shortcut to success in Hindi Motivational Stories by Aanchal Sharma books and stories PDF | सफलता का शॉर्टकट

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सफलता का शॉर्टकट

एक छोटे से गाँव का लड़का था। घर की हालत बहुत साधारण थी। पिता खेती-बाड़ी करते थे, जिनकी आय साल भर की मेहनत के बाद भी परिवार के लिए पर्याप्त नहीं होती थी। माँ गाँव में दूसरों के घर काम करके घर का खर्च चलाती थीं।

राहुल बचपन से ही सुनता आया था—
“बेटा, खूब पढ़-लिख, ताकि तुझे हमारी तरह तंगहाली न झेलनी पड़े।”

इसीलिए उसके माता-पिता अपनी भूख-प्यास भुलाकर उसे पढ़ाते रहे। राहुल के अंदर भी कुछ करने का जज़्बा था। लेकिन उसकी एक कमजोरी थी—वह सब कुछ जल्दी चाहता था। उसे लगता था कि मेहनत का रास्ता बहुत लंबा है, और शायद उसमें वक्त बर्बाद करना बेकार है।



शहर में जब उसने कॉलेज जॉइन किया, तो उसकी आँखें चौंधिया गईं। वहाँ कई अमीर घरों के बच्चे थे—महंगे कपड़े, स्टाइलिश गाड़ियाँ, और आलीशान लाइफस्टाइल।

राहुल मन ही मन सोचता—
“अगर मेरे पास भी इतनी दौलत होती, तो माँ-पापा को कभी झुककर काम न करना पड़ता। मैं भी दूसरों की तरह सम्मान से जी सकता।”

लेकिन रास्ता उसे लंबा और कठिन लगता। डॉक्टर बनने में सालों लगते, इंजीनियर बनने में भी कड़ी मेहनत चाहिए। उसे सब जल्दी चाहिए था।



कॉलेज में उसकी दोस्ती एक लड़के विक्रांत से हुई। विक्रांत अलग ही दुनिया में रहता था—बाइक, पार्टी, पैसे की कभी कमी नहीं। राहुल उसके रहस्य को जानने को उत्सुक हुआ।

एक दिन उसने पूछा—
“भाई, तेरे पास हमेशा पैसे कैसे रहते हैं? तेरा तो कोई बिज़नेस भी नहीं है।”

विक्रांत मुस्कुराया और बोला—
“राहुल, मेहनत से कभी कोई अमीर नहीं बनता। दिमाग लगाना सीखो। सही लोगों से मिलो, सही रास्ता पकड़ो, और देखो कैसे जिंदगी बदलती है।”

राहुल हैरान था।
“मतलब?”

“मतलब ये कि अगर तू थोड़ा रिस्क ले सकता है, तो पैसे तुझे गिनने का वक्त नहीं मिलेगा। मेहनत का झंझट छोड़, शॉर्टकट अपनाओ।”



शुरुआत छोटी थी। विक्रांत ने उसे कॉलेज में नकल करवाने का धंधा दिखाया। पैसे मोटे मिलते थे। राहुल डरते-डरते इस काम में शामिल हो गया।

पहली बार जब उसकी जेब में हजारों रुपए आए, तो उसने सोचा—
“इतना पैसा तो पापा महीनों में भी नहीं कमा पाते। ये रास्ता ही सही है।”

धीरे-धीरे उसका डर खत्म हो गया और लालच बढ़ गया।


अब वह नकली प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनवाने लगा, फिर नकली मार्कशीट। पैसे दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ने लगे।

राहुल के हाथ में अब महंगा मोबाइल था, बाइक थी, कपड़े थे। दोस्त उससे प्रभावित होते। जिन रिश्तेदारों के सामने उसका परिवार हमेशा छोटा महसूस करता था, अब वही लोग कहते—“वाह, राहुल तो बहुत तेज़ निकला।”

लेकिन किसी ने नहीं पूछा कि ये सब आया कहाँ से।



एक दिन उसके पिता ने फोन पर पूछा—
“बेटा, इतने पैसे कहाँ से ला रहा है? मैंने तो इतना भेजा ही नहीं।”

