सत्यजीत :- एकांश गिरी ने फोन किया था। वो धापा लेकर आ रहा है।
सत्यजीत की बात सुनकर एकांश अपने माथे पर हाथ रख के कहता है।
एकांश :- हे भगवान हो गया कल्याण। इनको भी अभी आना था ।
सत्यजीत इतना बोला ही था के तभी सत्यजीत की नजर मीरा पर पढ़ती है जो सत्यजीत को ही देख रही थी जिसे दैख कर सत्यजीत की बोलती बंद हो जाती है। सत्यजीत घबरा कर एकांश की और देखता है और इशारा करके पुछता है।
सत्यजीत :- क्या हुआ ??
एकांश हाथ को गले में ले जा कर इशारा करता है। गए काम से एकांश मन ही मन कहता है।
एकांश :- इतनी मुश्किल से धापा वाली कहानी का अंत हुआ था, चाचा ने आ कर सब बिगाड़ दिया। वाह चाचा क्या टाइमिंग है आपकी।
एकांश का रिएक्शन देख कर सत्यजीत समझ जाता है के मामला गंभीर है। तभी मीरा अपने दोनो हाथ मौड़ कर सत्यजीत से पुछती है।
मीरा: - अब आप ही बताओ ये धापा क्या है। क्या आप भी धपा धप खाएंगे पियेंगे?
मीरा का गुस्सा देख कर एकांश अपना फोन झूठ में अपने कान में लगा कर कहता है।
एकांश :- हेलो.....हेलो... ..!
इतना बोलकर एकांश वहा से भाग जाता है। सत्यजीत भी फोन भूलने का बहाना बना कर वहा से निकल जाता है।
रात के ग्यारह बज रहे थे, सत्यजीत एकांश और गिरी खटीया पर बेथ कर धापा (ताड़ी) पी रहे थे। तभी एकांश सत्यजीत से पुछता है।
एकांश :- चाचा वो गांव के बहार जो पेड़ है उसमें इतनी सारी धागा और उसके नीचे रखी लाल सिला क्या है ? इससे पहले तो ये सब नही था ।
सत्यजीत एक घूँट पीता है और कहता है।
सत्यजीत :- बेटा ....वो रक्षा कवच है।
एकांश झट से फिर पुछता है।
एकांश :- रक्षा कवच ? पर ये क्यों चाचा..?
सत्यजीत :- ये सब उस कुंभन के कारण है।
इतना बोलकर सत्यजीत वही सो जाता है क्योंकि उसे नशा हो गया था। एकांश सत्यजीत को देख कर कहता है।
एकांश :- चाचा तो सो गए हैं।
एकांश सत्यजीत को ठीक से सुला देता है। एकांश देखता है की गिरी भी नशे में सो गया है। एकांश एक गहरी सांस लेता है और कहता है।
एकांश :- हह...! कोई बात नहीं। कल सुबह चाचा से कुंभन के बारे में पुछलुंगा।
एकांश सुंदरवन की और देख कर अपने बचपन के बारे में सोचता है। के किस तरह सभी दोस्त मिल कर सुंदरवन के पास खेलता था पर उस और जाने से डरता था क्योंकि वहा देत्य रहते थे। एकांश इतना सोच ही था तब तक उसकी कान में एक लड़की की प्यारी सी आवाज सुवाई देती है।
-------"एकांश." ..!
एकांश झट से पिछे मुड़ कर देखता है पर वहा पर उसे कोई दिखाई नहीं देता है। एकांश को ये एक भ्रम लगता है औए वो दोबारा सुंदरवन की और देखने लगता है। के फिर तभी वही आवाज एकांश के कान में फिर से सुनाई देता है।
-------"एकांश जी..." ! आप आ गए एकांश जी...!
एकांश लड़की की आवाज सुन कर हैरान हो जाता वो घबराकर अपने पिछे मुड़कर इधर - उधर देखने लगता है । पर एकांश को कोई दिखाई नहीं देता है ।
तभी एकांश को फिरसे उसी लड़की की हंसने की आवाज आती है ।
--------हा हा..हा..हा..!
एका़ंश घबराते हुए कहता हैं
एकांश :- .. क ..... क ... क को कौन है...!
तभी उसी लड़की की एक प्यारी सी आवाज आती है ।
------- मैं हूँ एकांश जी । मुझे आपका ही इंतजार था । और देखो आप इतने वर्षों बाद आखिर आ ही गए ।
एकांश को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था के वो आवाज किसकी थी । तभी एकांश की नजर हवेली के नीचे सड़क पर पढ़ती है , जहां से एक लड़की एकांश को ही देख रही थी । वहां अंधेरा होने के कारण लड़की का चेहरा साफ साफ दिखाइ नहीं दे रहा था । जिसे दैखकर एकांश सौचता है ।
एकांश :- इतनी रात को यहां कौन हो सकती है और उसने मेरा नाम क्यूं ले रही है ।
तभी एकांश उस लड़की से कहता है।
एकांश :- अरे.. हेलो ! कौन है वहां..! इतनी रात को तुम यहां क्या कर रही हो ?
