सुबह का वक्त था — लगभग पाँच बजे का।
चार दोस्त — सैम, मैक्स, फ्लूट और रॉबिन — अपने पैरों से एक आध्यात्मिक यात्रा पर निकलने वाले थे।
ये केवल एक तीर्थ यात्रा नहीं थी, बल्कि एक खूबसूरत कहानी की शुरुआत थी।
उन्होंने तय किया था कि सब एक जगह इकट्ठा होंगे और फिर यात्रा शुरू करेंगे।
सभी समय पर पहुँच गए — बस सैम को छोड़कर।
रॉबिन ने भौंहें सिकोड़ते हुए कहा,
> “सैम हमेशा देर से आता है। हमें इसके बारे में कुछ करना पड़ेगा।”
मैक्स हँस पड़ा।
> “अरे छोड़ो, शायद फिर से अपनी गर्लफ्रेंड से मिलने रुक गया होगा।”
सबसे शांत स्वभाव वाला फ्लूट मुस्कुराया और बोला,
> “देखो, वो रहा सैम!”
सभी खुश होकर उसकी ओर देखने लगे।
सैम हल्का-सा हाँफता हुआ उनके पास पहुँचा।
> सैम: “चलो, अब निकलते हैं!”
मैक्स: “फिर से देर कर दी! पता है ना, हमें सूर्यास्त से पहले पहुँचना है।”
सैम: “माफ करना, अब ऐसा नहीं होगा, वादा करता हूँ।”
फ्लूट: “अब बस करो बातें, चलना शुरू करते हैं।”
और यूँ उनकी यात्रा शुरू हुई —
चार दोस्त, एक रास्ता, और आगे इंतज़ार करती अनगिनत यादें।
चलते-चलते सैम धीरे-धीरे सब से पीछे रह गया।
उसके चेहरे पर किसी गहरी सोच के साये थे।
फ्लूट ने सबसे पहले ध्यान दिया।
> फ्लूट: “तुम्हें नहीं लगता सैम कुछ परेशान है?”
मैक्स: “हाँ, मुझे भी कुछ अजीब लग रहा है।”
रॉबिन: “मैं जाकर पूछता हूँ।”
रॉबिन ने अपनी चाल धीमी की और सैम के बराबर चलने लगा।
> रॉबिन: “क्या बात है यार? तुम कुछ उदास लग रहे हो।”
सैम ने गहरी साँस ली।
> सैम: “मुझे नहीं पता मेरी गर्लफ्रेंड कहाँ चली गई है। कल रात से कोई उसे देख नहीं पाया। उसके पिता ने कहा कि वो घर ही नहीं लौटी।”
मैक्स चौंक गया।
> मैक्स: “तुमने हमें पहले क्यों नहीं बताया? हम मदद कर सकते थे!”
सैम: “मुझे समझ ही नहीं आया क्या करूँ... कहाँ से शुरू करूँ।”
फ्लूट ने चलते-चलते कदम रोक दिए।
> फ्लूट: “तो चलो वापस चलते हैं — उसके घर। शायद उसके पिता को कुछ पता हो।”
वे सब मुड़कर तेज़ी से गाँव की ओर लौटने लगे।
घर पहुँचकर फ्लूट ने उसके पिता, मिस्टर लेंस से बात की।
> फ्लूट: “सर, आपने अपनी बेटी को आखिरी बार कब देखा था?”
मिस्टर लेंस: “मैंने... मैंने उसे कल रात देखा ही नहीं। मैं जल्दी सो गया था,
पर आधी रात को किसी ने दरवाज़ा खटखटाया था...”
रात कुछ ज़्यादा ही अँधेरी थी,
और बेथ के घर के चारों ओर फैली ख़ामोशी में एक अजीब-सी बेचैनी थी।
फ्लूट ने मिस्टर लेंस की ओर गहराई से देखा।
> “सर, आपने कहा था कि कल रात किसी ने दरवाज़ा खटखटाया था?”
मिस्टर लेंस ने धीमे से सिर हिलाया, उनकी आँखों में चिंता थी।
> “हाँ… लगभग आधी रात का वक़्त था। मैं आधी नींद में था।
धीरे-धीरे खटखटाने की आवाज़ आई — दो बार, शायद तीन बार।
मैं उठा, दरवाज़ा खोला… पर वहाँ कोई नहीं था।”
सैम का दिल ज़ोर से धड़क उठा।
वो आगे बढ़ा और बोला,
> “क्या आपने कुछ देखा? कोई सड़क पर था?”
