बड़े बॉस ‘दुखी राम शर्मा’ की बिदाई
आज ऑफिस के बड़े बॉस डी आर शर्मा की बिदाई का दिन था, शाम चार बजे शुभ मुहूर्त था. यह तो पता नहीं कि उनके ऊपर क्या गुज़र रही थी, पर पूरे ऑफिस के आम कर्मचारियों के लिये बड़ी ख़ुशी का दिन था. छोड़ कर उनके ख़ास चमचे सुरेन्द्र मिश्रा के. लोग कई महिने से हिसाब लगा रहे थे, दिन गिन रहे थे कि कब उनका ‘सैडिस्ट’ भेडिये’ से छुटकारा मिलेगा. ऑफिस कोई फ़ौज का परेड ग्राउंड नहीं था, न ही दुबले-पतले, सीक-सलाई गंजे साहेब बिहारी बाबू ‘दुखी राम शर्मा’ कोई कड़क फील्ड मार्शल या कमांडर. वे तो फ़ौज के किसी हवलदार मेजर की वर्दी पहनने के लायक भी सेहत या पर्सनलिटी नहीं रखते थे. पर उन्होंने ऑफिस में अपने काम करने के तरीके से आतंक मचाया हुआ था. मजाल कि कोई उनके संपर्क में आये बिना दुखी हुए चला जाए.
कभी वे तेज दिमाग रहे होंगे, पढाई में होशियार रहें होंगे सो सीधे पढाई के बलबूते व भाग्य से यूपीएससी की परीक्षा पास कर सीधे अफसर बन गए थे और लम्बी सर्विस के अंतिम दिनों में अपनी सिक्यूरिटी आर्गेनाईजेशन की नंबर दो पोजीशन पर पहुँच गए थे. वह पिछले दो साल से इस बात से दुखी थे उन्ही की सीनियरटी और बैच का अफसर उनका बॉस बन गया था, जब कि उनके विचार से वे ज्यादा काबिल थे, ऑफिस में भी रोब दाब उनका चलता था न कि ठंडे दिमाग के चीफ सिन्हा साहेब का. लोग उनके सामने नहीं पड़ते थे जब भी उन्हें गर्दन झुकाए गेलरी से आता देख कर लोग बाग़ छिप जाते थे, या वापिस लौट जाते थे वर्ना बिना कारण डांट पड़ना लगभग तय था. स्टाफ को ऐसे घबराते देख कर उन्हें बड़े आनंद का अनुभव होता था.
वे न अपने नीचे वालों से कभी खुश रहते थे न ही अपने से सीनियर को सीनियर वाला सम्मान देते थे. लोगों ने उनके लिये कोड नाम ‘भेड़िया’ रखा हुआ था. उनका नाम था ‘डी आर शर्मा’. सभी लोग यही जानते थे कि उनका पूरा नाम ‘दुखी राम शर्मा’ है यही प्रचलित था तथा नाम के अनुरूप ही उनका स्वभाव था, खुद भी दुखी रहते हैं और दूसरों को भी दुखी कर खुश होने वाले इंसान थे. सर्विस बुक के रिकॉर्ड में उनका नाम डी आर शर्मा था न कि उनका असली पूरा नाम धनञ्जय राम शर्मा. पर किसने उनका नाम दुखी राम शर्मा चलाया यह रिसर्च का विषय हो सकता है? मनुष्य का स्वभाव है सीधी सच्ची बात से ज्यादा उल्टी सीधी ज्यादा अपील करती है जल्दी रजिस्टर होती हैं. ग्रामीण उक्ति है,’गांव बसी किसी ने ना जानी, कुत्तों फाड़ी सबने जानी’. कहना नहीं होगा अच्छी चीज़ों से खबर नहीं बनतीं.यह नाम इतना हित हुआ की सब को यही था कि वे दुखी राम ही हैं, यह उनके व्यवहार पर भी ठीक बैठता था.
तीन महीने पहले मुंबई स्टेशन से बदली होकर हेड क्वार्टर में आया एक नया अफसर, जो शर्मा जी को नहीं पहिचानता था, अपने पहले ही दिन उनके पल्ले पड़ गया था, हुआ यूं कि शर्मा जी एक फाइल लेकर चीफ के चैम्बर को कुछ डिस्कशन के लिये जा रहे थे. अफसर उनको अनदेखा कर, बिना विश किये उनके बराबर से गुज़र गया, शर्मा जी को कहाँ यह बर्दाश्त होता? जोर से लगभग चिल्लाते हुए उन्होंने उस अफसर को डांटते स्वर में कहा,”स्टॉप, हू यू आर, व्हाट अरे यू डूइंग हियर?”
उसने शालीनता से उत्तर दिया, “जेंटलमैन, मेरा नाम पी वी सुब्बाराव है, मैं मुंबई पुलिस से डेपुटेशन पर हूँ वहीँ पोस्टेड था, आज ही पहली बार इस हेड क्वार्टर आया हूं, अभी चीफ से मिल कर आया हूं जिन्होंने मुझे मिलने के लिये बुलाया था.”
कुछ रूक कर उसने कहा, “नाऊ जेंटलमैन, टेल मी हू यू आर, एंड व्हाई यू आर एंग्री एंड शाऊटिंग ऑन मी?”
सुब्बाराव को अंदाजा नहीं था कि यह साधारण सी पर्सनलिटी वाला बुज़ुर्ग व्यक्ति कौन हो सकता है? उसे लगा कोई गरम मिजाज़ वाला सिक्यूरिटी ऑफिसर हो सकता है, जिनका काम ही पूछना ताछना और रोब ग़ालिब करना होता है तथा उसे कोई नया जूनियर कर्मी मान कर इस तरह से झाड रहा है.
