Family of Shadows - Part 1 in Hindi Detective stories by Sagar Joshi books and stories PDF | Family of Shadows - Part 1

Featured Books
Categories
Share

Family of Shadows - Part 1

धनी और प्रभावशाली परिवार के मुखिया, रघुनाथ देशमुख, की अचानक मृत्यु हो जाती है। परिवार के सभी सदस्य उनके अंतिम संस्कार और वसीयत पढ़ाई के लिए पुराने हवेली में एकत्र होते हैं।

लेकिन हवेली में आते ही अजीब घटनाएँ शुरू हो जाती हैं। बारिश और भूस्खलन की वजह से हवेली से बाहर जाना असंभव हो जाता है। धीरे-धीरे, परिवार के सदस्य एक-एक कर मरने लगते हैं।

पुरानी दुश्मनी, छुपे रहस्य और अधूरी इच्छाएँ सामने आती हैं। यह स्पष्ट होता है कि कहतार में कोई हत्यारा है, लेकिन वह कौन है, यह कोई नहीं जानता।


🕵️‍♂️ मुख्य पात्र

1. रघुनाथ देशमुख (स्वर्गीय) – परिवार के मुखिया, कठोर और शक्तिशाली।


2. सविता देशमुख (पत्नी) – शांत दिखती हैं, लेकिन उनके पास पति और परिवार के बारे में छुपे रहस्य हैं।


3. राजेश (बड़ा बेटा) – अभिमानी और कर्ज में डूबा हुआ, मुख्य उत्तराधिकारी।


4. किरण (छोटा बेटा) – दयालु लेकिन वर्षों से विदेश में रहने के कारण परिवार से दूर।


5. आशा (बेटी) – शादीशुदा, राजनीतिक परिवार से, अपने भाईयों से नाराज।


6. इंस्पेक्टर अर्जुन मेहरा – दूसरे हत्या के बाद पहुँचता है, तेज और सतर्क, अपने अतीत से परेशान।


7. माया (घर की नौकरानी) – परिवार के छुपे रहस्यों को जानती हैं।


8. अधिवक्ता श्री कपूर – वसीयत का कार्यपालक, परेशान और रहस्यमय।



🌧️ वातावरण

देशमुख हवेली – विशाल, पुराने चित्रों और छिपी गलियारों वाली हवेली।

तीन तूफानी रातें – हवेली से बाहर जाना मुश्किल, डर और रहस्य बढ़ाते हुए।





अध्याय 1 – हवेली का आगमन और वसीयत का रहस्य






बरसात की बूँदें पुराने देशमुख हवेली की छतों और खिड़कियों से टकरा रही थीं। हवेली का विशाल द्वार धीरे-धीरे चरमराता हुआ खुला और अंदर की हवा में मिट्टी, पुराने फर्नीचर और घिसी हुई कालीनों की महक घुली हुई थी। बाहर से आती हल्की बिजली की चमक हवेली की खिड़कियों के रंग-बिरंगे कांचों पर पड़कर अजीब परछाइयाँ बना रही थी।

परिवार के सभी सदस्य एक-एक कर हवेली में पहुँच रहे थे।
सविता देशमुख, लंबे सफेद साड़ी में सजी, चुपचाप पीछे की सीट पर बैठी थीं। उनके हाथ में पति रघुनाथ की पुरानी घड़ी थी, जिसे वह बार-बार निहार रही थीं। उनका चेहरा शांत था, लेकिन आँखों में हल्की बेचैनी झलक रही थी।

राजेश, बड़ा बेटा, हवेली के विशाल हॉल में कदम रखते ही चारों ओर देखने लगा। दीवारों पर लगे अपने पिता के बड़े-बड़े चित्र, जिसमें रघुनाथ की कठोर और सख्त नजरें थीं, उसे बेचैन कर रही थीं।
“ये हवेली… हमेशा डरावनी लगी, लेकिन आज और भी अजीब लग रही है,” राजेश ने धीरे से कहा।

