Shrapit ek Prem Kahaani - 3 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 3

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 3


दक्षराज को एक गेरुआ वस्त्र पहनने ध्यान में लीन एक बाबा दिखई देता है। जिनकी बड़ी बड़ी दाड़ी मुछे , तथा हाथ , पैर औऱ मुह में भस्म लगा था । "



और उनके दोनो और एक एक सेवक खड़े थे , ताकी बाबा के ध्यान में कोई बाधा ना आए । बाबा के पास एक त्रिसुल था और सामने  कुछ मानव खोपड़ियां।



वो बाबा ध्यान मे मग्न था ।


ये बाबा कोई और नहीं बल्की  अघोरी बाबा है। दक्षराज अघोरी बाबा के सामने हाथ जोड़ कर चुप चाप खड़ा था । तभी बाबा ध्यान में रहते ही कहता है ।

अघरी बाबा ---- आ गए तुम दक्ष ! आखिर इतने दिनो बाद तुम्हें मेरी याद आ ही गई । मेरे इतने बुलावा भेजने पर भी तुम नहीं आए। परंतु मुझे विश्वास था के एक दिन तुम मेरे पास जरुर आओगे , जब तुम्हें मेरी जरुरत पड़ेगी और जब तुम्हे अपनी भूल का आभास होगा । परंतु तुम आने मे इतना देर कर दोगे ये ज्ञात नहीं था।




इतना बोलकर अघोरी अपनी आंखें खोल देता है। बाबा के बिना देखे ये जान जाना के कौन आया है । कुछ दैर के लिए दक्षराज हैरान था पर ये बात दक्षराज को पता था के बाबा को यहां के हर चिज की जानकारी होती है। दक्षराज बाबा को प्रणाम करते हुए कहते हैं। 

दक्षराज --- बाबा मुझे क्षमा कर दीजिए...।( और रोते हुए बाबा के पैरो में गिर जाता है। दक्षराज रोते हुए कहता है ) मुझे मेरी भूल का आभास हो गया है बाबा । मैने आपकी बात को अनसुना किया । जिसका बोध मुझे हो चुका है और मैं उस परी के श्राप का दंड भी मैं भोग रहा हूँ । बाबा देखिए ना ये सब क्या हो रहा है मुझे । मेरा शरीर ----- मेरा शरीर कैसे गलने लगा है बाबा । आज अमावस की रात और आज मैं पता नही कौन सा जानवर बनूगां और किस जानवर के साथ संभोग करुगां । हर अमावस मैं एक नए जानवर का रुप मुझसे सहा नही जाता ।




दक्षराज अपने बदन से चादर को हटा है और कुर्ता को ऊपर करके अपना हाथ और पीठ बाबा को दिखा कर कहता है। 




दक्षराज ---- देखिए बाबा, ये क्या हो रहा है मुझे। मैं किसी के पास जाकर बैठ भी नही सकता । 




अघोरी बाबा देखता है के दक्षराज के शरीर में गहरे घाँव लगे थे, जहां से खून भी निकल रहे थे । अघोरी दक्षराज से कहता है ।



बाबा ---- मैने तो तुम्हें पहले ही चेताया था के अगर उसके सुंदरता पर मोहित हूए तो साधना भंग हो जाएगी । पर तुमने उसको साथ संभोग किया जो कभी नही करना था ।



अब तुम्हे मृत्यु भी नहीं आएगी क्योंकि तुमने उससे 10 जीवन चक्र मिल गया है और आगे भी सभी उसका जीवन चक्र मिलता रहेगा । अब जीवन भर तुम्हें ये श्राप भोगना पड़ेगा । 



दक्षराज अघोरी बाबा से कहता है। 



दक्षराज ---- बाबा ऐसा ना कहो बाबा । मैं मानता हूँ के मुझे से भूल हूई है । मुझे नही पता था के वो परी मेरा परिक्षा लेगी , बाबा मेरी तपस्या भंग होने से मैं अपने क्रोध पर नियंत्रण नही रख पाया और उसके साथ
संभोग कर लिया ।



अघोरी बाबा कहता है ।



बाबा ---- इसका केवल एक ही मार्ग है और वो भी असंभव है । अगर तु इसे कर पाया तो ही तु इस श्राप से मुक्त हो पाएगा । अन्यथा तु इस श्राप को वर्षो तक भोगता रहेगा ।

दक्षराज झट से कहता है ।



दक्षराज --- नही नही बाबा ---- आप मुझे बस मार्ग बताईए । कोनसा मार्ग बाबा ? आप मार्ग बताओ बाबा मैं  इस अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं । मैं हर असंभव को संभव कर दूगां ।



अघोरी ----- मैं तुम्हें हमेशा के लिए तो नही परतुं प्रत्येक महिना के एक रात के लिए तुझे इस श्राप से मुक्ती दे सकता हूँ । जिससे तेरा शरीर नव युवान की तरह हो जाएगा । ताकी तु भी संसार का सुख भोग सको । मैं जानता हूँ के इस श्राप के कारण तुने विवाह तक नही कि़या --- ताकी तेरी इस अवस्था का भान किसी को ना हो ।




 इसिलिए मैं तुझे एक उपाय बताता हूँ । जिसे करने के बाद तु एक पात के लिए किसी के साथ भी संभोग कर पाएगा और अपनी शरीर की प्यास को बुझा पाएगा ।



अघोरी बाबा की बात को सुनकर दक्षराज कुछ दैर के खुश हो जाता है । पर ये उपाय सिर्फ एक रात के लिए था । और वो हमेशा के लिए इस श्राप से मुक्त होना चाहता था ।




तभी दक्षराज अघोरी बाबा से कहता है ।


दक्षराज ---- और हमेशा के लिए क्या उपाय करना होगा बाबा ?