उधर से गरज कर डांटती आवाज़ आई, “डोंट यू नो आई एम ‘एस.एस.एस. -द बॉस हेयर”
सुब्बा राव समझ गया कि अनजाने में वह गलत फंस गया है, उसे पता था ‘ट्रिपल एस’ तो सबसे ख़तरनाक यहाँ का सीनियर ऑफिसर है जिस से सब लोग बहुत घबराते हैं और मनाते हैं कि वह जल्दी से रिटायर हों और उससे पीछा छूटे, यहाँ वह खुद ही इन बब्बर शेर के सामने हाज़िर हो गया है. वह तो यह मुम्बई में सुन लिया था उसने तुरंत ही स्थिति संभालते हुए कहा, ”वैरी, वैरी सॉरी सर, थिस इज माई फाल्ट, नोट टू रेकोगनाईज यू बीइंग न्यू, ओनर्ड टू मीट यू सर.”
कुछ रूक कर बोला “अब आपके ऑफिस जाकर आपके पी एस से आपका अपॉइंटमेंट लेने ही तो मैं जा रहा था.”
सुन कर शर्मा जी थोडा सा नरम पड़े, और कहा “ठीक है, ठीक है,” पर जाते जाते हुए भी एक सवाल पूछ ही लिया,”पहचानते नहीं थे पर अब क्या जान गए हो तो मेरा नाम तुम्हें पता भी है?
“जी सर, जानता हूँ, श्री दुखी राम शर्मा, सर, स्पेशल सेक्रेटरी (सिक्यूरिटी) बड़े बॉस”
सुब्बाराव खुश था कि उसने पूरा नाम अच्छी तरह बता दिया, लोगों को सबसे प्यारा शब्द अपना नाम ही तो लगता है.
एक दम बम्ब की तरह फट कर शर्मा जी चिल्लाएं, ”क्या बकवास है?!!!!, किसने यह नाम बताया!!! किस से सुन कर आये, या तुम मेरी इंसल्ट कर रहे हो?”
सुब्बाराव घबरा गया, उस की समझ में नहीं आया था उसने अब क्या गलती की है?
वे जोर जोर से बोलते जा रहे थे “नहीं, नहीं मेरा नाम है डी आर शर्मा.... धनञ्जय राम शर्मा है”...... अब चार बजे मेरे ऑफिस में आना. सब समझा दूंगा.”
इस धमकी से सुब्बाराव का मुंह सूख गया था, वह बेचारा सोच रहा था कि उस दिन सुबह किस मनहूस का मुंह उसने देखा था. वह तो वही नाम जानता था जो उसने कई बार कई लोगों से सुना था. हेड क्वार्टर में पहले ही दिन क्या पहले ही घंटे में यह होना था, कहावत सर मुंडाते ही ओले पड़ना नहीं था तो यह और क्या था? सुब्बा राव ने चार बजे भी जा कर उनकी बची कुची झाड खाई, कान पकडे अब जहाँ तक हो सकेगा इन बड़े बॉस से दूर रहेगा और सुब्बाराव का पूरा दिन, पूरा मूड बिलकुल ख़राब हो गया था.
ऑफिस में और बहुत से लोगों के लिये तो यह बड़ी मनोरंजक घटना थी. कई लोगों ने तो मिलते ही उसे बधाई दी कि अनजाने ही सही दुखी राम को उसके मुंह पर ही दुखी राम तो उसने कहा. असल में कॉरिडोर में शर्मा जी जब ऊँचे स्वर में उस पर चिल्ला रहे थे आस पास के बंद दरवाज़ों से सब लोग कुछ कान लगा कर सुन रहे थे, कई लोगों ने बिलकुल ज़रा ज़रा सा दरवाजा खोल कर इस घटना का नज़ारा भी देखा. और बहुत ज़ल्दी बहुत लोगों ने नमक मिर्च लगा कर काफी लोगों को बता दिया था, बात आग की तरह चारों और खूब तेजी से फ़ैल गयी थी. इतनी जल्दी बहुत से लोग उसे इसी घटना से जानने लगे थे.
खैर, इस घटना को कई महीने हो गए थे जब उस दिन शर्मा जी की बिदाई होने वाली थी. वह दिन 31 अक्टूबर की शाम का समय था, जब शर्मा जी की रिटायर होने पर बिदाई हो रही थी. पहले तो यह तिथि लौह पुरुष सरदार पटेल के जन्मदिन के लिये विशेष मानी जाती थी. उनका जन्मदिन धूम धाम से मनाया जाता था, पटेल चौक पर उनकी मूर्ति पर इस दिन हमेशा से माल्यार्पण होता आया था पर 1984 में इसी 31 अक्टूबर की तारीख में श्रीमती इंदिरा गाँधी की उन्ही के दो गार्डों बयंत सिंह और सतवंत सिंह ने उनकी हत्या की थी. तब से कांग्रेस सरकार सरदार पटेल के जन्मदिन के स्थान पर यह तारीख एक शौक दिवस बन गयी थी. पटेल के जन्मदिन को लोग उन दिनों मनाना थोडा थोडा भूल सा गए थे, या कहें वह गौण हो गया था.
आज इस ही महत्वपूर्ण 31 अक्टूबर तारीख को शर्मा जी की बिदाई होने की अति ऑफिस की बड़ी महत्वपूर्ण घटना घटित हो रही थी. सरकारी सिविल नौकरियों में यह प्रोग्राम तो छोटा सा होता है, फौज की तरह कोई परेड वरेड नहीं होती या बैंड-बाजे नहीं बजते, केवल ऑफिस बंद होने से दो घंटे पहले चायपान, स्वागत में उनके सर्विस में अच्छे कामों और विभाग में क्या योगदान की बातें, जाने वाले के बारे में थोडी खट्टी मीठी बातें, साथ कार्य करने वालों के चटपटे संस्मरण, फूलों की मालाएं, जाने वाले की धन्यवाद् स्पीच और कुर्सी पर बैठा कर बाहर तक छोड़ देना, एक साधारण सा साफ़ सुथरा तरीका चला आ रहा है.
