सनातन पर्व आत्म शुद्धि एवं आत्मा कि परम् यात्रा परमात्मा के पथ कि दृष्टि दिशा दृश्टिकोण प्रदान करते हुए विशुद्ध आत्मीय बोध मे ईश्वरीय अस्तित्व कि पुकार है!
ढोंग न करते हुए यथार्थ आचरण करते हुए सत्यार्थ रूप मे आत्म पथ के वेद सतयुग आचरण के सत्यार्थ है!
सनातन के अतीत इतिहास मे सपने मे दिए वचन के निर्वहन मे चक्रवर्ती सम्राट डोम राजा कि चाकरी करते हुए वैदिक आचरण का उदाहरण प्रस्तुत कर सनातन वैदिक आचार व्यवहार संस्कार को सम्पूर्ण युग काल समय के समक्ष अनुकरणीय एवं प्रेरक विरासत के रूप मे प्रस्तुत कर
सनातन के गौरवशाली अतीत से अपने वर्तमान को एवं आने वाले भविष्य को सकारात्मक सार्थक राग द्वेष रहित निर्विकार व्यवहार आचरण के व्यक्ति समाज राष्ट्र का आवाहन किया!
क्या वर्तमान मे इसका कोई सहत्राश भी कही परिलक्षीत है?
उत्तर बहुत स्पष्ट है नहीं सिवा
आडम्बर, ढोग, धूर्तता और प्रपंच दिखावा ही परिलाक्षित होता है!
कलयुग मे सिर्फ कर्म जनित पाप पुण्य का महत्व है मनसा, वाचा, कर्मणा,सतयुग,त्रेता और कुछ हद तक द्वापर मे प्रभावी था जहाँ तब सम्बन्धो मे मर्यादा और समाज मे लज्जा नैतिकता थी!
कलयुग मे मनसा, वाचा, कर्मणा से पाप नहीं लगता स्वंय परमात्मा ईश्वर भगवान द्वारा कलयुगी को इससे मुक्त करते हुए सिर्फ कर्म योग अर्थात कर्मवाद का सिद्धांत दिया गया क्योंकि परमेश्वर ईश्वर भगवान को भली भाँती आने वाले युग कि सच्चाई मालूम थी इसीलिए कलयुगी प्राणी के लिए निष्काम कर्मयोग का पथ प्रकाश सिद्धांत जीवन नैतिक मूल्यों के रूप मे उपलब्ध है!
निष्काम कर्मयोग सिद्धांत के अंतर्गत ईमानदार होकर निष्काम कर्म योग आत्म साथ करने से शांति एवं बैभव कि लक्ष्मी का सानिध्य प्राप्ति का मार्ग सुगम होगा!
न कि लाखो करोड़ो कि अतिशबाज़ी, द्युत् क्रीड़ा, या मिट्टी या मेटल के लक्ष्मी गणेश के समक्ष कुछ पल बैठ कर सिर्फ स्वंय एवं कुटुंब के लिए सुख शांति कि याचना करने से शुभ देव भगवान गणेश एवं माता लक्ष्मी
प्रसन्न होंगी!
सनातन पर्व जीवन मे भौतिक सुख शांति प्रगति प्रतिष्ठा के साथ आध्यात्मिक मोक्ष मार्ग के साधन दृष्टि दृष्टिकोण है उदाहरण के लिए सनातन द्वारा निर्धारित कुछ मूल्यों को रखना प्रासंगिक प्रमाणिक है सप्ताह सात दिन का निर्धारित है प्रत्येक दिवस को किसी न किसी देव शक्ति के नाम पर समर्पित है जैसे सोमवार भगवान शिव, मंगलवार हनुमान जी, बुधवार शुभ देव गणपति, बृहस्पतिवार परब्रह्म परमेश्वर नारायण विष्णु जी, शुक्रवार देवी दुर्गा के बिभिन्न स्वरूपों को समर्पित शनिवार शनिदेव, भैरव आदि को समर्पित तो रविवार सूर्य भगवान को समर्पित दिवस है सप्ताह के प्रत्येक दिवस का अपना महत्व है जो मनुष्य को पवित्र पराक्रम एवं शुद्ध आत्मिक बोध अपने सूर्योदय के साथ करता है एवं तादानुसार आचरण अनुभति करते हुए जन्म जीवन के कर्तव्य दायित्व बोध का मार्ग प्रशस्त करता है!
