Bekhouff Ishq - 4 in Hindi Love Stories by kajal jha books and stories PDF | बेखौफ इश्क - एपिसोड 4

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बेखौफ इश्क - एपिसोड 4

बेखौफ इश्क – एपिसोड 4बदलाव की दस्तक, रिश्तों की अग्निपरीक्षाशहर की सुबह तेज़ ठंडी थी, मगर आयाना के भीतर नई गर्माहट थी। स्कूल के वार्षिक प्रतियोगिता का दिन आ गया था। संस्कार और आयाना दोनों तैयार थे— सिर्फ़ प्रतियोगिता के लिए नहीं, बल्कि अपने डर, कमजोरी और सपनों को सबके सामने रख पाने के लिए। स्कूल में माहौल उमंग भरा था; हर तरफ तैयारी, चर्चा और उम्मीदें।प्रतियोगिता का रोमांचअखबार के लिए लिखी कहानी “दिल की आवाज़” को आज मंच पर पढ़ना था। आयाना ने जब संस्कार के साथ मंच पर कदम रखा, उसका दिल जोर से धड़क रहा था। संस्कार ने उसकी हथेली थामी।
“घबराना मत, तुम खुद पर भरोसा रखो,” वह फुसफुसाया।मंच से नीचे रूहीही अपनी बहन को देख रही थी— उसकी आंखों में गर्व था। माँ पहली बार स्कूल आई थी; दूर से आयाना को देख रही थी। पिता को काम था, लेकिन आज माँ अकेली आयी थी— शायद पहली बार।मंच पर माइक के सामने आयाना रुक गई। उसे बीते कई साल याद आए— टूटने, अकेलापन, प्यार की तलाश, खुद से लड़ाई। फिर उसने कहानी पढ़ना शुरू किया। उसकी आवाज़ गूंज रही थी, आत्मविश्वास और भावनाओं से भरी।“जब दुनिया आपको सुनना छोड़ दे, तब अपने दिल को सुनना चाहिए… जब हर रिश्ते में ठंडापन आये, तब खुद को गले लगाना सीखिए… क्योंकि हर सच्चा बदलाव अपने भीतर से ही पैदा होता है…”संस्कार ने भी शेर सुनाया—
“इतनी गहराई से देखो अपने भीतर
कि बाहर की दुनिया छोटी लगने लगे…”मंच के नीचे सन्नाटा था; हर किसी ने दर्द और उम्मीद का संगम महसूस किया।पुरस्कार और आत्मसम्मानएपिसोड के बीच में ही पुरस्कारों की घोषणा हुई। आयाना और संस्कार को “सर्वश्रेष्ठ प्रेरणादायक प्रस्तुति” की ट्रॉफी मिली। आयाना के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी— यह सम्मान ज़रूरी नहीं था, मगर अपने लिए एक नई शुरुआत थी। रूही ने दौड़कर बहन को गले लगाया। माँ भी पास आई और पहली बार गर्व से मुस्कुरा दी।आयाना ने संस्कार की ओर देखा— उसने हल्के में बोला, “तुम्हारे बिना यह मुमकिन नहीं था।”
संस्कार ने मुस्कराकर कहा, “अब तुम जानती हो, अंदर की आवाज़ कभी कमज़ोर नहीं होती।”परिवार में नई सुबहघर लौटने पर माहौल बदला-बदला था। पिता देर शाम आये, और माँ ने उनके सामने पहली बार आयाना की उपलब्धि का ज़िक्र किया। पिता ने संकोच में सिर हिलाया।
“अच्छा किया है…”
माँ ने रसोई में बेटी की ट्रॉफी सजा दी।रात को आयाना अपने कमरे में किताब पढ़ रही थी; माँ पास आई और कहा,
“शायद मैं अब समझती हूँ, तुम कितनी मजबूत हो।”आयाना ने माँ का हाथ थाम लिया। माँ की आँखों में प्यार था, जो पहली बार खुलकर नज़र आया।संस्कार के संघर्ष का सचसंस्कार का घर आज भी मुश्किलों से घिरा था— पिता की शराब की आदत, माँ के आंसू। लेकिन अब संस्कार ने आयाना से साझा किया कि वह पिता का इलाज करवाने के लिए पैसे जोड़ रहा है।
“हर दिन मुश्किल लगता है,” उसने उदास स्वर में कहा, “पर अब तुम्हारा साथ है, तो थोड़ा हिम्मत आ जाती है।”आयाना ने उस रात पहला वादा किया—
“तुम अकेले नहीं हो।”संस्कार ने मुस्कुराकर हाँ कहा—
“शायद यही प्यार होता है… सब कुछ बांटना, बिना डरे।”दोस्ती से प्यार तकअब दोनों की दोस्ती में प्यार की एक धीमी, मगर मजबूत लहर थी। स्कूल में लोग उन्हें देखकर खुश होते थे। रूही ने एक दिन आयाना से पूछा—
“संस्कार तुम्हारे लिए क्या है?”
आयाना ने मुस्करा कर जवाब दिया,
“शायद… मेरी रौशनी।”दोनों के रिश्ते में अब टकराव कम था, समझदारी और अपनापन बढ़ गया था। संस्कार ने एक शाम पार्क में बैठकर आयाना का हाथ थामा—
“अगर कभी मैं टूट जाऊं, तो क्या तुम मुझे समेट लोगी?”
आयाना ने कहा,
“अगर टूटना ज़रूरी है, तो मैं हर बार तुम्हारे साथ रहूंगी।”खुद की तलाशअब आयाना स्कूल लाइब्रेरी में खुद के लिए किताबें पढ़ती थी— मनोविज्ञान, आत्मसम्मान, रिश्तों पर किताबें। उसे खुद को समझना अच्छा लगने लगा था। संस्कार और वह साथ बैठे अपने भविष्य की बातें करते, सपनों के शहर खींचते।एक दिन संस्कार ने कहा,
“क्या तुम कभी डरती हो, कि प्यार खत्म हो जाएगा?”
आयाना ने मुस्कुराकर कहा,
“प्यार कभी खत्म नहीं होता— बस बदलता है।”बदलाव का फैसलाएपिसोड के आखिरी हिस्से में स्कूल के आखिरी दिन थे। संस्कार को बाहर पढ़ाई का मौका मिल गया था— उसे एक नई जगह, नई शुरुआत के लिए जाना था। आयाना की आंखों में खुशी और डर दोनों थे।संस्कार ने विदाई के दिन आयाना से कहा—
“अगर कभी दूर जाऊं, तो याद रखना… तुम मेरी सबसे बड़ी ताकत हो।”आयाना ने चुपचाप उसकी किताब में एक पंक्ति लिख दी—
“तुम्हारे बिना भी मैं उड़ना सीख सकती हूँ।”दोनों ने गले लगकर विदा ली। रूही और माँ भी आयाना के साथ थीं— अब उनका प्यार और समझ आयाना की मजबूत दीवार बन गई थी।