यह तो आम सीनियर ऑफिसर्स की बात थी पर शर्मा जी तो आम नहीं थे, उनके बीस पच्चीस वर्ष के इस विभाग के ही लम्बे कार्यकाल में सरकारी कार्य करने के साथ साथ उन्होंने अपने भी काफी तुगलकी फरमान चलाये थे, विशेषरूप से अंतिम दो अढाई वर्षों में जब वे लगभग उप्र्री सौपान पर पहुँच गए थे बस चीफ नहीं बन पाए थे. जब कि उन्ही की बराबरी कि वरीयता के सिन्हा जी चीफ पद पा गये थे. इस बात की उन्हें कमी बहुत खली थी. वे ईमानदार थे, मेहनती भी थी, कार्य कुशल भी थे. अपने बारे में उनकी राय बहुत अच्छी थी. अपने को बाकी लोगों से ज्यादा बेह्तर समझते थे. पर साथ साथ वे हद दर्जे के इगोइस्ट कहो या अहंकारी कहो थे, इतने आत्म-केन्द्रित और पर-पीडक थे कि जो भी उनके पास जाता परेशान और दुखी हो कर लौटता. वे अपने से ज्यादा बुद्धिमान किसी को नहीं मानते थे. अपने इस अहम् या ईगो के कारण दूसरों को बहुत परेशान और अपना बड़ा नुक्सान किया था. इसी लिये न केवल वे लोग प्रसन्न थे जिनको उन्होंने सताया, या डांटा धमकाया या उपेक्षा की थी, बल्कि वे भी जिनका उनसे कभी कोई मतलब ही नहीं पड़ा था.ऑफिस से आतंक कम होगा ऐसा तो अधिकाँश समझते थे.
यह सर्वमान सत्य है कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अपना अहंकार ही होता है. अहंकार न केवल व्यक्तिगत विकास में बाधक होता है बल्कि परिवार और समाज के लिये भी. दम्भी व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचता है अहंकार के घोड़े पर सवार व्यक्ति कभी चैन की सांस नहीं लेता न किसी और को लेने देता. हमारे शर्मा जी न केवल बाकी ऑफिस के लोग परेशान रहते उनका पर्सनल स्टाफ सबसे ज्यादा दुखी होता. छोटी छोटी बात पर नाराज़ हो जाना, ऑफिस में देर तक बैठे रहना आम बात थी. उन्हें अपने आई.पी.एस.होने का बड़ा गुमान था और उनका बहुत से लोगों को जो अन्य सर्विस से आये होते सुनाने के शौक़ीन थे,”तुम मामले को ज्यादा समझते हो या मैं जो आईपीएस हूँ.” आईऐएस के लिये कहते थे कि वे प्रोफेशनल नहीं होते. बाबू होते हैं ऑपरेशन की बारीकियां नहीं समझ सकते. घूम फिर कर यह कि वे ही सबसे ज्यादा बुद्धिमान हैं. सबसे ज्यादा ठीक निर्णय ले सकते हैं. इसे मनोविज्ञान के कौण से देखें वे एक ‘फिक्स्ड माइंड सेट’ के थे और उनकी लाइफ सिचुएशन थी “आई एम ओ.के. यू आर नोट ओ.के.” यानि केवल मैं ही सही हूँ. इसे में ऐसा आदमी दूसरे की क्यों सुनेगा?
दूसरे व्यक्ति को तुच्छ या छोटा महसूस कराना उनका शौंक था, ऐसे ही अपने ऊपर वाले से पंगा लेना और बहस में हराने का प्रयास उनकी ईगो को सुख देता था. सुना जाता था कि वे अपने बीवी बच्चो को काफी दुखी रखते थे इस लिये घर में भी वे एकाकी थे दफ्तर में भी पर जो इनके ऑफिस में जाता या बुलाते उस पर सारा नजला उतार देते थे. जो भी उनके पास जाता परेशान हे बाहर आता. अगर ऑफिस में उन्हें कोई पसंद आता था वह था सुरेन्द्र मिश्रा जो अगर वे दिन को रात कहते तुरंत मान लेता. शर्मा जी उससे कोल्हू के बैल की तरह काम लेते, बीच बीच में झाड़ते भी रहते पर वह सेवा और भक्ति में कभी कसर नहीं रखता था. वह भी सेवा भक्ति इसलिये करता था कि उनके जाने से पहले प्रमोशन और अच्छी पोस्टिंग मिल जाये. पर यह भी हो न सका भगोड़े वाले एपिसोड ने दोनों गुरु चेलों के अरमानों पर पानी फेर दिया था.
जैसा अक्सर होता है शर्मा जी जैसे व्यक्ति को भी एक दो ऐसे आदमी चाहियें जो जिनके द्वारा वे जो चाहे करवा सकते हैं, उनके अंधभक्त थे सुरेन्द्र मिश्रा. जिनकी विशेषता थी जो भी बड़े बॉस ने उन्हें कहा उस काम को जी भर कर साम दाम दंड भेद जैसे भी हो पाए पूरा कर देना. इस के लिये मिश्रा न दिन देखते थे न रात, न ठीक ना गलत, कोई खुश हो या नाराज. शर्मा मिश्रा की जोड़ी ने लगभग एक अपना अलग ही खोटा सिक्का चला रक्खा था. उनका विभाग ही ऐसा था कि लोगों को डराने का उनके पास साधन तथा स्टाफ था, गेट कि गार्ड, अन्दर का रिसेप्शन, हर एक ऑफिस में ठीक तरह अलमारी बंद है, ताले बंद हैं, लोग कोई दस्तावेज बाहर तो नहीं ले जाते, स्टाफ या अफसर का किसी तरह का किसी अन्य देश के जासूसी करने वाले स्टाफ से किसी तरह का मेलजोल तो नहीं, अर्थात पूरी तरह से निगरानी. अर्थात पूरा काम दूसरों की लापरवाही या गलती पकड़ना था. किसी को भी शक के घेरे के कटघरे में डालने कि क्षमता थी. इस के अलावा शर्मा जी के पास अपॉइंटमेंट, प्रमोशन ट्रान्सफर का विभाग था जो किसी भी कर्मचारी के लिये बहुत महत्व रखता है. इस कारण तथा उन्हें खुद भी दूसरों को सताने में एक तरह का परपीड़क आनन्द आता था, उसके लिये उनका साथी था सुरेन्द्र मिश्रा. आज जब शर्मा जा रहे थे मिश्रा को अनुमान था कि अब उस से कस कस कर बदला लिया जायेगा, उसे तंग किया जाएगा और कोई गन्दी सी पोस्टिंग देकर दिल्ली से कहीं दूर दराज पोस्टिंग पर भगा देना तो निश्चित सा ही लगता था. वह आज अपने दुःख के कारण दुखी था, न कि .दुखीराम’ के जाने के ,उस बेचारे मिश्रा को तो ना माया मिली थी न राम और मुफ्त हुए बदनाम अलग से.