मिस्टर लेंस ने सिर झुका लिया।
> “नहीं… बस ठंडी हवा चल रही थी।
लेकिन जब मैंने खिड़की के पास देखा — तो बेथ की चप्पलें गायब थीं।”
रॉबिन ने भौंहें चढ़ाईं।
> “मतलब… वो घर से निकली थी?”
फ्लूट ने फुसफुसाया,
“लेकिन क्यों? आधी रात को वो कहाँ जा सकती है?”
एक पल को सब चुप हो गए।
दूर मंदिर की घंटियाँ भी डर के सन्नाटे में गूंजती-सी लगीं।
तभी मैक्स की नज़र दरवाज़े के पास पड़ी किसी अजीब चीज़ पर —
कीचड़ भरे पैरों के निशान, छोटे-छोटे, आधे मिटे हुए।
> “देखो यहाँ!” उसने कहा, “कोई इधर आया था।”
सैम घुटनों के बल झुक गया, उसकी आँखों में डर झलक रहा था।
> “ये बेथ के हैं… वो हमेशा ऐसे ही नरम सैंडल पहनती थी।”
फ्लूट ने सड़क की ओर देखा —
पगचिह्न अचानक वहीं खत्म हो गए,
जहाँ एक बड़ा बरगद का पेड़ खड़ा था।
वहाँ की मिट्टी उखड़ी हुई थी — जैसे किसी ने अपने पैरों को घसीटा हो।
एक ठंडी हवा का झोंका गुज़रा,
और पेड़ की पत्तियाँ ऐसी सरसराईं मानो रात के रहस्य फुसफुसा रही हों।
रॉबिन ने धीमे स्वर में कहा,
> “शायद वो अकेली नहीं गई थी…”
सैम ने अपने मुक्के भींच लिए।
> “जो भी उसे ले गया है — मैं उसे ढूँढ निकालूँगा। कसम खाता हूँ।”
चारों दोस्तों ने एक-दूसरे की ओर देखा —
उनकी पवित्र यात्रा अब रहस्यों के अँधेरे में बदल चुकी थी,
एक ऐसा राज़, जो उनकी ज़िन्दगी हमेशा के लिए बदल देने वाला था।
सूरज धीरे-धीरे उग रहा था,
उसकी सुनहरी किरणें पहाड़ों को मानो आग की लपटों सा रंग दे रही थीं।
चारों दोस्त — सैम, मैक्स, फ्लूट और रॉबिन — घने जंगल से होकर आगे बढ़ रहे थे।
सैम की आँखों में पिछली रात की चिंता साफ झलक रही थी,
और बेथ के गायब होने का डर उनके हर कदम पर साया बनकर साथ चल रहा था।
अचानक मैक्स रुक गया।
> “रुको… कुछ दिख रहा है,” उसने धीरे से कहा।
सैम और फ्लूट उसके पास आए।
झाड़ियों के पीछे से हल्की-सी हलचल हुई।
रॉबिन फुसफुसाया,
> “वहाँ कौन हो सकता है?”
मैक्स सावधानी से झाड़ी के पास पहुँचा —
और फिर उसकी आँखें चमक उठीं।
> “वेललेट…!” उसने चौंककर पुकारा।
वेललेट — मैक्स का पुराना दोस्त — झाड़ियों में फँसा हुआ था।
उसकी शर्ट फटी हुई थी, और वह एक टहनी का सहारा लेकर खड़ा था।
मैक्स ने घबराकर पूछा,
> “वेललेट… तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
वेललेट कुछ देर चुप रहा,
फिर हल्की मुस्कान के साथ बोला,
> “मैं… मैं खुद नहीं जानता…”
सैम ने हैरानी से साँस खींची।
फ्लूट ने राहत की साँस ली।
रॉबिन ने चिंता और शक भरे लहजे में कहा,
> “तो ये है मैक्स का दोस्त… और ये जवाब… इसका मतलब क्या हुआ?”
मैक्स ने गहरी साँस ली।
> “तो तुम्हें सच में याद नहीं कि तुम यहाँ कैसे फँसे?”