एकांश की आवाज सुनकर वो लड़की वहां से जाने लगती है । लड़की को जाता हुआ देख एकांश कहता है।
एकांश :- अरे ..! रुको कहा जा रही हो ।
पर वो एकांश की बात नही सुनती है और बिना कुछ कहे ही वहां से जाने लगती है ।
एकांश जल्दी से हवेली से बहार आ जाता है और उस लड़की को ढुंडने लगता है , कुछ दैर बाद एकांश को वो लड़की थोड़ी दुर मे जाती हुई दिखती है जो सुंदरवन की और जा रही थी । एकांश फिर से लड़की को आवाज लगाता है ।
एकांश :- रुको ..! सुनो तो , उधर कहा जा रही हो..? उधर जंगल है और इतनी रात को वहां जाना सुरक्षित नहीं है ।
पर वो लड़की एकांश की बात नहीं सुनती है और चुपचाप जंगल की और जाने लगती है । एकांश भी उसके पीछे जाने लगता है ।
एकांश अपने कदम जल्दी जल्दी में उस लड़की की और बड़ा रहा था पर एकांश उस तक पँहूच नहीं पा रहा था जबकी उस लड़की की चाल में कोई बदलाव नहीं था । एकांश सोचने लगता है ।
एकांश :- मैं उसके पास पहुँच क्यों नहीं पा रहा हूं जबकी मेरी चाल उसती चाल से तेज ..? ये कैस हो सकता है ?
एकांश फिरसे उस लड़की को पुकारता है ।
एकांश :- हैलो ...! मेरी बात तो सुनो । उस तरफ अकेली मत जाओ । उधर दैत्य रहते है । अरे यार ये रुक क्यो नही रही है ।
एकांश लड़की पर गुस्सा होकर कहता है ।
एकांश :- ओहो..! अरे यार ये तो कुछ बोल ही नहीं रही ।
तभी दोनो सुंदरवन के पास पँहुच जाता है । वो लड़की जंगल के अंदर जाने लगती है के एकांश उसे फिर से आवाज लगता है ।
एकांश :- मैने कहा रुको..! उधर मत जाओ ।
एकांश के इतना बोलते ही इस बार वो लड़की रुक जाती है । एकांश फिर कहता है ।
एकांश :- वहा उस जंगल में मत जाओ वहा तुम्हारे लिए खतरा हो सकता है । हद है यार मैं इतनी दैर से तुम्हें पुकार रहा हूँ और तुम हो के बिना कुछ बोले चली जा रही हो ।
वो लड़की चुप चाप जंगल की और मुह करके खड़ी थी । एकांश फिर उस लड़की से पुछता है ।
एकांश :- कौन हो तुम ? मेरा नाम कैसे जनती हो..? और इतनी सुनसान रात में अकेली यहां क्यों घूम रही हो ? तबसे तुम्हें आवाज लगाने जा रहा हूँ , सुनाई नही पड़ रहा था क्या..?
वो लड़की इस बार भी कुछ नहीं कहती है । एकांश पुछता है ।
एकांश :- कमाल है , मैं कब से तुम्हे आवाज लगा रहा हूं पर तुम हो की बिना कुछ बोले चलते जा रही हो । तुम किस गांव की हो ? क्या तुम्हें कोई परसानी है ? देखो तुम मुझे बेझिझक बता सकती हो ।
एकांश के इतना कहने पर वो लड़की जवाब देती है ।
----++ मुझे पता था एकांश जी के आप मुझे जरूर भूल जाएंगे । इसिलिए तो मुझे आपके पास आना पड़ा , आपको.... बुलाने के लिए ।
एकांश हैरानी से पुछता है ।
एकांश :- " मै तुम्हें भूल गया हूं " ? पर क्या मैं तुम्हें जानता हूं क्या हम पहले कभी मिले हैं..?
एकांश के इतना कहने पर वो लड़की बिना कुछ बताए हल्की मुस्कान दैकर वहा से जंगल की तरफ चली जाती है और जंगल के अंदर जाने लगती है । एकांश उस लड़की से कहता है ।
एकांश :- अरे कहा जा रही हो मेरी बात तो सुनो ।
वो भी उसके पीछे जाने लगता है और कहता है ।
एकांश :! रुको .!! कहा जा रही हो ? अपना नाम तो बताती जाओ । क्या तुम इस जंगल मे रहती हो ?
पर वो लड़की है के बिना कुछ बोले ही आगे बढ़ने लगती है । एकांश भी उसके पीछे जाने लगता है कुछ दूर और जाने के बाद एकांश रुक जाता है । तो वो लड़की भी रुक जाती है और एकांश से कहती है ।
--------- क्या हुआ एकांश जी आप थक गए क्या ?
इतना बोलकर वो लड़की फिर से आगे बढ़ने लगती है
। एकांश भी ज़िद पकड़ लेता है के कुछ भी हो जाए अब उसका चेहरा देख कर ही रहूगां । इतना सोचकर वो भी जल्दी जल्दी अपने कदम बढ़ाने लगता है। कुछ दूर जाने के बाद वो लड़की एक झरने के पास जा कर रुक जाती है । एकांश भी वहां हाफते हांफते पँहूच जाता है और उस लड़की से थोड़ी दूर पर रुक जाता है । फिर अचानक से वहां रोशनी बढ़ने लगती है और दैखते ही दैखते वो जगह रोशनी से भर जाता है । एकांश को ऐसा लग रहा था के चांद अपनी रोशनी सिर्फ जंगल के उसी जगह में लुटा रहा हो ।
पर वो जंगल इतना घना था के किसी भी रोशनी का वहां पँहूचना ना मुमकीन था एकांश अपनी नजरे इधर उधर घुमाता है तो एकांश को अपने आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था के इस जंगल में इतनी सुंदर जगह भी हो सकता है ।