 अघोरी एक गहरी सांस लेता है और कहता है । 

बाबा ---- हमेशा के लिए जो उपाय मैं बताने जा रहा हूँ --- वो बहोत ही कठिन है । तुम्हें इस श्राप से हमेशा के लिए मुक्ती सिर्फ एक ही मणी दिला सकती है और वो है मेघ मणि...! तुम्हे मेघ मणि ढूंढनी होगी । 



मेघ मणि का नाम सुनते ही दक्षराज एकदम चुप हो जाता है । क्योकी वह जानता था के ये मणी कोई साधारण मणी है यो मणी देत्यो के पास रहता है । जिसे पाना नामुमकिन था ।



दक्षराज एक गहरी सांस लेता है और फिर कहता है । 

दक्षराज ---- मेघ मणि । मतलाब वो देत्य मणि ---- जिससे कुम्भन दस सालो से दुंढ़ रहा है ?



अघोरी कहता है ।



बाबा ---- हां दक्ष वही देत्य मणि..! अब केवल वही मणि है जो तुम्हें तुम्हारे इस अभिशाप से मुक्ति दिला सकती है ।


अगर तुम उसे पाने मे सफल रहे तो तुम इस श्राप से हमेशा के लिए मुक्त हो जाओगे और कभी तुम पर बुढ़ापा नही आएगा ।



 दक्षराज कहता है ।


दक्षराज --- पर बाबा जब कुम्भन को ये पता चलेगा के मैने मणि का उपयोग अपना अभिशाप से मुक्ति पाने के लिया है तब तो वो मुझे मार देगा ना बाबा। और जब  कुंभन इतने वर्षों में उस मणि को नही ढुंढ पाया तो में कैसे ? वो मणी कहां है किसके पास है ये कोई नही जानता ।




अघोरी गुस्से से कहता है । 



बाबा ---- जो कोई नही ढुंड पाया उसे तुम्हें ढपजना है वो कुम्भन इस जंगल में मंत्रो से बंधा है इसिलिए वो मणि नहीं ढुंढ पा रहा है । पर जिस समय वो यहां से आजाद होगा वो जरूर ढुंढ लेगा । इसिलिए तुम्हें बता रहा हूं के कुंम्भन के यहां से निकलने से पहले ही तुम मेघ मणि को ढुंढ लो और अभिशाप से मुक्त हो जाओ । 


अघोरी बाबा कहता है ।



बाबा --- एक बात और दक्षराज जिसके पास ये सांतक और मेघ मणि होगी उससे कोई हरा नहीं सकता । कुंभ्मन भी नहीं क्यूंकी दौनो मणियें की शक्तियां समान होती है। और ये जिसके पास होगी वो सबसे शक्ती शाली होगी। पर तुम्हें ये कार्य इसी जन्माष्टमी को करनी होगी क्योंकि उसके पास केवल 2 ही जीवन चक्र है और तुम्हे 1 जीवन चक्र रहते ही यह कार्य पूरा करना होगा ।
 क्योंकि अगर तुमने इस जन्माष्टी को ये कार्य पूर्ण नहीं किया तो उसके जीवन चक्र समाप्त हो जाएंगे और तुम्हारे ये अभिशाप उसके जीवन आयु के हिसाब से भोगना पड़ेगा जो हजारो वर्षो तक होगा ।




अघोरी से इतना कहने के बाद दक्षराज कहता है ।



दक्षराज ---- नहीं नहीं बाबा मैं इस श्राप से मुक्त होने के लिए उय मणी को कही से भी ढुंड कर ले आउगां मैं इस श्राप को और नही भोग सकता । मैं किसी भी कीमत पर उस मेघ मणि को इस जन्माष्टमी तक ढुंढ लुंगा बाबा ----- मैं ढुंढ लुंगा । 


तभी अघोरी बाबा फिर से कहता है । 


बाबा --- दक्षराज तुम्हें एक कार्य और करनी होगी । 


दक्षराज हाथ जोड़ लेता है और कहता है ।


दक्षराज --- आदेश करे बाबा । 

अघोरी कहता है । 

बाबा --- तुम्हें उन दो मणि को लेकर उसी रात उसी झरने के पास जाना होगा और दोबारा से परी साधना करनी होगी । जब वो परी तेरे पास आएगी तब तुझे उसके साथ संभोग करना होगा । वो परी तेरे इस शरीर से सारे श्राप को खतम कर देगी । संभोग करने के बाद तु और वो परी दोनो को ही उस झरने पर स्नान करना होगा । उसके बाद तु श्राप मुक्त हो जाएगा । 



अघोरी फिर कहता है ।


अघोरी :- वो परी तेरे शरीर को दैखकर तुझसे संभोग नही करना चाहेगी । पर तुम अपने बात पर अडिग रहना वो तुम्हें कई और प्रलोभन देगी । ताकी तेरे इस गंदे के साथ उसे संभोग ना करना पड़े । परंतु तेरे अडिग रहने से वो तेरे साथ संभोग करने के लिए विवश हो जाएगी । क्योकी तुम उस साधना को करने मे सफल हूए हो और संभोग की इच्छा से ही ये साधना कर रहे होगें । तुम्हारा अडिग रहना ही तुम्हे श्राप से मुक्ती देगी । एक बात और परी के साथ संभोग से पहले तुझे मेघ मणी तो शुद्ध करना होगा और उसे शुद्ध करने के लिए तुझे एक मानव के रक्त से उस मणी का अभीषेक करना होगा । और उस इंसान की छाती के रक्त से मेघ मणि को अभिषेक करना होगा । तब ये मणि शुद्ध होगा और तेरा कार्य पूर्ण होगा और तु श्राप से मुक्त हो जाएगा ।


To be continue.....29