सनातन मे जिस प्रकार सप्ताह के प्रत्येक दिवस को ईश्वरीय यथार्थ कि अवधारणा अस्तित्व मे विभक्त किया गया है ठीक उसी प्रकार ऋतुओ, मौसम, के अनुसार माह के महत्व को निर्धारित किया गया है वर्ष मे चार नवरात्रि दो गुप्त दो प्रत्यक्ष का निर्धारण सनातन मे व्यक्ति के आहार आचार व्यवहार आचरण को शुद्ध एवं शासक्त बनाने क़े लिए निर्धारित किया गया है!
ऋतुओ मौसम के अनुसार आहार का निर्धारण उपलब्धता एवं स्वास्थ्य कि दृष्टिकोण से किया गया है!
चार मौसम वर्षा, शरद, वसंत ग्रीष्म छः ऋतुए शिशिर, हेमंत, वसंत, शरद, वर्षा के अनुसार आहार आचार आचरण का निर्धारण सनातन का प्राणी प्रकृति परमेश्वर के समन्वय अस्तित्व एवं
प्राणी का परमात्मा के सापेक्ष व्यावहारिक विचार आचरण अचार व्यवहार निर्धारित किया गया है!
सनातन का नव वर्ष चैत्र प्रतिपदा से नारी शक्ति कि आराधना माँ के नौ रूपों कि भक्ति से शुभारम्भ होता है जिसे वशांतिक नवरात्री कहा जाता है जिसके समापन के दूसरे दिन मर्यादा के प्रतीक भगवान राम का जन्म दिन राम नवमी सनातन मे नव वर्ष के शुभारम्भ के साथ ही प्राणी परमात्मा के समन्वय एवं आत्मीय ईश्वरीय बोध विचार कि व्यवहारिकता के सत्यार्थ को आचरण मे उतारने कि प्रेरणा प्रदान करता है!
सनातन मे सप्ताह के प्रत्येक दिनों के लिए आचरण एवं आहार का निर्धारण किया गया है तो हर मौसम ऋतुओ के लिए पूरे वर्ष के लिए आहार विचार व्यवहार का निर्धारण किया गया है उदाहरण के लिए सावन महाकाल भूत भांवर भगवान भोले नाथ कि आराधना का माह है तो भादो भगवान नारायण के सम्पूर्ण गुणों कलाओ के साथ पृथ्वी पर मानव रूप मे आगमन का अवसर है तो कुआर माँ कि आराधना शारदीय नवरात्रि,शरद आगमन का संदेश है तो कार्तिक माह पर्व परायण माह है जिसके प्रथम दिवस से प्रति संध्या पूरे माह तुलसी जी के समक्ष दीपक जलाया जाता है समुद्र मंथन से निकले भगवान धन्वंतरि पूजन के साथ पर्व पक्ष का शुभारम्भ होता है जो नर्क चतुर्दशी, नरकसूर वध, दीपोत्सव, गोवार्थन पूजन, भैया दूज, चित्रगुप्त पूजन, भगवान सूर्य कि आराधना का त्रिदिवसीय सूर्य पर्व षष्ठी,अक्षय नवमी, एकादसी, एवं पूर्णिमा देवदीपावली और कार्तिक माह के अंत मे तुलसी विवाह अर्थात सनातन सिद्धांत का मूल उद्देश्य मानव मन को पर्व कि सात्विक ईश्वरीय बोध व्यवहार कि ऊर्जा से ओत प्रोत करते हुए छल, छदम,प्रपंच, मिथ्या राग द्वेष द्वन्द से अलग समर्पण, सेवा, मर्यादा, नैतिकता, प्राणी,प्राण, परमात्मा के यथार्थ संस्कार से परिपूर्ण करते हुए प्राणी मात्र के कल्यारार्थ प्रारब्द एवं परमार्थ के मध्य संदेह भय भ्रम को समाप्त करता जन्म जीवन के सत्यार्थ पथ का मार्ग प्रशस्त करता है यही सनातन परवों का सत्यार्थ उद्देश्य है जो पल प्रहर प्रभा प्रभात निशा संध्या आचरण कि शुद्धता का आवाहन करते हुए निष्पांप, निर्विकार, निश्छल हो आत्मीय बोध के परम् मार्ग परमात्मा के निकट लें जाने का मार्ग प्रशस्त करता हुआ जन्म जीवन के मूल उद्देश्य मोक्ष का नाविक बनता है!
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश