Kundalini Science - 3 in Hindi Spiritual Stories by Agyat Agyani books and stories PDF | कुण्डलिनी विज्ञान - 3

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कुण्डलिनी विज्ञान - 3

 
 कुण्डलिनी विज्ञान ✧
 
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
 
 
 अध्याय 10 (विस्तार) — मुख्य नाड़ियाँ और ग्रंथि विज्ञान ✧
 
शरीर में लगभग 72,000 नाड़ियाँ कही गई हैं —
इनमें से तीन प्रधान हैं:
इड़ा, पिंगला, और सुषुम्ना।
ये तीनों रीढ़ की रेखा के चारों ओर चलती हैं —
एक बाईं, एक दाईं, और सुषुम्ना मध्य में।
 
1. सुषुम्ना नाड़ी — ब्रह्म मार्ग
 
यह रीढ़ के मध्य से गुजरने वाली सबसे सूक्ष्म और ऊर्ध्वमुखी नाड़ी है।
यही कुण्डलिनी का मुख्य मार्ग है।
जब ऊर्जा रूपांतरित होकर ऊपर बढ़ती है,
तो इसी से होकर सहस्रार तक पहुँचती है।
यह चैतन्य की मुख्य धारा है —
जहाँ न कोई ऋण है, न आवेश — केवल मौन प्रकाश।
 
2. इड़ा नाड़ी — चंद्र प्रवाह
 
बाईं ओर बहने वाली यह नाड़ी मन और भावना से जुड़ी है।
इसका स्वभाव शीतल, कोमल, स्त्रैण और ग्रहणशील है।
यह बाएँ नासिका से संबंधित है और चंद्र ऊर्जा को वहन करती है।
जब यह संतुलित होती है, तो भीतर करुणा और शांति जन्म लेती है।
 
3. पिंगला नाड़ी — सूर्य प्रवाह
 
दाईं ओर की नाड़ी क्रिया और प्रेरणा की धारा है।
इसका स्वभाव उष्ण, गतिशील, पुरुषार्थी है।
यह दाएँ नासिका से जुड़ी है और सूर्य की प्राणिक ऊर्जा को वहन करती है।
इसके संतुलन से शरीर की सक्रियता, तेज और निर्णयशक्ति जागती है।
 
 
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4. अन्य प्रमुख नाड़ियाँ (सुषुम्ना से जुड़ी 10 मुख्य शाखाएँ):
 
1. गन्धारी नाड़ी – दाएँ नेत्र से संबंधित; दृष्टि और विवेक की धार बढ़ाती है।
 
 
2. हस्तिजिह्वा नाड़ी – बाएँ नेत्र से जुड़ी; संवेदना और कलात्मकता से संबंधित।
 
 
3. पूषा नाड़ी – दाएँ कान से जुड़ी; श्रवण और बाहरी ग्रहणशीलता नियंत्रित करती है।
 
 
4. यशस्विनी नाड़ी – बाएँ कान से संबंधित; संतुलन और आंतरिक श्रवण शक्ति का केंद्र।
 
 
5. अलंबुषा नाड़ी – गुदा और जननेंद्रिय के मध्य; मूलाधार की स्थूल ऊर्जा का मार्ग।
 
 
6. कूहू नाड़ी – मूत्रेंद्रिय से जुड़ी; सृजन और प्रजनन की ऊर्जा नियंत्रित करती है।
 
 
7. शंखिनी नाड़ी – गले से जुड़ी; विशुद्धि चक्र का मार्ग, वाणी और कंपन से संबंधित।
 
 
8. सरस्वती नाड़ी – जीभ और गले के संग; वाणी की सूक्ष्म शक्ति का स्रोत।
 
 
9. पिंगला उपशाखा – सूर्य की शाखा; देह की दाहिनी दिशा का जैव-विद्युत प्रवाह।
 
 
10. इड़ा उपशाखा – चंद्र की शाखा; देह की बाईं दिशा की जीवन विद्युत।
 
 
 