किरण, छोटा बेटा, विदेश से अभी-अभी लौटा था। वह शांत और गंभीर मुद्रा में खड़ा था, लेकिन उसके चेहरे पर एक सोच का अँधेरा था। उसे लगता था कि हवेली की हर दीवार कुछ छुपाए हुए है, और हर आवाज़ एक संकेत है।

आशा, बेटी, जो राजनीतिक परिवार में शादीशुदा थी, अपने भाईयों से कुछ दूरी बनाए हुए थी। उसकी आँखों में हल्का गुस्सा और बेचैनी झलक रही थी।

हवेली का मुख्य हॉल भारी और दबावपूर्ण लग रहा था। बड़े- बड़े पोर्ट्रेट, प्राचीन फर्नीचर और दीवारों की खड़खड़ाहट ने एक अजीब सा डर पैदा कर दिया था। बाहर बारिश का शोर अंदर की खामोशी में गूँज रहा था।

अधिवक्ता श्री कपूर ने सभी को इकट्ठा किया और गंभीर स्वर में कहा,
“मैं रघुनाथ देशमुख जी की अंतिम वसीयत पढ़ने जा रहा हूँ। आप सभी सुनें, क्योंकि इसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। किसी को भी नहीं पता कि किसे क्या मिलेगा।”

सभी की आँखें अधिवक्ता की ओर टिकीं। कुछ लोग उत्सुक थे, कुछ घबराए हुए।

श्री कपूर ने धीरे-धीरे वसीयत पढ़नी शुरू की।

> “मैं, रघुनाथ देशमुख, अपनी संपत्ति और सम्पत्ति संबंधी अधिकार इस प्रकार वितरित करता हूँ…

मेरी पत्नी, सविता देशमुख, हवेली और सम्पत्ति का पूर्ण नियंत्रण रखेंगी, जब तक वे जीवित रहें।

मेरा बड़ा बेटा, राजेश, अपने व्यवसाय में हिस्सेदारी केवल सीमित लाभ के लिए प्राप्त करेगा।

छोटा बेटा, किरण, केवल कुछ नकद और चल संपत्ति का अधिकारी होगा।

मेरी बेटी, आशा, केवल गहनों और व्यक्तिगत वस्त्रों की मालकिन होगी।”




शब्दों का अर्थ धीरे-धीरे परिवार पर स्पष्ट होने लगा।
राजेश की आँखें चमक गईं, लेकिन चेहरे पर गुस्सा और निराशा का मिश्रण झलक रहा था।
“क्या… क्या यह संभव है? पूरे बिज़नेस का नियंत्रण माँ के पास? ये तो पागलपन है!” उसने कड़ा स्वर में कहा।

किरण ने चुपचाप सिर झुकाया, उसके चेहरे पर असहमति और हताशा साफ थी।
आशा ने धीरे से फुसफुसाया, “मैं… केवल गहनों की मालकिन? इतने सालों की मेहनत और सम्मान का क्या?”

सविता देशमुख शांत रहकर बस मुस्कुरा रही थीं, पर अंदर उनका मन तेज़ धड़क रहा था। यह मुस्कान किसी को डराने वाली, किसी को चौंकाने वाली थी।

श्री कपूर ने वसीयत पढ़ते हुए बताया कि हवेली और अधिकतर संपत्ति पर सविता देशमुख का नियंत्रण रहेगा, जब तक वह जीवित हैं।
हॉल में एक अजीब सा तनाव फैल गया।

तभी, हवेली के बाहर से एक हल्की खड़खड़ाहट की आवाज़ आई, जैसे कोई पुरानी खिड़की या दरवाजा धीरे-धीरे खुला हो। सभी की निगाहें तुरंत बाहर की ओर गईं।

राजेश ने घबराकर कहा, “कौन है वहाँ?”
लेकिन कोई जवाब नहीं आया। केवल बारिश की तेज़ बूँदें और हवेली के अंदर की खामोशी ही गूँज रही थीं।

हवेली का मुख्य हॉल अब गूँज रहा था गुस्से और आहों से।
राजेश ने अपनी कुर्सी धक्का देकर उठी और क्रोध से बोला,
“मैं इस फैसले को स्वीकार नहीं करूँगा! पूरी कंपनी और हवेली मेरे हिस्से की है!”