कई बार जिंदगी में अजीबोगरीब हो जाता है, जब आप सब बाधाएं पार करते हुए सर्विस की सीढी की अंतिम सोपान पर आकर लडखडा जाते हो. अभी शर्मा जी के रिटायर होने में सिर्फ छह महीने बचे थे जब वह एपिसोड हुआ था. एक जूनियर पर बहुत मेधावी अफसर ने ही गुप्त सूचना, सुबूत के साथ एक बड़े एस्पयोनेज़ की शर्मा जी दी थी. वह अफसर कई बरस से उनकी नाक के नीचे यह सब कर रहा था और जिसकी उन्हें और उनके स्टाफ को हवा भी नहीं थी. वह देश व महकमे के अन्दर गुप्त जानकारियां अमेरिकन सीआईए देता जा रहा था. इस देशद्रोही को जूनियर अफसर ने ही यह काण्ड करते चुपचाप पकड़ा था. इसके लिये शर्मा जी को जूनियर अफसर अंटोनी कुरियन को श्रेय देकर अपराधी को जेल मे जेल की सजा चाहिए था, पर शर्मा जी को यह कहाँ गंवारा था कि एक जूनियर अफसर वह भी उनकी तरह से आईपीएस भी न हो कैसे उसे बड़े काम का श्रेय दे दिया जाय. वैसे भी अभिमानी व्यक्ति को तो सिर्फ अपना अपना ही ख्याल रहता है उन्होंने पूरा श्रेय लेनें के लिये नए नए प्रयोग दिखाए जैसे उस ‘डबल एजेंट’ ऑफिसर की घर और बाहर सर्वलेंस पर उसमें इतना लम्बा टाइम लगा दिया कि वह सीनियर अफसर सीआइए की मदद से देश छोड़ कर भाग निकला था तथा शर्मा मिश्रा की जोड़ी बस देखती रह गयी थी. यह बड़ी बदनामी का काम हो गया था जिस से देश और महकमे की बदनामी हुई थे जिससे लोग उभरे नहीं थे. उनकी योग्यता पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह था. चीफ ने शर्मा जी कई बार समझाने कि कोशिश की थी फिर भी हठधर्मिता के कारण वे अड़े रहे, उलटे चीफ को ‘उदार और नरम’ का आरोप लगाने लगे थे. इस तरह शर्मा जी आख़िरी सीढी से फिसले पड़े थे.
बस जब किसी बात को बिगड़ना हो व्यक्ति का विवेक पहले खो जाता है. बुद्धि से काम नहीं लेते,नेक राय को भी अनदेखा कर दिया जाता है. इसमें दो राय नहीं थी कि शर्मा जी कि नीयत अपराधी को सख्त सजा दिलाना थी और उसके हैंडलर को पकडवा कर वाहवाही और बड़ा पुरस्कार प्राप्त करना थी. पर आवश्यकता से अधिक परिहार्य देरी के कारण सब कुछ चौपट हो गया था. ‘हम तो डूबे हैं सनम, तुमको भी ले डूबेंगे‘ को चरिरार्थ अर्ते हुए उन्होंने बॉस समेत पूरे महकमे को ही चौराहे पर खड़ा कर दिया था. चीफ समेत पूरे सिक्यूरिटी संगठन की भारी बदनामी थी. चीफ ने अपने विभाग और अपने सहयोगी के स्थान पर पूरी जिम्मेदारी स्वयं पर ले ली थी जिससे शर्मा जी किसी गंभीर सरकारी कारवाही से बच निकले थे कोई छोटी मोटी सजा या इन्क्वारी से बच गए थे. यह चीफ का प्रशंसनीय लीडरशिप का कदम था. घटना ने शर्मा जी को धक्का लगाया था पर बाहरी तौर पर वे सफाई में यह मानते रहे कहते रहे कि सीनियर लीडरशिप बीच में फालतु दखल न देती तो वे फ़ैल न होते.
साढ़े तीन बजे से ही लोगबाग हाल में इकठ्ठा होना शुरू हो गए थे, कुछ जूनियर लोगों ने तो सीधे पार्टी में न रूक घर का रुख कर लिया यह कहते हुए कि वे शर्मा जी के सताए हुए हैं क्यों उनकी विदाई में शामिल हों और झूठी तालियां बजाएं. चार बजे से थोडा पहले सीनियर लोग भी आना शुरू हो गए थे, ठीक चार बजे चीफ और तीन और सीनियर अफसरों के साथ शर्मा जी आते दिखाई दिए, अपने बेस्ट सूट टाई में थे, काफी गंभीर थे, उनके आने पर चाय पानी शुरू हुआ जो की बहुत अच्छे स्तर का था पर शर्मा जी ने बहुत ही कम चीज़ें अपनी प्लेट में ली, उनका चमचा मिश्रा भी पास मंडरा रहा था जिसे शर्मा जी ने बुलवा कर एक तरफ ले जा कर कुछ हिदायतें दी. कुछ लोग चाय और स्नैक्स खाकर वाश रूम की तरफ जाकर वहां से गेट से होकर खिसकते जा रहे थे.