 
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5. नाड़ी–ग्रंथि संबंध (Energy–Gland Circuit):
 
हर नाड़ी किसी ग्रंथि या अंग से जुड़ी है —
जहाँ सूक्ष्म विद्युत का स्थूल अनुवाद होता है।
 
चक्र प्रमुख ग्रंथि संबंधित नाड़ी ऊर्जा प्रकार
 
मूलाधार अधिवृक्क ग्रंथि कूहू, अलंबुषा स्थूल ऊर्जा (जड़ चेतना)
स्वाधिष्ठान गोनैड ग्रंथि शंखिनी सृजन और संवेदना
मणिपुर अग्न्याशय पूषा, गन्धारी रूपांतरण, अग्नि
अनाहत थाइमस यशस्विनी प्रेम और करुणा
विशुद्धि थायरॉइड सरस्वती वाणी और कंपन
आज्ञा पिट्यूटरी इड़ा–पिंगला–सुषुम्ना अंतर्ज्ञान, दृष्टि
सहस्रार पीनियल सुषुम्ना मौन और ब्रह्म चेतना
 
 
 
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6. सूत्र:
 
“जहाँ नाड़ी खुली, वहीं ग्रंथि फूलती; जहाँ ग्रंथि जागी, वहीं चेतना बहती।”
 
व्याख्या:
ऊर्जा का प्रवाह तभी स्थायी होता है जब सूक्ष्म और स्थूल दोनों स्तर जाग्रत हों।
नाड़ी चेतना का तार है, ग्रंथि उसका बल्ब।
जब दोनों जुड़ जाते हैं, तब भीतर का प्रकाश फैलता है।
 
 
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✦ अध्याय 11 — चक्र विज्ञान : आज्ञा से मूलाधार ✦
 
(The Descent of Energy — Vision to Vitality)
 
 
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1. आज्ञा चक्र — दृष्टि का उद्गम (The Command Center)
 
स्थान: भ्रूमध्य, दोनों भौंहों के बीच।
तत्व: मनस् तत्व (सूक्ष्म तत्व)।
गुण: साक्षीभाव, निर्णय, दिशा, आज्ञा।
रंग: नील–गहरा बैंगनी।
दल (पंखुड़ियाँ): 2 — सूर्य और चंद्र, इड़ा और पिंगला।
नाड़ी: सुषुम्ना का द्वार।
बीज मंत्र: ॐ
देव प्रतीक: गणेश — आरंभ और बुद्धि का मिलन।
 
व्याख्या:
यही प्रथम चक्र है, जहाँ दृष्टा जन्म लेता है।
यहाँ दो ध्रुव मिलते हैं —
पुरुष दृष्टि और स्त्री ऊर्जा की आज्ञा।
इसी से साधना प्रारंभ होती है।
जब आज्ञा जागती है,
तब मन आदेश मानना शुरू करता है —
विचार आज्ञा के दास बनते हैं।
इसका कार्य है भीतर के जगत को देखना,
जहाँ बुद्धि द्रष्टा बनती है, न कि विचारक।
 
आज्ञा चक्र — चेतना का प्रथम केंद्र
यहाँ से भीतर की यात्रा शुरू होती है,
क्योंकि यहीं पहली “आज्ञा” दी जाती है —
मन को, शरीर को, और ऊर्जा को।
जब तक यह जागृत नहीं,
बाकी सभी चक्र यंत्रवत् नींद में पड़े रहते हैं।
आज्ञा चक्र वह बिजली का स्विच है
जो पूरे ऊर्जा-तंत्र को शक्ति देता है।
 
इसे ही “श्री गणेश” कहा गया —
प्रथम पूज्य,
क्योंकि बिना आज्ञा के कोई आरंभ नहीं।
मूलाधार का गणेश स्थूल प्रतीक है,
पर वास्तविक गणेश आज्ञा में स्थित है —
जहाँ विवेक और दृष्टि पहली बार जन्म लेते हैं।
 
