसे खराब पल है । भगवान ने जो भूख ही न दी होती तो साल के बारह महीने हर दिन हनीमून मनाते । क्या कहती हो तुम ?” कहते हुए अपूर्व ने अन्वेषा को अपने और करीब खींच लिया ।
“अपूर्व ! थोड़ी तो शर्म करो । टैक्सी में हम दोनों के अलावा तीसरा भी कोई मौजूद है ।” अन्वेषा ने टैक्सी के फ्रंट मिरर से उन दोनों की प्यारभरी हरकतों को देख कर रोमांचित हो रहे ड्राइवर की तरफ इशारा कर कहा ।
“अरे ! इससे कैसी शर्म । अपनी ही उम्र का तो है ।” अन्वेषा की बात का जवाब सुनकर अपूर्व ने ड्राइवर से पूछा, “ओ भाई । तेरी शादी हो गई या अभी बाकी है ?”
“साब । मेरे तो दो बच्चे भी आ गए ।” ड्राइवर ने मुस्कुराकर अपूर्व की बात का जवाब दिया ।
“गजब ! वैसे उम्र क्या है तुम्हारी ?” उसका जवाब सुनकर अपूर्व ने आगे पूछा ।
“अगले साल सत्तावीस पूरे हो जाएँगे ।” ड्राइवर ने जवाब दिया ।
“देखा ! ये हमारे से कितना एडवांस निकला । सत्तावीस साल में तो हमारी अभी शुरूआत ही हो रही है और इसने दो बच्चे निकाल लिए । अन्वेषा, हमें भी अब जल्दी करना होगा... दो साल में दो बच्चों का टार्गेट तो रखना ही पड़ेगा ।”
“शटअप अपूर्व । जो भी मुँह में आता है बक देते हो ।” अन्वेषा ने अपूर्व की बात सुनकर बनावटी गुस्सा दिखाया और फिर ड्राइवर से बोली, “भैया, रास्ते में पुराने वाले पीपल के पास थोड़ी देर रूकना ।”
“पुराने पीपल के पास रूककर क्या करोगी ? देर हो जाएगी ।” अपूर्व ने अन्वेषा के इस फैसले पर अपनी असहमति दर्शायी ।
“शादी से पहले मैंने मन्नत माँगी थी कि तुमसे शादी होने के बाद तुम्हारे साथ पुराने पीपल पर माथा टेकने जाऊँगी । हनीमून पर जाने की जल्दीबाजी में सब भूल गई थी । अब याद आया तो मन्नत आज ही पूरी कर लेते है ।” अन्वेषा ने विस्तार से जवाब दिया ।
“मतलब तुमको मेरे प्यार से ज्यादा विश्वास उस पुराने पीपल पर है ?” अपूर्व ने नाराज होते हुए अन्वेषा को देखा ।
“ऐसा नहीं है अपूर्व । पुराना पीपल करीबन सौ साल से ज्यादा पुराना है और लोग कहते है कि वर्षों पहले यहाँ नासीर और रुखसाना की क्रब थी । तुम्हें पता भी है नासीर और रुखसाना कौन थे ?” अन्वेषा अपूर्व को अपनी बात समझाते हुए पूछा ।
“हजार बार बता चुकी हो तुम । सदियों पहले प्यार कर शादी की मंजिल तक न पहुँच पाने वाले बदनसीब प्रेमीयुगल थे।” अपूर्व ने थोड़ा चिढ़ते हुए जवाब दिया ।
“हाँ । उस पुराने पीपल में उनकी रूह अभी तक बस्ती है और सच्चा प्यार करने वालों को मन्नत माँगने पर आपस में अवश्य मिला देते है ।” अन्वेषा ने आगे कहा ।
“मुझे तुम्हारी इन दकियानूसी बातों पर रत्तीभर भी विश्वास नहीं है लेकिन तुम्हारे प्यार की खातिर चले चलता हूँ । वैसे भी अब तो तुम्हारे पीछे पीछे ही घूमना पड़ेगा ।” अपूर्व ने हँसते हुए जवाब दिया और तभी ड्राइवर ने टैक्सी पुराने पीपल के पास लाकर खड़ी कर दी ।