वेललेट ने सिर हिलाया।
> “इस जंगल ने जैसे मुझे अपने रहस्यमय रास्तों में घेर लिया था।
पर अब मैं तुम्हारे साथ हूँ — शायद मिलकर हम आगे का रास्ता खोज लें।”
चारों दोस्तों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
अब उनकी यात्रा सिर्फ मंदिर तक पहुँचने की नहीं रही —
ये एक नई शुरुआत बन चुकी थी,
एक पुराने दोस्त की वापसी और एक उभरते रहस्य के साथ।
आसमान पूरी तरह अँधेरा हो चुका था।
हवा में नमी थी, और पत्तों की सरसराहट ऐसे लग रही थी मानो जंगल खुद फुसफुसा रहा हो।
पाँचों — सैम, मैक्स, फ्लूट, रॉबिन और वेललेट —
अब जंगल के बिलकुल बीचोंबीच पहुँच चुके थे।
रास्ता सँकरा था, कीचड़ भरा, और चारों ओर साये फैले हुए थे।
हर कुछ मिनटों में उल्लू की आवाज़ या किसी डाल के हिलने की खनक उनके दिलों की धड़कनें तेज़ कर देती।
मैक्स बड़बड़ाया,
> “मुझे नहीं लगता हम सही रास्ते पर हैं…”
पर वेललेट रुका नहीं।
उसकी नज़रें जैसे किसी अनदेखे रास्ते को खोज रही थीं —
ऐसा रास्ता जो बाकी किसी को दिखाई नहीं दे रहा था।
फ्लूट ने धीरे से कहा,
> “मुझे अब भी लगता है, वेललेट हमसे कुछ छुपा रहा है…”
सैम सबसे पीछे चल रहा था।
वो चुप था — उसकी निगाहें काले जंगल में खोई हुई थीं।
हर झोंके के साथ बेथ की यादें लौट आतीं —
उसकी मुस्कान, उसकी हँसी, और वो आख़िरी पल जब उसने उसे देखा था।
उसने जेब में हाथ डाला —
वहाँ वो छोटी-सी चाँदी की हेयरपिन थी,
बेथ की आख़िरी निशानी।
वो उसे कसकर पकड़कर बैठ गया,
जैसे छोड़ देने से उसकी यादें भी मिट जाएँगी।
धीरे-धीरे बूंदाबांदी शुरू हो गई।
फ्लूट ने चारों ओर देखा और कहा,
> “अंधेरा तेज़ी से बढ़ रहा है, हमें कोई ठिकाना ढूँढना होगा।”
रॉबिन ने आगे इशारा किया,
> “वहाँ देखो, एक गुफा है। रात वहीँ बिताते हैं।”
वे सावधानी से गुफा की ओर बढ़े।
अंदर ठंड थी, सन्नाटा था — लेकिन कम से कम वहाँ सूखापन था।
वेललेट ने एक छोटी-सी आग जलाई;
उसकी झिलमिलाती रोशनी पत्थरों की दीवारों पर नाचने लगी।
सब थके हुए थे, चुपचाप बैठ गए।
काफ़ी देर तक किसी ने कुछ नहीं कहा।
बस आग की हल्की चटख और बारिश की टपकती बूँदें सुनाई दे रही थीं।
फिर सैम ने धीमे स्वर में कहा,
> “कभी-कभी मुझे लगता है वो अब भी पास है…
शायद यहीं कहीं… बस बोल नहीं पा रही।”
वेललेट ने उसकी ओर देखा —
उसकी आँखों में एक गहराई थी, एक रहस्य —
मानो उसे कुछ पता हो,
पर वो बताना नहीं चाहता था।
फ्लूट ने सन्नाटा तोड़ा।
> “अब आराम करो। सुबह जल्दी निकलना होगा।
ये जंगल… कुछ ठीक नहीं लगता।”
आग की लौ धीरे-धीरे मंद पड़ने लगी।
अंधेरा फिर से गुफा को निगल गया।
बाहर बारिश थम गई थी —
पर पेड़ों के उस पार,
कोई चीज़ हिली।
एक साया।
उन्हें देख रहा था।
इंतज़ार कर रहा था।
बारिश थमे कई घंटे बीत चुके थे,
फिर भी जंगल पर एक भारीपन छाया हुआ था —
जैसे हवा खुद किसी बेचैनी में लिपटी हो।
गुफा के भीतर आग की मद्धम लौ टिमटिमा रही थी,
और उसकी रोशनी पत्थर की दीवारों पर काँपते हुए साये बना रही थी।
सब गहरी नींद में थे —
सिवाय सैम के।
वो आग के पास बैठा लपटों में घूर रहा था,
लकड़ियों के जलने की चटचटाहट उसे बेथ की हँसी की याद दिला रही थी।
नींद उसकी आँखों से बहुत दूर थी।
आख़िरकार उसने धीरे से फुसफुसाया,
> “दोस्तों… ज़रा उठो न।”
सबसे पहले फ्लूट की आँखें खुलीं।
वो उनींदे स्वर में बोला,
> “क्या हुआ? बाहर कुछ सुना क्या?”