चीफ ने इशारा किया और शर्मा जी के गले में एक के बाद मालाएं पहनाई गयी, हर माला के बाद तालियाँ बजती और शर्मा जी इमोशनल होते नज़र आ रहे थे, अंत में चीफ ने माला पहनाई और गरम जोशी से हाथ मिलाये, अचानक शर्मा जी अपने आप को रोक नहीं पाए और उन्होंने दोनों हाथ फैलाये, चीफ़ ने मुस्कुराते हुए झप्पी भरी और उनकी पीठ थपथपाई, उनका भावुक होना स्वाभाविक था आखिर दोनों एक ही साथ सर्विस में सेलेक्ट हुए थे दोनों ने साथ साथ माउंटआबू में ट्रेनिंग की थी, 37 वर्ष का पुराना सम्बंध था, और इस सुरक्षा एजेंसी में भी पिछले काफी समय से साथ साथ थे. यह अवसर कहें भाग्य कहे, या उपयुक्तता कि शर्मा जी नम्बर दो रह गए दो थे और चीफ सिन्हा उनके बॉस. चीफ सिन्हा ने उन्हें हमेशा बराबर का समझा मगर शर्मा जी को यह बात कभी पची नहीं थी हालाकि अब तो वे सेवा निवृत हो ही रहे रहे थे.
एक ही मा-बाप के बच्चे एक ही वातावरण रह कर अलग अलग रास्ते में चले जाते हैं.इकबाल साहेब ठीक फरमा गए थे –
शैख़ साहेब के दो बेटे बाअदब पैदा हुए,एक हैं ख़ुफ़िया पुलिस मैं एक फांसी पा गए. सो एकही परीक्षा पास कर, एक साथ ही ट्रेनिंग कर काफी कुछ एक सी नौकरी कर भी दोनों के स्वभाव और तौर तरीकों में शैख़ के बेटों की तरह बहुत अंतर था. एक विनम्र और सुसंस्कृत दूसरे में काफी अहंकार और अहं जिसमें ज़रा सी चोट आने पर तिलमिला जाते थे. इससे वे ऑफिस और घर में अकेले पड़ते चले गए, शर्मा जी अपने डिप्रेशन के लिये पिछले कई साल से गोलियां खा रहे थे. घर में भी उनकी पत्नी और उनके बीच पति-पत्नी के संबंध नहीं के बराबर थे, परेशान होकर वह या तो चुप रहती या जली कटी सुना देती थी. बड़े सरकारी आवास में वे दोनों अलग अलग बेड रूम में सोते थे. ऑफस में शर्मा जी अलग थलग तो थे पर घर जैसी खराब हालत नहीं थी उनसे लोग डर कर ही सही उचित आदर तो देते थे इस से उनके अहम् की काफी तुष्टीपूर्ति हो जाती थी. उनके एक सहयोगी मिश्रा ही बस उनके विश्वासपात्र थे जो उनके हर आदेश, हर इच्छा और आर्डर का अनुसरण करवाते, उनके पूरे चमचे थे.
विदाई समारोह में तीन सीनियर अफसरों ने अपनी अपनी तरह से शर्मा जी के लम्बे अनुभव और ज्ञान की बड़ाई की अपने साथ हुए अच्छे अनुभव गिनाये, उनकी उपलब्धियां गिनाई, उनकी ईमानदारी कि प्रशंसा की तथा यहाँ तक कहा कि उनके बाद उनकी कमी महसूस की जायेगी. देर तक भी ऑफिस बैठना कार्य के प्रति उनका समर्पण दिखाता है आदि आदि अच्छी बातें ही की. इन सब के बाद चीफ ने तो उनके बहुत सी खूबियाँ गिनाई तथा अपने लम्बे साथ के कार्यकलापों का बहुत अच्छा विवरण दिया. उनको अपना अच्छा सहयोगी और घनिष्ट मित्र बताया उनके परिवार, पत्नी और बच्चों की प्रशंसा के पुल बांधें. कुछ हल्की फुल्की घटनाएं भी सुनाई. सुनसुन कर शर्मा जी खुश हुए और हल्का सा मुस्कराते रहे.
लोगों का कहना था कि उन्होंने शर्मा जी को कभी हँसते मुस्कुराते नहीं देखा था. आज उनके जाते जाते देख लिया. इस सब काफी लम्बे विदाई के भाषण में चीफ ने उनके अंतिम एपिसोड ज़रा भी जिक्र नहीं किया ताकि शर्मा जी ख़ुशी ख़ुशी विदाई पर जा सकें. अंत में भी चीफ ने गर्मजोशी से हाथ मिलाया. इस सबसे मीटिंग का माहौल बहुत सहज और खुशनुमा हो गया था. उनके भाषण पर बहुत तालियाँ बजी. बोलने की कला में चीफ बहुत निपुण थे और मीठा बोलना उनका सहज स्वभाव था.
इसके बाद धीरे धीरे शर्मा जी खड़े हुए अपने धन्यवाद ज्ञापन भाषण के लिये, चारों तरफ निगाह घुमाई इस समय तक अंदाजे से कम लोग मौजूद थे, तब तक काफी लोग धीरे धीरे खिसक गए थे.