अन्वेषा अपूर्व की बात को नजरअंदाज कर टैक्सी से बाहर आ गई । उसके पीछे अपूर्व भी बाहर आकर खड़ा हो गया ।अन्वेषा ने अपने कंधे पर लटक रहे दुपट्टे को माथे पर डाला और पीपल के पेड़ की तरफ अपूर्व का हाथ पकड़कर चलने लगी ।
उसने पीपल के बड़े से तने से अपना माथा छुआया और फिर मन में कुछ बुदबुदाते हुए अपूर्व का हाथ पकड़कर पेड़ की पाँच परिक्रमा कर ली । वहाँ से वापस जाते हुए उसने फिर से अपना माथा पेड़ के सामने झुकाया तो अचानक से जोरों की हवा चलने लगी और एक एककर पीपल के सूखे हुए पत्ते टहनी से अलग होकर अन्वेषा और अपूर्व के पैरों के पास चादर की तरह बिछ गए । अन्वेषा अपूर्व की तरफ देखकर मुस्कुराकर बोली, “मेरी मन्नत कबूल हो गई ।”
“ठीक है । अब चले ? देर हो रही है ।” अपूर्व ने कहा ।
“ठीक है ।” कहकर अन्वेषा पीपल के पेड़ को हाथ जोड़े तो अचानक से उसके पूरे बदन में अजीब सी कँपकपी छूट गई । कुछ सेकेण्ड के लिए वह ठंडी से काँपने लगी लेकिन फिर अगले ही क्षण उसके माथे पर पसीने की बूंदे उभर आई । उसके पास खड़े अपूर्व को एक पल को हुई यह घटना समझ नहीं आई लेकिन जल्दी से घर पहुँचने की कशमकश में उसने इस बात पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अन्वेषा को साथ लेकर वापस टैक्सी में बैठ गया । घर पहुँचने तक अन्वेषा अपूर्व के लाख बात करने की कोशिश के बाद भी चुप ही रही ।
अपूर्व सेठ खिमजीमल का इकलौता लड़का था और विरासत में मिली हवेली में रहने वाला उस हवेली का एकमात्र वारिस । परिवार के नाम पर अपूर्व की जिन्दगी में अब उसकी छोटी बहन केशा के अलावा अन्वेषा शामिल हो चुकी थी।
हवेली पहुँचने के बाद अन्वेषा रात का खाना खाने के बाद सीधे ही अपने बेडरूम में आकर लेट गई । थोड़ी ही देर में अपूर्व भी बेडरूम में आकर उसके पास लेट गया और अन्वेषा के बालों में प्यार से अपनी ऊँगलियाँ घुमाने लगा । उसकी आँखों में अन्वेषा के संग एक हो जाने का आमन्त्रण साफ झलक रहा था । उसके बालों से होते हुए उसकी ऊँगलियाँ अन्वेषा के होंठ को सहलाने लगी तो अन्वेषा ने अपना मुँह फेर लिया ।
“क्या हुआ जानू ?” अपूर्व ने बड़े ही प्यार से पूछा ।
“नहीं । मूड नहीं है ।” अन्वेषा ने रुखा सा जवाब दिया ।
“मूड का क्या है बन जाएगा । कल से तो फिर वही नौकरी की राम कहानी शुरू हो जाएगी ।” अपूर्व ने अन्वेषा को मनाने का प्रयास किया ।
“नहीं अपूर्व । अब तक हमारे बीच जो कुछ हुआ उसे भूल जाओ । तुम बुरा न मानो तो मुझे तुमसे एक बात कहनी है ...” कहते हुए अन्वेषा ने अपनी बात अधूरी छोड़ते हुए अपूर्व की तरफ देखा ।
“भूल जाऊँ ? क्या भूल जाऊँ ? कहना क्या चाहती हो तुम अन्वेषा ?” अपूर्व अन्वेषा की बात सुनकर चौंक गया ।
“मुझे तुमसे शादी नहीं करनी चाहिए थी ।” आगे कहते हुए अन्वेषा के चेहरे पर गंभीरता छा गई ।
“अन्वेषा । तुम ठीक तो हो ? ये कैसी बहकी हुई बात कर रही हो ?” अपूर्व अब उसकी बात सुनकर थोड़ा सा घबरा गया ।
“मैं सच कह रही हूँ । मैं किसी और से प्यार करती हूँ ।” अन्वेषा अब भी गंभीर थी ।