सैम ने सिर हिलाया और हल्की मुस्कान दी।
> “नहीं… बस नींद नहीं आ रही थी। सोचा थोड़ी बात कर लें।”
रॉबिन हँस पड़ा।
> “इस वक़्त? सैम, तुम सच में कमाल हो!”
मैक्स ने मज़ाक में कहा,
> “शायद इसे कोई डरावनी कहानी सुनानी है!”
एक पल के लिए गुफा में हँसी गूंज उठी —
दिनों बाद पहली बार उन्होंने बेफिक्री से हँसा था,
डर और थकान के बीच एक छोटी-सी राहत मिली थी।
फिर वेललेट, जो अब तक चुपचाप बैठा था,
हल्का मुस्कुराया और बोला,
> “तुमने कहा ना कि तुम्हें नींद नहीं आ रही…
तो बताओ सैम —
तुमने उससे पहली बार कब मुलाक़ात की थी?”
गुफा में अचानक एक सन्नाटा छा गया।
आग की लौ धीरे-धीरे काँप रही थी,
और सैम की आँखों में पुराने दिनों की परछाइयाँ उतर आईं
सैम ने आग की लपटों की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराया।
> “दोस्तों… ये बात कुछ साल पहले की है,” उसने कहना शुरू किया।
उसकी आँखों में पुरानी यादों की चमक थी —
जैसे कोई मीठा पल फिर से ज़िंदा हो उठा हो।
> “मैं वेल्को से काफ़ी दूर, एक छोटे से बाज़ार गया था —
थोड़ी बहुत चीज़ें लेने।
वहाँ मैंने एक आदमी को देखा जो सब्ज़ियों के दाम को लेकर दुकानदार पर चिल्ला रहा था —
मानो दुनिया की सबसे बड़ी समस्या टमाटर की कीमत हो!”
(सभी ज़ोर से हँस पड़े।)
सैम भी हँस पड़ा।
> “हाँ हाँ, हँसो जितना हँसना है!
मैंने सोचा — ये अजीब आदमी है कौन?
तो मैं आगे बढ़ा और पूछा, ‘सर, आप कहाँ से हैं?’
वो सीना ठोक कर बोला, ‘मेरा नाम मिस्टर लेंस है, और मैं वेल्को से हूँ!’”
> “मैं चौंक गया, बोला — ‘सच में? मैं भी वेल्को से हूँ!’”
और बस ये सुनते ही वो बिना पूछे मेरे बैलगाड़ी में चढ़ गया और बोला,
> “‘युवा आदमी, जल्दी चलो! मुझे इंतज़ार बिल्कुल पसंद नहीं!’”
(गुफा में फिर से हँसी गूंज उठी।)
सैम ने मुस्कुराते हुए कहा,
> “मुझे समझ नहीं आ रहा था कि हँसू या रोऊँ!
पूरा मंज़र इतना मज़ेदार था कि मेरा सारा मूड ही बदल गया।”
> “पूरे रास्ते वो बोलता ही रहा —
बेवजह के चुटकुले, अधूरी कहानियाँ, और फिर खुद ही उन पर हँसना!
और मैं बस सोचता रहा, ‘हे भगवान, ये आदमी बोलना कब बंद करेगा!’”