शर्मा जी ने बखान शुरू किया कि उन्होंने अपने गाँव में प्राइमरी शिक्षा ली वहां से निकल कर अपनी कुशाग्र बुद्धि के बल अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी, कक्षा आठ के बाद हमेशा स्कॉलरशिप ली, मेहनत के बल पर ही आईपीएस में आये और सारी सर्विस में कहाँ कहाँ रह कर अपनी उपलब्धियों को विस्तार से गा गा कर गिना गिना कर सुनाते हुए अपनी काफी आत्म प्रशंसा की. चीफ सुन सुन कर मुस्कुराते रहे बाकी लोग ज्यादातर बोर होते रहे, वे चाहते थे कि यह बिदाई ख़त्म हो और घर को जाएँ, पर शर्मा जी उस दिन अपना विदाई धन्यवाद भाषण लंबा ही खींचते जा रहे थे.
जाते जाते उन्होंने अचानक अपना दर्द भी बताया कि उनकी एक बड़ी कमी सिर्फ यही थी कि वे किसी की खुशामद नहीं करते थे इसलिये ही कई अवसरों पर वे पिछड़ गए थे. लग रहा था कि अब वे बोलना समाप्त करेंगे, पर वे कार्ड पर निगाह मारते और फिर अपना अगला किस्सा शुरू करते हुए, उन्होंने चारों और नज़र डाली और पूछा, “ आप सब को मज़ा आ रहा है ना?”
सब लोग चुप रहे, किस को मज़ा आ रहा था. फिर थोडा इंतजार कर बोले,
“आप लोगों को आ रहा है या नहीं मुझे आ रहा है. अपनी बात पूरी करलेता हूँ, इस के बाद न आप मुझ से सुनेंगें न में यहाँ हूँगा सुनाने के लिये”
यह सुन कर लोगों ने जोरदार ठहाका लगाया, चीफ बड़े जोर से हंसते-हंसते बोले.“कंटीन्यू,कंटीन्यू”
अचानक उन्होंने अपने कोट की जेब से दोबारा कार्ड निकाला जिसमें कुछ पॉइंट लिखे थे, और अचानक अपने कार्यकाल के अंत में हुए बड़े काण्ड का विषय जिसको चीफ और अन्य वक्ता बचाते रहे थे स्वयं ही शुरू कर दिया. लोगों को आश्चर्य हो रहा था कि इस का ज़िक्र ही क्यों कर रहे हैं.
कार्ड को बीच बीच देखते हुए बताने लगे कि किस किस तारीख को उन्होंने क्या क्या किया? कब भगोड़े अफसर की सर्वलेंस शुरू की और कैसे की, कब उसकी कार, ऑफिस, निवास आदि पर वाइस रिकॉर्डर, गुप्त कैमरा लगवाये ,गाडी का पीछा करवाया, 24 घंटे की एक्टिविटीज की निगरानी यहाँ तक कि अफसर और उसकी पत्नी के घर की अतरंग समय के वार्तालाप तक की रिकॉर्डिंग की. इन बातों का बखान शुरू किया जिससे यह दिखाने का प्रयास किया कि वे कितने अपने काम के लिये दिन रात समर्पित रहे थे. यह सब लोगबाग को ज्यादा पच नहीं रहा था कि इतनी बड़ी गलती कर उस पर अब मिटटी क्यों डाल रहें हैं. इस सफाई में उन्होंने सारी जिम्मेदारी अपने से हटा कर अपने से ऊपर के अन्य लोगों पर डालने का निष्फल प्रयास भी किया. सुन कर लोगों में बेचेनी बढ़ती जा रही थी. शर्मा जी को थोडा आभास भी हुआ कि लोगबाग उनकी बातों में नही आ रहे थे. उनकी निगाह में तो शर्मा जी ने जिस तरह से केस हैंडल किया और जो अक्षम्य देरी की उस सबसे तो उनके ऑफिस का, उन सब कि बदनामी का, जिम्मा उनके ऊपर था उस से हाथ धोने का प्रयास कर रहे थे. चीफ को ख़राब लग रहा था. वे बार बार घडी देख रहे थे ताकि शर्मा जी अपनी न गले उतरने वाली राम कहानी तो खतम करें. जिस चीज़ को वे नहीं चाहते थे वह शर्मा जी ने शुरू कर दी थी.
बोलते बोलते थोडा विश्राम ले कर उन्होंने अंटोनी कुरियन को देखा जिस के पास बेठे कुछ लोग कुछ उसके कान में फुसफुसा रहे थे, और अचानक शर्मा ने कहा कि अंटोनी कुरियन प्लीज खड़े हो जाएँ, वह खड़ा हो गया तो सबको सुनाकर कहा,” यह यंग अफसर है जो व्हिशिल ब्लोअर है, हालाकि हमें पहले ही से टारगेट अफसर पर शक था और जांच चल रही थी.”
इतना सुनना था एक जूनियर खड़ा हो गया और जोर से बोला कि अंटोनी केवल व्हिसिल ब्लोअर नहीं था “यही असली हीरो है, बाकि सब ऑपरेशन जीरो था महीनों देर करने की क्या मजबूरी थी?”.
ऐसा सुनते ही जूनियर अफसरों ने तालियाँ बजाई बाकी कई सीनियर लोगों ने भी हामी में गर्दन ऊपर नीचे हिलाई और शर्मा जी बोखला गए बेहद उत्तजित हो गए और दहाड़ कर बोले, “हू आर यू, कम टू माई ऑफिस टुमारो.” शर्मा जी को कहने के बाद में ध्यान आया कि अब के बाद वे सरकारी सेवा में नहीं रहेंगे न ही उनका ऑफिस होगा न ही कोई पॉवर.सो अगले दिन ही नहीं अभी यह किस्सा यहीं ख़त्म करना है.
वह जूनियर अफसर बिना खोफ खड़ा रहा और बोला, “ सर, मैं पी वी सुब्बाराव हूँ आप से पहले भी आपके ऑफिस में मिल चुका हूँ, उस दिन भी मैंने जो जानता था सच ही बोला था, आज भी सच ही बोल रहा हूँ, उस दिन कुछ पता नहीं था आज बहुत कुछ मालूम है. क्षमा करना अगर यह सच आपको बुरा लगा हो.”