किरण ने शांत रहते हुए कहा,
“राजेश, गुस्से से कुछ नहीं होगा। हमें माँ की स्थिति और पिता की इच्छा समझनी होगी।”
लेकिन राजेश ने केवल उसे घूरते हुए कहा,
“तुम हमेशा ऐसे शांत कैसे रह सकते हो, किरण? क्या यह न्याय है?”

आशा ने भी आवाज़ उठाई, “हम सभी ने पिता की सेवा और परिवार की खातिर अपना समय दिया। और अब… केवल माँ के पास सब कुछ रहेगा? यह सही नहीं है।”

सविता देशमुख ने धीरे से हाथ उठाया और कहा,
“राजेश, किरण, आशा… मैं समझती हूँ कि यह सब अचानक और असहमति भरा है। लेकिन यह फैसला आपके पिता का था। मैं केवल उसकी इच्छा का सम्मान कर रही हूँ। मैं आपके अधिकारों को सीमित नहीं कर रही, केवल नियंत्रित कर रही हूँ, जब तक मैं जीवित हूँ। सबको उनका हिस्सा मिलेगा, लेकिन समय पर।”

श्री कपूर ने दस्तावेज़ बंद करते हुए कहा,
“यह वसीयत वैध है और न्यायालय द्वारा मान्य होगी। कोई भी इसके खिलाफ समय रहते चुनौती नहीं दे सकता।”

हॉल में अचानक खामोशी छा गई। हर कोई सोच में डूब गया। हवेली की पुरानी लकड़ी की दीवारों से जैसे किसी ने फुसफुसाया, “सब कुछ वैसा नहीं जैसा दिख रहा है…”

तभी माया, घर की नौकरानी, धीरे से पास आई। उसकी आँखों में डर और बेचैनी दोनों झलक रहे थे।
“मैडम… हॉल के पीछे का दरवाजा… वह खुद-ब-खुद खुला था। जैसे कोई अंदर आया हो,” उसने फुसफुसाते हुए कहा।

सविता ने सिर हिलाया और कहा,
“माया, चिंता मत करो। हवेली में पुरानी खिड़कियाँ और दरवाजे कभी-कभी ऐसे ही खुल जाते हैं।”

लेकिन किरण ने संदेह जताते हुए कहा,
“यह सिर्फ पुरानी हवेली नहीं है, माँ। मुझे कुछ अजीब लग रहा है। जैसे… कोई हमें बाहर से देख रहा हो।”

हवा और बारिश की आवाज़ अचानक तेज़ हो गई। बिजली चमकी और हवेली की दीवारों पर बड़े-बड़े पोर्ट्रेट डरावनी परछाइयाँ डालने लगे।
राजेश ने खिड़की की ओर झाँकते हुए कहा,
“मैं यह महसूस कर रहा हूँ… यहाँ कुछ सही नहीं है। सिर्फ वसीयत ही नहीं, कुछ और भी है जो छुपा हुआ है।”

सविता ने उसे शांत करते हुए कहा,
“सब ठीक है। यह हवेली हमेशा से रहस्यमय रही है। डर के आगे मत बढ़ो। अपने पिता की इच्छा का सम्मान करो।”

लेकिन सब जानते थे कि यह सिर्फ शुरुआत थी। हवेली में कोई छिपा हुआ खतरा उनके इर्द-गिर्द घूम रहा था, और पहला संकेत अब धीरे-धीरे प्रकट हो चुका था।

हवेली की पुरानी लकड़ी की दरारों और खिड़कियों के पीछे, किसी की सर्द नजरें सभी पर टिकी थीं।
और यह नजरें सिर्फ वसीयत के फैसले को देख रही नहीं थीं… बल्कि किसी बड़े राज़ की निगरानी कर रही थीं।