(अबकी बार सब और ज़ोर से हँसे।)
सैम ने बात जारी रखी,
> “रास्ते में उसने बताया कि उसकी बेटी पास के ही स्कूल में पढ़ती है,
और आज उसका आख़िरी दिन है —
तो वो उसे साथ ले जाने वाला था।”
कुछ देर बाद वो आई — बेथ।
थोड़ी झिझकी हुई, पर उसकी आँखों में एक अलग सी चमक थी —
साफ़-सुथरी, मासूम, और सच्ची।
ऐसा लगा मानो किसी कहानी की शुरुआत चुपचाप हो रही हो।
थोड़ी देर बाद मिस्टर लेंस थक गए और चुप हो गए,
और तभी बेथ और मैंने बात करना शुरू किया —
धीरे-धीरे, हिचकते हुए, लेकिन दिल से।
आग की रोशनी सैम के चेहरे पर झिलमिलाने लगी।
वो मुस्कुराया और बोला,
> “शायद उस दिन मैं सिर्फ़ सामान ही घर नहीं लाया था…
मैं अपनी ज़िंदगी की सबसे ख़ूबसूरत यादों में से एक भी साथ ले आया था।”
बैलगाड़ी हल्के-हल्के झूल रही थी,
ढलते सूरज की नारंगी किरणें आसमान को सुनहरे धागों में बुन रही थीं।
लकड़ी के पहिए हवा की ताल पर चरमराते जा रहे थे,
और सूखी मिट्टी की ख़ुशबू चारों ओर बिखरी हुई थी।
जैसा कि हमेशा होता था —
मिस्टर लेंस बोलते ही जा रहे थे।
> “अरे लड़के,” उन्होंने गर्व से कहा, “एक बार मैंने अकेले ही पाँच भैंसों को नहला दिया था!”
फिर ज़ोर से हँसे, “पूरा गाँव सोच में पड़ गया कि मैं इंसान हूँ या कोई चमत्कार!”
मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
> “कमाल है, सर! आप तो सुपरहीरो लगते हैं।”
वो चौड़ी मुस्कान के साथ सीना तानकर बोले,
> “सुपरहीरो? बिल्कुल! द मिल्कमैन सुपरहीरो!”
मैं अपनी हँसी रोक नहीं पा रहा था,
पर मेरी नज़रें बार-बार उनकी बेटी बेथ की ओर चली जा रही थीं।
वो शांत बैठी थी, हवा उसकी ज़ुल्फ़ों से खेल रही थी,
वो धीरे से उन्हें कान के पीछे सरकाती —
और होंठों पर हल्की सी मुस्कान…
ऐसी जो कहती है — “मुझे पता है, तुम देख रहे हो।”
मैंने धीरे से पूछा,
> “तो… तुम्हें सफ़र पसंद है?”
उसने एक नज़र मेरी ओर देखा और बोली,
> “हूँ…”
फिर थोड़ी देर रुककर मुस्कुराई,
“अगर साथ अच्छा हो तो।”
मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
> “तो आज का सफ़र शायद परफेक्ट है।”
बेथ ने सिर थोड़ा झुकाया,
उसकी आँखों में शरारत की चमक थी।
> “क्या तुम्हें यकीन है?”
मैंने जवाब दिया,
> “तुम पर? पूरी तरह।”
और तभी मिस्टर लेंस ज़ोर से बोल पड़े,
> “ओए लड़के! यही बात मैं अपनी बीवी से कहता था —
तू मेरी बेटी से क्यों कह रहा है?”
बेथ ने मुँह फेर लिया, हँसी दबाते हुए।
और मैं…
काश ज़मीन उसी वक्त मुझे निगल लेती।
लंबे सफ़र के बाद हम आखिरकार एक छोटे से कस्बे में पहुँचे —
शांत गलियाँ, गर्मजोशी भरी हँसी, और इतने अपनापन से भरे लोग
कि एक पल के लिए लगा… जैसे हम अजनबी नहीं, पुराने दोस्त हों।
मिस्टर लेंस तो वहाँ सबके चहेते बन गए।
उस रात गाँव वालों ने चौपाल में आग जलाई,
और चाँदनी की चाँदी-सी रौशनी में
एक-एक करके कहानियाँ खुलने लगीं।
मिस्टर लेंस ने अपने जवानी के दिन याद करते हुए कहा —
> “हमारे ज़माने में,” उन्होंने गर्व से मुस्कुराते हुए कहा,
“मैं एक हाथ से आठ बोरियाँ अनाज की उठा लेता था!
एक बार तो मैंने बिना औज़ार के बैलगाड़ी का पहिया तक बदल दिया था!”
सब ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे।
किसी ने कहा,
> “अरे बूढ़े, तुम्हें तो सर्कस में होना चाहिए था!”