राहुल ने झूठ बोल दिया—
“पापा, मैं पार्ट-टाइम जॉब करता हूँ। ट्यूशन पढ़ाता हूँ।”

पिता के चेहरे पर खुशी आ गई। वे सोचने लगे, “मेरा बेटा सचमुच मेहनती है।”
माँ ने आँसू पोछते हुए कहा—“अब हमारी मेहनत रंग ला रही है।”

लेकिन उन्हें क्या पता था कि असलियत कुछ और है।



हर गुनाह की एक सीमा होती है। राहुल और विक्रांत अब बड़े कामों में हाथ डालने लगे थे। वे नकली डिग्री और सरकारी प्रमाणपत्र तक बेचने लगे।

एक दिन अचानक पुलिस ने कॉलेज में छापा मारा। सबूतों के साथ राहुल और विक्रांत पकड़े गए।

अगले ही दिन अखबार की सुर्खियाँ थीं—
“युवाओं को गुमराह करने वाला गिरोह पकड़ा गया, छात्रों के भविष्य से खिलवाड़।”

राहुल की तस्वीर पूरे शहर में छप गई।



जब पिता ने यह खबर पढ़ी, तो उनका सिर शर्म से झुक गया। गाँव भर में लोग ताने देने लगे—
“अरे, यही है वो लड़का जो नकली डिग्रियाँ बेचता था।”

माँ का दिल टूट गया। वे पूरे गाँव के सामने अपने बेटे का नाम नहीं ले पाती थीं। पिता सदमे से बीमार पड़ गए।

राहुल जेल में बैठा सोचता रहा—
“मैंने क्या कर दिया? माँ-पापा ने जो उम्मीदें रखीं, मैंने सब मिट्टी में मिला दिया।”




जेल में उसके साथ अपराधी थे—चोर, लुटेरे, ठग। वहीं उसने पहली बार समझा कि शॉर्टकट का रास्ता कहाँ ले जाता है।

वह रात-रात भर जागता और सोचता—
“काश, मैंने मेहनत से पढ़ाई की होती। भले ही समय लगता, लेकिन आज माँ-पापा मुझ पर गर्व करते, शर्म नहीं।”

उसने कई बार रोकर अपने दिल का बोझ हल्का किया।



सजा पूरी होने के बाद वह बाहर आया। अब उसका दायरा छोटा हो चुका था—कोई दोस्त साथ नहीं था, रिश्तेदारों ने मुँह फेर लिया था।

लेकिन माँ ने उसका हाथ थामा और कहा—
“बेटा, इंसान से गलती होती है। तू अभी भी संभल सकता है। बस इस बार सच्चाई और मेहनत का रास्ता पकड़।”

माँ की बातों ने उसे फिर से जीने की ताकत दी।

उसने छोटे से काम से शुरुआत की—गाँव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई। उसके पढ़ाए बच्चे अच्छे नंबर लाने लगे। लोगों का भरोसा लौटने लगा।

कुछ सालों बाद उसने एक कोचिंग सेंटर खोल लिया। कमाई भले ही उतनी न थी जितनी गलत कामों में थी, लेकिन अब जो था, वह इज्जत के साथ था।



एक दिन गाँव के स्कूल में उसे बुलाया गया। वहाँ प्रिंसिपल ने छात्रों के सामने उसका परिचय करवाया—
“यह है राहुल, जिसने जिंदगी में एक गलती की, लेकिन उससे सीखकर नया रास्ता चुना। आज यह सैकड़ों बच्चों को पढ़ा रहा है। यह बताता है कि असली सफलता मेहनत से ही मिलती है।”

छात्रों ने तालियाँ बजाईं। राहुल की आँखों में आँसू आ गए। उसने मन ही मन सोचा—
“काश, मैं यह सीख पहले समझ पाता। लेकिन देर से ही सही, आज मेरी जिंदगी सही रास्ते पर है।”


सफलता पाने का कोई शॉर्टकट नहीं होता।
शॉर्टकट हमें चमक तो देता है, लेकिन वह चमक नकली होती है, जो जल्दी ही मिट जाती है।
असली सफलता मेहनत, ईमानदारी और धैर्य से ही मिलती है।