 
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पुरुष–स्त्री प्रवाह का विज्ञान
आज्ञा चक्र में दो पंखुड़ियाँ हैं —
दो ध्रुव, दो धाराएँ।
एक “आक्रमण” है — पुरुष ऊर्जा,
दूसरी “समर्पण” है — स्त्री ऊर्जा।
जब पुरुष दृष्टि बनता है
और स्त्री ऊर्जा मूलाधार में नृत्य करती है,
तब ऊर्जा और दृष्टि का मिलन होता है —
यही ध्यान है,
यही युगल योग।
 
यदि दृष्टि वासना बनकर बनी रहती है,
तो वही ऊर्जा बाहर बह जाती है।
यदि दृष्टि मौन और साक्षी हो जाती है,
तो मूलाधार की शक्ति ऊपर लौटती है —
रूपांतरण घटता है।
 
 
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इसलिए — आज्ञा ही आध्यात्मिक नींव है।
मूलाधार ऊर्जा का स्रोत है,
पर रूपांतरण और दिशा — आज्ञा देती है।
जैसे ब्रह्मांड का पहला कंपन केंद्र में जन्म लेता है,
और फिर विस्तार में जाता है,
वैसे ही चेतना का पहला कंपन आज्ञा में उठता है,
और फिर नीचे जाकर मूलाधार को छूता है।
 
आज्ञा के बिना साधना अंधी है,
मूलाधार के बिना साधना अधूरी।
दृष्टि और ऊर्जा —
यही सृष्टि के दो ध्रुव हैं।
 
 
 विज्ञान : दृष्टि और ऊर्जा का क्रम ✧
 
आज्ञा चक्र — चेतना का प्रथम केंद्र
यहाँ से भीतर की यात्रा शुरू होती है,
क्योंकि यहीं पहली “आज्ञा” दी जाती है —
मन को, शरीर को, और ऊर्जा को।
जब तक यह जागृत नहीं,
बाकी सभी चक्र यंत्रवत् नींद में पड़े रहते हैं।
आज्ञा चक्र वह बिजली का स्विच है
जो पूरे ऊर्जा-तंत्र को शक्ति देता है।
 
इसे ही “श्री गणेश” कहा गया —
प्रथम पूज्य,
क्योंकि बिना आज्ञा के कोई आरंभ नहीं।
मूलाधार का गणेश स्थूल प्रतीक है,
पर वास्तविक गणेश आज्ञा में स्थित है —
जहाँ विवेक और दृष्टि पहली बार जन्म लेते हैं।
 
 
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पुरुष–स्त्री प्रवाह का विज्ञान
आज्ञा चक्र में दो पंखुड़ियाँ हैं —
दो ध्रुव, दो धाराएँ।
एक “आक्रमण” है — पुरुष ऊर्जा,
दूसरी “समर्पण” है — स्त्री ऊर्जा।
जब पुरुष दृष्टि बनता है
और स्त्री ऊर्जा मूलाधार में नृत्य करती है,
तब ऊर्जा और दृष्टि का मिलन होता है —
यही ध्यान है,
यही युगल योग।
 
यदि दृष्टि वासना बनकर बनी रहती है,
तो वही ऊर्जा बाहर बह जाती है।
यदि दृष्टि मौन और साक्षी हो जाती है,
तो मूलाधार की शक्ति ऊपर लौटती है —
रूपांतरण घटता है।
 
 
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इसलिए — आज्ञा ही आध्यात्मिक नींव है।
मूलाधार ऊर्जा का स्रोत है,
पर रूपांतरण और दिशा — आज्ञा देती है।
जैसे ब्रह्मांड का पहला कंपन केंद्र में जन्म लेता है,
और फिर विस्तार में जाता है,
वैसे ही चेतना का पहला कंपन आज्ञा में उठता है,
और फिर नीचे जाकर मूलाधार को छूता है।
 