अगली पंक्ति वाले अफसर अचंभित से थे कुछ को पता था कि राव एक नया पर प्रतिभाशाली ऑफिसर है, और जूनियर ऑफिसर अब अपनी बात सामने रखने में नहीं चूकते जैसे उनके समय में था कि जूनियर ऑफिसर केवल सुने और चुप रहें (Junior officers are to listen and not to speak.)
चीफ ने बीच में आ कर मामला शांत किया, बात मान कर जूनियर ऑफिसर चुप हो कर बैठ गया. उन्होंने शर्मा जी से भी शांत रहने का संकेत कर अनुरोध किया कि अपना भाषण पूरा कर दें. पर शर्मा जी तो बेहद गुस्से से उत्तेजित हो चुके थे. उनके 37 वर्ष के कार्यकाल में किसी जूनियर ने उनकी ऐसी हिमाकत का कभी दुस्साहस नहीं किया था, वह भी भरी सभा में उनके और सबके सामने.
उन्होंने अचानक अजीब तरह से ही गुस्से से चीखते हुए कहा, “ओके आई ऍम ऐ सिक मेन, आई ऍम ए मेड मेन, आई ऍम दुखी राम जैसा मुझे बहुत से लोग मुझे कहते हैं, एक पागल ही ऑफिस में 14 -15 घंटे काम करता है, अवकाश के दिन भी ऑफिस लगाता है, ईमानदारी से काम करना बेवकूफी है सो में बेवकूफ हूँ. फूलिश हूँ ... डैम फूल हूँ” कह कर रोने लगे. पूरी बात बिगडती देख चीफ ने खड़े होकर हाथ पकड़ कर शर्मा जी बैठाया स्वयं गिलास में पानी देकर पीने का आग्रह किया. पूरे लोग स्तब्ध हो गए थे. आगे न बोलकर शर्मा जी ने हाथ हिला कर कुछ कहने से मना कर दिया,
चीफ ने एक छोटा सा भाषण किया स्पष्ट किया कि उस भगोड़े के कारण सबसे अधिक तकलीफ शर्मा जी को हुई थी क्योंकि उन्होंने अपनी चौकसी में बेहद सतर्कता बरती थी यह तो ऐसी घटना है जिन पर कई बार होना होता है सो हो जाती हैं,जिसे कहते हैं “होनी हो कर रही.”
तभी एक कुर्सी लाई गयी जिस पर शर्मा जी को बैठाया गया, पीछे बैकग्राउंड में म्यूजिक चला हुआ था, ‘ही इज ऐ जॉली गुड फेलो....ही इज ऐ जॉली गुड फेलो, सो से आल ऑफ़ अस, लोगबाग कुर्सी पर बैठे शर्मा जी को उठाये उठाये झुलाते हुए ऑफिस गेट पर लाये जहाँ उनकी फूलों से सजी स्टाफ कार खड़ी थी चीफ ने उन्हें खुद ही आगे बढ़ कर विदा किया, मिश्रा उन्हें छोड़ने ड्राईवर के बराबर की सीट पर आकर बैठ गया था. कार धीरे धीरे खिसकी, शर्मा जी ने पीछे मुड कर देखा बहुत से स्टाफ हंस रहे थे उन्हें लगा उन्ही पर हंस रहे हैं कि उन से पीछा छुटा. आज उन्हें याद आ रहा था शायद ग़ालिब के शेर बड़े बे आबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले, हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकलें.
अब घर जाते जाते उन्हें लग रहा था कि वे बहुत कुछ करना चाहते थे नहीं कर पाए और बिदाई में जो हुआ उससे भी मन उदासी से भरा था, लग रहा था कि कुर्सी पर बैठा कर सब उन्हें बाहर फ़ेंक आये. इस समय तो मिश्रा भी उन्हें नहीं भा रहा था. पूरे रास्ते चुप रहे, मिश्रा उनको समझता था इसलिये वह भी चुपचाप बैठा रहा.
उनका घर जाने का मन नहीं था पर और कहाँ जाते? पत्नी ने तो कई बार समझाया घर नौकरी में थोडा ही सही बैलेंस करो, जब हार झक मार कर कुछ नहीं निकला उसने भी अपना अलग संसार रच लिया था, पहले बच्चों का अपनी बेटी, बेटे का. अब जब वे निकल गए, अपने ताश के ब्रिज गेम पर जिसमें वह काफी निपुण हो चुकी थी. उनके टूर्नामेंट आदि में भी भाग लेती थी, साथ में वह स्वांतः सुखाय पेटिंग भी किया करती थी. बस वे दोनों एक छत के नीचे रहते थे खाना पीना साथ था, पर दोनों की दुनिया अलग सी हो चुकी थी.
अपने सरकारी निवास पर पहुँच कर कार से उतरे उनका नौकर उनका ब्रीफ़केस और और तीन चार पर्सनल फाइल व अन्य सामान निकाल कर अन्दर ले गया. शर्मा जी ने आसमान की और देखा उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि अन्तरिक्ष में उन्हें कोई बुला रहा है. उन्हें लग रहा था कि ऑफिस में ही नहीं बल्कि संसार से ही उनका रिटायरमेंट हो गया है. आज की बिदाई में जो घटा उन्हें पच नहीं रहा था अन्दर तक आहत कर गया था.