वो मूँछें मरोड़ते हुए मुस्कुराए —
> “अगर होता, तो पूरी दुनिया तालियाँ बजाती…
अब तो बस मेरी बेटी ही मेरी बातें सुनती है।”
आग के चारों ओर हँसी गूँज उठी।
बेथ हल्के से मुस्कुराई,
मगर उसने मेरी ओर नहीं देखा।
वो बस उस पल की गर्माहट, आवाज़ें और रात की नर्मी में खोई थी।
और मैं… मैं तो बस उसे देखता रह गया।
आग की रौशनी उसकी आँखों में झिलमिला रही थी,
उसके चेहरे पर शांति थी —
जैसे वक़्त ठहर गया हो,
सिर्फ़ मुझे उसे थोड़ा और देखने देने के लिए।
रात गहराई तो सब सो गए।
पर मैं नहीं सो सका।
मैं उसके दरवाज़े तक गया और धीरे से कहा —
> “अगर तुम्हें ऐतराज़ न हो…
थोड़ी देर साथ चलोगी? नींद नहीं आ रही।”
वो झिझकी —
> “इस वक़्त?”
फिर हल्के से मुस्कुराई,
“ठीक है… लेकिन ज़्यादा देर नहीं।”
हम कस्बे की सँकरी गलियों से गुज़रे।
हवा ठंडी थी,
चाँदनी ज़मीन पर चाँदी की परत बिछा रही थी।
मैंने अपने गाँव की बातें कीं,
बचपन की,
उन बेवकूफी भरी चीज़ों की जो मुझे हँसाती थीं।
वो बस सुनती रही,
कभी मुस्कुराई,
कभी “हूँ” कहकर रह गई —
जैसे सब समझ रही हो,
पर जताना नहीं चाहती।
थोड़ी देर बाद मैंने पूछा —
> “तुम्हें किस तरह का आदमी पसंद है?”
वो आगे देखती रही,
फिर हल्की मुस्कान के साथ बोली —
> “जो फालतू बातें न करे… तुम्हारी तरह।”
और फिर वो आगे बढ़ गई।
मैं वहीं खड़ा रह गया,
बस उसे जाते देखता रहा।
और जैसे आसमान ने मेरी ख़ामोशी समझ ली —
बारिश होने लगी।
धीमी, मुलायम, शायरी-सी।
बूंदें मेरे चेहरे पर गिरती रहीं,
आग की लपटें धुएँ में बदल गईं,
और मैं बस उस दिशा में देखता रहा जहाँ वो गायब हुई थी।भोर की पहली किरणें पेड़ों के बीच से फिसलकर आईं,
और सुनहरी रोशनी जंगल की ज़मीन पर बिखर गई।
गुफा के भीतर की आग कब की बुझ चुकी थी —
बस हल्का-सा धुआँ अब भी ऊपर उठता हुआ, सुबह की हवा में खो रहा था।
सबने चुपचाप अपना सामान समेटा।
कुछ पल की ख़ामोशी के बाद वीलेंट ने शांत और ठोस आवाज़ में कहा —
> “चलो उत्तर की ओर बढ़ते हैं। वहीं हमें रास्ता मिलेगा।”
उसके कहने के अंदाज़ में एक अजीब-सी निश्चितता थी —
जैसे कोई आदेश नहीं, बल्कि सच्चाई हो।
किसी ने सवाल नहीं किया, सबने बस सिर हिला दिया।
अब वीलेंट उनका मार्गदर्शक बन चुका था —
आगे-आगे चलता हुआ, ऐसे जैसे ये जंगल उसकी रगों में बसता हो।
उसके साथ-साथ मैक्स कदम मिलाकर चल रहा था।
वो धीमे स्वर में बोला,
> “ये जंगल… कुछ अलग लग रहा है।”
वीलेंट हल्का मुस्कुराया,
> “अलग नहीं… पुराना है।
ये पेड़ याद रखते हैं।”
दोनों की बातें कम थीं, मगर समझ गहरी थी —
पुरानी दोस्ती का सुकून, जो शब्दों से परे था।
थोड़ा पीछे रॉबिन और फ्लूट चल रहे थे,
उनकी हँसी ने जंगल की ख़ामोशी को तोड़ दिया।
उनके लिए ये सफ़र एक रोमांच था —
कुछ नया, कुछ अनजाना, कुछ जंगली-सा।
रॉबिन मुस्कुराया और बोला,
> “देखो वो काई…?”