आज्ञा के बिना साधना अंधी है,
मूलाधार के बिना साधना अधूरी।
दृष्टि और ऊर्जा —
यही सृष्टि के दो ध्रुव हैं।
 
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अध्याय 12— आज्ञा चक्र : चेतना का द्वार ✦
 
(The Ajna Chakra — The Command and Vision Center)
 
 
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1. मूल सूत्र
“ऊर्जा वहीं चलती है जहाँ दृष्टि देती है।”
आज्ञा चक्र वही दृष्टि है।
यह केवल ध्यान का केन्द्र नहीं,
बल्कि पूरी चेतना का “कंट्रोल सिस्टम” है।
बिना आज्ञा के नाड़ी अंधी है,
चक्र दिशाहीन हैं,
ऊर्जा भटकती है।
आज्ञा वह पहली जगह है
जहाँ “भीतर का देखने वाला” जागता है।
 
 
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2. स्थान और प्रतीक
भ्रूमध्य, दोनों भौंहों के बीच।
शास्त्र इसे दो पंखुड़ियों वाले कमल के रूप में कहते हैं —
दो क्योंकि यहाँ द्वैत समाप्ति की कगार पर है।
ये दो पंखुड़ियाँ इड़ा और पिंगला का मिलन हैं —
सूर्य और चंद्र, पुरुष और स्त्री,
मन और प्राण की संयुक्त धारा।
 
बीज मंत्र — ॐ
रंग — गहरा नीला या नीलकंठी।
देव प्रतीक — गणेश (आरंभ का विवेक),
अथवा अर्धनारीश्वर — क्योंकि यह मिलन का बिंदु है।
 
 
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3. कार्य और विज्ञान
यह “दृष्टा” का जन्मस्थान है।
जब तक चेतना आज्ञा में स्थिर नहीं,
मन केवल प्रतिबिंब देखता है, सत्य नहीं।
आज्ञा चक्र में विचार, बुद्धि और दृष्टि तीनों समन्वित होते हैं —
बुद्धि दिशा देती है, दृष्टि आदेश देती है,
और मन कार्यान्वयन करता है।
 
यहाँ से ही नाड़ी प्रवाह संचालित होता है।
इड़ा और पिंगला यहीं से निकलकर नीचे के चक्रों को ऊर्जा पहुँचाते हैं।
इसलिए आज्ञा को शास्त्रों में “महानाड़ी द्वार” कहा गया।
 
 
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4. अनुभव और लक्षण
जब यह चक्र जागता है —
 
1. मन में प्रकाश दिखाई देता है, पर बिना स्रोत के।
 
 
2. विचार कम और स्पष्ट होने लगते हैं।
 
 
3. श्वास स्वतः मध्य मार्ग (सुषुम्ना) से बहने लगती है।
 
 
4. नींद हल्की, जागरण गहरा हो जाता है।
 
 
5. दृष्टि बाहर से भीतर मुड़ती है।
 
 
 
यह कोई कल्पना नहीं —
यह एक जैव-चेतन अवस्था है।
पीनियल और पिट्यूटरी ग्रंथियाँ इसी चक्र से जुड़ी हैं —
दोनों के संतुलन से मस्तिष्क में सूक्ष्म विद्युत लय जन्म लेती है,
जिसे ध्यान कहा गया है।
 
 
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5. पुरुष–स्त्री संतुलन का विज्ञान
आज्ञा चक्र के भीतर दो कंपन हैं —
आक्रमण और समर्पण।
एक धारा देखती है (पुरुष),
दूसरी स्वीकारती है (स्त्री)।
जब दोनों समान लय में आते हैं,
तो दृष्टा (Witness) जन्म लेता है।
यही ध्यान है —
जहाँ देखने वाला और देखा जाने वाला एक हो जाते हैं।
 