घर में कोई नहीं था उनकी पत्नी बाहर गयी हुई थी, उनका भक्त सुरेन्द्र मिश्रा भी रोज की तरह आज उनके पास नहीं ठहरा तुरंत इज़ाज़त मांग वापिस स्टाफ कार में चला गया, उन्हें लगा कि जानबूझ कर उसने ऐसा किया वरना उसे कुछ देर तो रुकना चाहिए था. परेशान से शर्मा जी अपने बरामदे में घूमने लगे. दिमाग में आज की विदाई में मुंबई से आये सुब्बाराव की हरकत...... फिर पता नहीं वे गुस्से में क्या क्या बोल गए.... मन में क्षोभ हो रहा था कि उन्हें इस तरह से अनावश्यक प्रतिक्रिया की क्या ज़रूरत थी? घूम ही रहे थे कि उनकी पत्नी रूचि शर्मा अपने किसी कार्ड सेशन से आ गयी थी और खूब अच्छे मूड में थी, आते ही पूछा “कैसी रही आपकी विदाई.”
सुस्त से स्वर में उत्तर दिया, ”ठीक थी.” मन ही मन वे अंदाज़ लगा रहे थे कि वह जीत कर आई है तभी इतनी खुश और मेहरबान है. जिस दिन हार कर आती है बात न कर सीधा अपने बेड रूम जाती है.
“सिर्फ ठीक या बहुत अच्छी तुम्हारे मित्र ने तो अच्छा ध्यान रखा होगा?”
बात सहज थी पर उन्हें इसमें व्यंग नज़र आया.
उन्होंने टालने के लिये कहा “सब ठीक था.” वे बात करने के मूड में नहीं थे. उन्हें सहज करने के एक और प्रयास करते हुए उनकी पत्नी ने कहा, “चलिए चाय बनवाती हूँ साथ पियेंगे”
उत्तर में उन्होंने कहा ,”नहीं, मुझे चाय वाय नहीं पीना है. सिर में तेज दर्द है, ऊपर जाकर दर्द की गोली ले लेता हूँ.”
उनकी पत्नी रूचि शर्मा को उनका इतना रुखा व्यवहार अच्छा नहीं लगा. वह अपने कमरे में चली गयी. शर्मा जी चुपचाप सिर को दबाते कुछ देर बैठे रहे फिर यंत्रवत धीरे धीरे जीने से अपने ऊपर वाले बेडरूम के लिये चले, आधी सीढियाँ ही चढ़ पाए थे कि लुढक कर नीचे आ गिरे. उनका नौकर और पत्नी दोनों ही लपक कर उन के पास पहुंचे उन्हें उठाया और पास वाले में कमरे में ले जाकर लिटाया. शर्मा जी बिलकुल अचेत थे, सब लोग घबरा गए थे, सब ने मिल कर तुरंत ही उन्हें कार में डाला और राम मनोहर लोहिया की इमरजेंसी में ले गए, रास्ते से उनकी पत्नी ने चीफ सिन्हा जी को फ़ोन कर दिया था, जिन्होंने हॉस्पिटल में सूचित कर दिया था जिससे उन्हें वहां टॉप प्रायोरिटी देकर उपचार शुरू कर दिया गया , ऑक्सीजन लगा दी गयी, सब मोनिटर लगा दिए गए लाइफ सेविंग के लिये डेकाड्रोन इंजेक्शन लगा दिया गया, मोनिटर बता रहे थे कि बीपी बहुत बढ़ा हुआ था और पल्स 120 तक थी .धीरे धीरे शर्मा जी थोडा सामान्य से हुए पर होश में नहीं आये थे. उनका मुंह एक तरफ लटक गया था. इमरजेंसी डॉक्टर ने उनका सी टी स्केन कराया और बताया कि ब्रेन में ब्लीडिंग हुआ है, गंभीर ब्रेन स्ट्रोक से कितना नुक्सान हुआ है वह पता कर रहें हैं. इस बीच चीफ व उनकी पत्नी भी आ गये थे, न्यूरोलॉजिस्ट ने शर्मा जी को तुरंत आईसीयू में शिफ्ट करा इलाज़ शुरू कर दिया. बाद में पता लगा कि उनके लकवा मार गया है पर जान बच गयी है पर मस्तिष्क में काफी नुक्सान हो गया है,
10 दिन जब हॉस्पिटल से घर आये न बोल सकते थे, न चल सकते थे, न कुछ स्वयं खा पी सकते थे उनके ब्रेन में काफी हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था, अब वे किसी को पहचान नहीं रहे थे. दफ्तर के बाद अब वे घर और पत्नी के लिये भी अब वे ‘दुखी राम पति’ बन गए थे, सारा दिन देखभाल करती और करवाती फिर भी उन्हें गुस्से के दौरे से पड़ते रहते थे घर को आसमान में उठा लेते. बेटे बेटी बारी बारी से चक्कर लगाते रहते थे. इस बीच उनके रिटायरमेंट को तीन महीने हो गए थे. शर्मा जी की बीच बीच मोनिटरिंग होती रही, फिजियोथरेपी होती रही, हाथ पैर में थोडा सुधार आया, बोलने में वे कुछ ध्वनियाँ निकालने लगे हैं पर क्या कहना चाहते है समझ में नहीं आता. सोच विचार कर माँ बच्चों ने फैसला किया कि उन्हें उनके गाँव जो मुज़फ्फरपुर बिहार में है उन्हें शिफ्ट किया जाए जहाँ उनका अपना फार्म तथा लीची का बाग़ हैं जहाँ उनकी मदद के लिये बहुत से सहायक मौजूद हैं, जो शहर से नजदीक है जहाँ मेडिकल सपोर्ट मिलती रहेगी. शर्मा जी की दुनिया बदल गयी पर अभी भी उनको गुस्सा खूब आता है, पर गुस्से में क्या कहना चाहते हैं पता नहीं लगता बस अंदाज़ा लगाना पड़ता है. एक डॉक्टर हफ्ते में एक बार उन्हें चेक करने आता है तथा एक नर्सिंग सहायक भी दिन रात के लिये रखा हुआ है.
नाम को सार्थक करते हुए अभी भी बहुतों को दुखी रख रहे हैं दुखी राम शर्मा आईपीएस (रिटायर्ड).