Great Bell of Dhammazedi - 4 in Hindi Adventure Stories by Naina Khan books and stories PDF | Great Bell of Dhammazedi ध्वनि जो डूबी नहीं - 4

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Great Bell of Dhammazedi ध्वनि जो डूबी नहीं - 4

 अध्याय ८: घंटी की पूजा

बावर्ची की चेतावनी के बाद, माया आरव को एक दूरस्थ गाँव में ले जाती है— थानबू, जो यांगून नदी के किनारे बसा है और जहाँ सदियों से एक जनजाति घंटी की पूजा करती आई है। वहाँ के लोग घंटी को "नाद देवी" कहते हैं—ध्वनि की देवी, जो आत्मा को परखती है और जीवन को दिशा देती है।

गाँव में प्रवेश करते ही आरव को एक अजीब सा स्वागत मिलता है। कोई उसे फूलों की माला पहनाता है, कोई उसके माथे पर चंदन लगाता है। लेकिन सबकी आँखों में एक बात स्पष्ट थी— उम्मीद और डर ।

गाँव की मुखिया, एक वृद्ध महिला न्ये थू, आरव को एक गुफा में ले जाती है जहाँ दीवारों पर घंटी की आकृतियाँ बनी थीं। वहाँ एक प्राचीन शिलालेख था:

> "जो ध्वनि को सुनता है, वह सत्य को जानता है। लेकिन जो उसे छूता है, वह खुद को खो देता है।"

न्ये थू बताती है कि हर सौ साल में घंटी किसी को बुलाती है। पिछली बार एक अंग्रेज़ खोजकर्ता आया था— 1893 में । उसने घंटी को खोजने की कोशिश की, लेकिन कुछ ही दिनों में उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। वह गाँव में ही रह गया, और अंततः एक दिन नदी में कूद गया।

"घंटी सिर्फ़ इतिहास नहीं," न्ये थू कहती है। "वह आत्मा की परीक्षा है।"

गाँव में एक रात विशेष पूजा होती है। आरव को घंटी की प्रतिमा के सामने बैठाया जाता है। चारों ओर मंत्र गूंजते हैं, और आरव को फिर वही ध्वनि सुनाई देती है—धीमी, गहरी, और भीतर तक उतरती हुई।

> "तुम तैयार हो?"

आरव आँखें खोलता है। वह जानता है, अगली बार जब वह घंटी के पास जाएगा, वह सिर्फ़ खोज नहीं करेगा—वह खुद को सौंपेगा।

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📖 अध्याय ९: स्वर की भाषा

रात के तीसरे पहर, जब यांगून नदी की सतह पर चाँद की परछाई थिरक रही थी, आरव ने फिर से गोता लगाया। इस बार वह अकेला था—बिना टीम, बिना उपकरण, सिर्फ़ अपने भीतर की गूंज के साथ।

घंटी की छाया अब स्पष्ट थी। जैसे वह आरव की प्रतीक्षा कर रही हो।

जैसे ही उसने घंटी के पास पहुँचकर आँखें बंद कीं, एक गहरी ध्वनि उसके भीतर गूंजने लगी। यह कोई सामान्य आवाज़ नहीं थी—यह एक भाषा थी, जो शब्दों से नहीं, भावनाओं से बनी थी।

> "तुम कौन हो?"

आरव ने उत्तर दिया, "मैं वह हूँ जो तुम्हें समझना चाहता है।"

> "तुम क्यों आए हो?"

"क्योंकि मैं उस कहानी को पूरा करना चाहता हूँ जो अधूरी रह गई थी।"

> "क्या तुम वह खो सकते हो जिसे तुम सबसे ज़्यादा चाहते हो?"

आरव चुप हो गया। उसकी आँखों में पिता की छवि उभरी, उसकी अधूरी डायरी, और वह जीवन जिसे उसने पीछे छोड़ दिया था।

"हाँ," उसने कहा। "अगर तुम्हारी गूंज को दुनिया तक पहुँचाने के लिए मुझे खुद को खोना पड़े, तो मैं तैयार हूँ।"

घंटी की ध्वनि तेज़ हुई। पानी में कंपन हुआ। और फिर... एक क्षण के लिए सब कुछ शांत हो गया।

आरव ने आँखें खोलीं। घंटी अब उसके सामने थी—पूरी, स्पष्ट, और जीवित। उसने उसे छुआ, और एक कंपन उसके शरीर से होते हुए आत्मा तक पहुँच गया।

> "अब तुम मेरे उत्तराधिकारी हो। लेकिन यह सिर्फ़ शुरुआत है।"

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📖 अध्याय १०: पिता की परछाई

घंटी से संवाद के बाद, आरव की चेतना जैसे बदल गई थी। वह अब सिर्फ़ खोजकर्ता नहीं था—वह एक उत्तराधिकारी था। लेकिन घंटी ने कहा था, "यह सिर्फ़ शुरुआत है।" और आरव जानता था कि उसकी यात्रा तब तक पूरी नहीं होगी जब तक वह अपने पिता की परछाई से नहीं गुज़रता।

माया ने उसे एक पुराना बर्मी मंदिर दिखाया, जहाँ उसके पिता ने आख़िरी बार ध्यान किया था। वहाँ एक पत्थर पर उकेरे गए शब्द थे:

> "जो ध्वनि को सुनता है, वह अपने अतीत से मुक्त होता है।"

आरव ने वहाँ ध्यान लगाया। घंटी की गूंज फिर से उसके भीतर उतरने लगी। और तभी... उसे अपने पिता की छवि दिखाई दी—डॉ. रघुवीर सेन, वही आँखें, वही मुस्कान, लेकिन अब शांत और पारदर्शी।

"तुमने मेरी यात्रा पूरी की," पिता ने कहा। "लेकिन तुम्हें खुद को भी पाना होगा।"

आरव ने पूछा, "आपने घंटी को क्यों नहीं उठाया?"

"क्योंकि मैं डर गया था," उन्होंने कहा। "मैंने उसे सुना, लेकिन मैं खुद को खोने को तैयार नहीं था।"

आरव की आँखों में आँसू थे। "मैं तैयार हूँ।"

पिता ने मुस्कराकर कहा, "तब तुम वह बन चुके हो जो मैं कभी नहीं बन पाया।"

घंटी की गूंज तेज़ हुई। मंदिर की दीवारें जैसे कंपन करने लगीं। और फिर... एक शांति छा गई।

आरव ने आँखें खोलीं। वह अकेला था। लेकिन अब वह अधूरा नहीं था।

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