सत्य सनातन मेरी जान है साहब।
भारतीय तिरंगा मेरी शान है साहब।।
मैं बिजनौर के किरतपुर का वासी हूँ।
समाज में बुराई से दूरी मान है साहब।।
मेरी रचनाएं समाज को राह दिखाये।
इसलिए अहसास का फरमान है साहब।।
मैं ज्ञानेश्वर आनन्द "ज्ञानेश" किरतपुरी।
सादगी की हर दिलों में पहचान है साहिब।।
देखकर वो/ हादसे तुम/ शहर से लौट आओगे।।
तुम अगर चाहो तो इनसे बचके निकल जाओगे।
कब तलक रोकोगे दिल को चाहतों से अपनी।
एक दिन आखिर इस ग्रफत में हो ही जाओगे।।
शहर के लोग बड़े बे-मुरव्वत हैं मगर।
अब तो गाँव में भी कम नहीं पाओगे।।
आदमी हो आदमी से प्यार करना चाहिए।
मां बाप को छोड़ कर कुत्ता पालें पाओगे।।
बाँटते फिरते हो सबको अपनापन मगर,
अपनी  तनहाई को कहाँ  लेकर जाओगे।
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी 
एक मतला दो शेर -
सर पे हमेशा यूँ ही माँ का आशीर्वाद चाहिए।
अब तो परिवार भी सबको निर्विवाद चाहिए।।
किसी बात को लेकर गलतफहमियों से दूर।
खुलूस ए मुल्क में अब,ना कोई उन्माद चाहिए।।
मुहब्बत में बेवजह की दूरियाँ अच्छी नहीं "ज्ञानेश"।
अब उदासियाँ नहीं , हमें हरदिल शाद चाहिए।।
शायर
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी
स्वरचित एवं मौलिक रचना के समस्त ©® अधिकार सुरक्षित हैं।
12-02-2022 
जब से तेरे प्यार में इश्क ए वफ़ा कर रहे हैं हम।
ये मुहब्बत है जानम या कोई ख़ता कर रहे हैं हम।।
2 
एक मतला एक शेर-
मुहब्बत भी एक मरसला है, दिल की इबादत का।
चाहत ना बन जाए  ज्ञानेश, ज़रिया शरारत का।।
मुझको लगता है चाँद से, चाँदनी चुराकर आये हो।
खूबसूरती कहती है तुम हो, दरिया मुहब्बत का।।
झूठों की बस्ती में सच कहाँ से लाऊँ ज्ञानेश।
ढूँढना पड़ता है इस दौर में बंदा सदाकत का।।
उसकी आंखों में बला चाहत, की रवानी देखी।
उसके चेहरे पर मैंने मुहब्बत, की कहानी देखी।।
शायर
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी
स्वरचित एवं मौलिक रचना के समस्त ©® अधिकार सुरक्षित हैं।
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ग़ज़ल
अब ये ज़िंदगी की शाम भी ढलने लगी है।
कैसी कैसी बात दिल में पलने लगी है।।
कोई राह दिखाई नहीं देती है कहीं तलक।
ये हवा भी तो आँधियों सी चलने लगी है।।
इस दौर में हर शख्स परेशाँ हाल दिखता है।
अब ये दुनिया अपनों ही से जलने लगी है।।
अब दूसरों की दौलत को देखकर क्यों।
नीयत हर किसी की मचलने लगी है।।
आज मैं किसी पर कैसे कर लूँ भरोसा।
ये दुनिया तो हर किसी को छलने लगी है।।
निकल गया हाथ से मौका तो फिर क्यों।
वो दस्तूर ए जीस्त से हाथ भी मलने लगी है।
लगता है अब दुआओं में असर नहीं रहा।
मौत का खौफ देखकर जिंदगी भी डरने लगी है।
इंसान कितना स्वार्थी हो गया है ज्ञानेश देखिए।
देखकर निज स्वार्थ दुनिया साथ में चलने लगी है।।
शायर
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी
स्वरचित एवं मौलिक रचना के समस्त ©® अधिकार सुरक्षित हैं।
कितने मासूम लगते हैं जालिम मगर।
मुझे बगुले पर भी क्यों यकीं आ गया।।
सच्ची साधना करते हैं बगुले मगर।
एक पैर पर खड़े का यकीं आ गया।।
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तेरे अल्फाज़ो में अदावत बयाँ करती है।
उसकी बातों में सदाकत बयाँ करती है।।
कुछ उखड़ा उखड़ा सा लगता है मगर।
उसके दिल में अभी मुहब्बत बयाँ करती है।।
वो हर किसी का एहतराम करता है।
उसके दिल में इबादत बयाँ करती है।।
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शायर
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी
स्वरचित एवं मौलिक रचना के समस्त ©® अधिकार सुरक्षित हैं।
जब दिल किसी से मिला ना हो तो हाथ मिलाने से क्या फायदा।
जहाँ अपनों का सम्मान ना हो तो साथ निभाने से क्या फायदा।।
शब्द रचना 
ज्ञानेश्वर आनन्द ज्ञानेश किरतपुरी 
बंसी किरतपुर जनपद बिजनौर उत्तर प्रदेश