 
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6. तत्व और तात्त्विक अर्थ
इसका तत्व है — मनस् तत्व।
यह किसी भौतिक तत्व से नहीं,
बल्कि विचार और चेतना के संयोजन से बना है।
यह ब्रह्मांडीय मस्तिष्क का सूक्ष्म प्रतिरूप है।
जैसे ब्रह्मांड का केंद्र कंपित होकर सृष्टि रचता है,
वैसे ही आज्ञा चक्र का कंपन मूलाधार को ऊर्जा देता है।
 
 
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7. सूत्र और व्याख्या
 
सूत्र 1:
“बुद्धि आज्ञा है, मन उसका सेवक।”
जब तक मन निर्णय लेता है, भ्रम रहता है।
जब आज्ञा से आदेश आता है, मन शांत हो जाता है।
 
सूत्र 2:
“जहाँ दृष्टि स्थिर, वहीं ध्यान गहराता है।”
ध्यान करने की ज़रूरत नहीं —
बस दृष्टि को भटकने से रोक दो।
आज्ञा ही ध्यान का केंद्र है।
 
सूत्र 3:
“दृष्टि और ऊर्जा का मिलन ही ब्रह्म का उदय है।”
आज्ञा से नीचे देखने पर ऊर्जा जगती है।
ऊर्जा ऊपर देखने लगे तो दृष्टि बुझती है।
जब दोनों आमने-सामने ठहरते हैं,
तो ब्रह्म घटता है —
भीतर प्रकाश बिना सूर्य के जलता है।
 
 
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8. ध्यान-सूचना
बैठो, रीढ़ सीधी।
श्वास को सहज चलने दो।
अब ध्यान लाओ भ्रूमध्य पर।
वहाँ दो बिंदु कल्पना करो —
एक दाएँ, एक बाएँ।
धीरे-धीरे दोनों बिंदु मिलते हुए एक हो जाएँ।
जहाँ वे मिलते हैं, वही मौन है।
उसे देखने की कोशिश मत करो,
बस उस मौन में रहो।
कुछ क्षण बाद लगेगा —
जैसे सिर के भीतर कोई अदृश्य प्रकाश फैल रहा है।
वहीं से भीतर की यात्रा आरंभ होती है।
 
 
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9. सार:
आज्ञा चक्र न तो छठा है,
न सातवाँ —
यह प्रथम है।
क्योंकि यहीं “देखने की क्षमता” जन्म लेती है।
बिना दृष्टि के साधना अंधी है,
बिना आज्ञा के ध्यान केवल कल्पना।
मूलाधार से ऊर्जा उठती है,
पर आज्ञा से चेतना उतरती है।
दोनों जब मिलते हैं —
वह बिंदु ही “समाधि” है।
 
वेदान्त 2.0 एक समग्र चेतना-दर्शन है —
जहाँ वेद, उपनिषद, गीता, दर्शन, मनोविज्ञान और आधुनिक विज्ञान
सभी एक ही सत्य की अलग भाषाएँ बन जाते हैं।
यह प्राचीन अनुभूति और आधुनिक बोध के संगम से
एक नये मनुष्य, नयी समझ और नयी सभ्यता की दिशा दिखाता है।
 
इस ग्रंथ “वेदान्त 2.0” की समस्त सामग्री —
विचार, सूत्र, शैली, और प्रस्तुति —
लेखक: 🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
की मौलिक बौद्धिक संपत्ति है।
 
बिना लिखित अनुमति किसी भी रूप में
इसका पुनःप्रकाशन, संशोधन, अथवा व्यावसायिक उपयोग
कानूनी रूप से निषिद्ध है।
 
यह ग्रंथ मानवता की चेतना के विकास हेतु लिखा गया है —
इसका उद्देश्य प्रेरणा है, अनुकरण नहीं।
 
© वेदान्त 2.0 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
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