अस्वीकरण:यह कथा एक काल्पनिक रचना है।
इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति, धर्म या समाज से कोई संबंध नहीं है।
फ़क़ीर के रूप में छिपा वह व्यक्ति बोला —
> “नहीं, हम तो केवल भगवान के भक्त हैं।”
राजा ने उसे जाने दिया।
परन्तु जाने से पूर्व तांत्रिक ने राजा के शरीर पर पड़े सभी घावों के निशान ध्यान से देख लिये।
महल से निकलते ही वह उसी व्यक्ति के पास पहुँचा, जो कुछ दिन पूर्व उसकी सहायता माँगने आया था।
वहाँ पहुँचकर उसने कहा —
> “अब मेरे जीवन का एक ही उद्देश्य है — राजा की आत्मा को क़ैद करना।”
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सन 1922
पूर्णिमा की रात्रि में तांत्रिक और उसके इक्यावन शिष्य पहाड़ी पर यज्ञ कर रहे थे।
दूसरी ओर राजा ने भी अपना यज्ञ आरम्भ किया।
दोनों के मध्य एक अलौकिक युद्ध प्रारम्भ हो गया —
एक ओर तंत्र की शक्ति थी, तो दूसरी ओर राजा की साधना और तपस्या।
जब राजा को सूचना मिली कि तांत्रिक पहाड़ी पर है, तो वह अपने सैनिकों सहित वहाँ पहुँचने निकला।
प्रस्थान करते समय उसने अपने पुजारी से कहा —
> “यज्ञ चलता रहे, चाहे कुछ भी हो।”
राजा पहाड़ी तक पहुँच गया।
वहाँ दोनों के बीच भयानक संघर्ष हुआ।
अन्ततः राजा ने अपनी तलवार से तांत्रिक का सिर धड़ से अलग कर दिया।
किन्तु मरने से पूर्व तांत्रिक ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर राजा की आत्मा को एक बोतल में क़ैद कर दिया।
तांत्रिक की मृत्यु के पश्चात उसका एक शिष्य वह बोतल उठाकर बोला —
> “अब यह कोई नहीं खोल सकेगा।”
वह बोतल लेकर सागर की गहराइयों में फेंक दी गई।
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सन 2022
मुंबई के समुद्र तट के समीप एक नशीली दवाओं का व्यापारी रहता था।
पुलिस ने छापा मारा और उसके घर से एक पुरानी बोतल मिली।
बोतल को फॉरेन्सिक प्रयोगशाला भेजा गया।
ढक्कन नहीं खुल रहा था… पर जैसे ही उसे खोला गया, पूरी इमारत काँप उठी।
टेबल पर रखी मृतदेह अचानक उठकर बैठ गई।
राजा की आत्मा उस शरीर में प्रवेश कर चुकी थी।
प्रयोगशाला के सभी लोग मारे गए —
किसी को समझ न आया कि हुआ क्या है।
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राजा सबको मारकर अपने प्राचीन महल की ओर निकल पड़ा।
वहाँ पहुँचकर उसने देखा — सब कुछ बदल चुका था।
महलों की जगह अब इमारतें थीं, सड़कें थीं, रोशनियाँ थीं, और गाड़ियाँ…
क्रोध में उसने अपना पुराना इशारा (gesture) किया —
धरती काँप उठी।
उसी क्षेत्र में एक वृद्ध पुरुष बैठा था —
वही लड़का, जो 1922 में तांत्रिक के पास गया था।
राजा की चाल पहचानते ही वह काँप उठा और बोला —
> “यह वही है… राजा लौट आया है!”
राजा उसके समीप पहुँचा।
कुछ बोले बिना उसने उसका मस्तिष्क पढ़ लिया।
उसके मन में तांत्रिक की अंतिम वाणी गूँज उठी —
> “राजा की आत्मा केवल मृत शरीर में ही प्रवेश कर सकती है,
जीवित मनुष्य में नहीं।
क्योंकि राजा मरा नहीं था — उसकी आत्मा कैद हुई थी…”
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अब राजा सब समझ गया।
मरना उसके लिए कठिन नहीं था —
क्योंकि प्रतिदिन कोई न कोई मरता है।
प्राकृतिक मृत्यु, दुर्घटना, आत्महत्या —
हर ओर नई लाशें।
और राजा के लिए हर लाश एक नया माध्यम।
अब उसका उद्देश्य स्पष्ट था —
अपना साम्राज्य पुनः स्थापित करना।
> क्या आधुनिक मनुष्य उसे रोक पाएँगे?
या हर मृत्यु उसके लिए एक नई शुरुआत बनेगी?
> “जो राजा एक बार कैद हुआ था…
अब उसे कौन कैद करेगा?”
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To Be Continued...
अस्वीकरण:
यह कथा एक काल्पनिक रचना है।
इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति, धर्म या समाज से कोई संबंध नहीं है।