Parvaah - 1 in Hindi Motivational Stories by Aanchal Sharma books and stories PDF | परवाह - पार्ट 1

Featured Books
Categories
Share

परवाह - पार्ट 1

छोटे से कस्बे की गलियों में एक टूटा-फूटा सा मकान था, जहां एक मां-बेटी रहती थीं। मां का नाम सरला था और बेटी का नाम पायल। रिश्ते में मां तो थी सरला, पर जन्म देने वाली नहीं — सौतेली थी।

लोग कहते थे — "सौतेली मां कभी सगी नहीं होती।"
और पायल भी यही मानकर बड़ी हो रही थी। उसे लगता था कि सरला की हर बात में रोक-टोक है, प्यार नाम की कोई चीज़ उसके लिए नहीं है। जब भी सरला उसे गर्म दूध देती, वो सोचती — "जले हुए होंठों से क्या सच्चा प्यार जताया जा सकता है?"
जब भी वो स्कूल के लिए दो रोटी और अचार बांधती, पायल सोचती — "कभी मेरे लिए पराठे क्यों नहीं बनाती?"

पायल को लगता कि सरला उसके अपने बच्चों से ज्यादा प्यार करती — पर सच यह था कि सरला की अपनी कोई संतान नहीं थी।



पायल की मां — यानी सरला की सौत — कविता, एक सुंदर, सजीव और हंसमुख औरत थी। लेकिन एक सड़क हादसे में वो चल बसी, जब पायल मात्र 5 साल की थी।

सरला, जो कविता की चचेरी बहन थी, उस वक़्त अपने मायके में रहती थी। जब पायल की देखभाल करने वाला कोई नहीं बचा, तो उसके पिता ने सरला से शादी कर ली। किसी मजबूरी, किसी डर, और किसी छोटे बच्चे की देखभाल के लिए।

पर सरला ने उस मजबूरी को कभी रिश्ते की दीवार नहीं बनने दिया।

पायल को बुखार आता, तो सारी रात सरला उसके सिर पर ठंडी पट्टियां रखती। स्कूल से देर से आती, तो गुस्से में होती पर खाना खुद अपने हाथ से खिलाती। परीक्षा में अच्छे नंबर लाने पर मिठाई लाती, तो कभी "ये मेरी बेटी है" कहकर गर्व से मुस्कुराती।

पर पायल इन बातों को सौतेली साज़िश समझती रही।


वक्त बीतता गया। पायल अब कॉलेज में आ चुकी थी। सरला अब पहले जैसी चुस्त नहीं रही। आंखों पर मोटे चश्मे, और हाथों में थरथराहट।

एक दिन पायल कॉलेज से लौट रही थी कि रास्ते में उसे फोन आया। कॉल हॉस्पिटल से था — "आपकी मां को दिल का दौरा पड़ा है।"

भागती हुई पायल अस्पताल पहुंची। पहली बार, सरला को मशीनों से घिरा देख उसका कलेजा कांप उठा।

डॉक्टर बोला, "मां को बार-बार स्ट्रेस हो रहा है, इन्हें किसी बात की बहुत चिंता है।"
पायल ने पहली बार सरला की हथेली थामी। आंखें नम थीं उसकी भी, पर कुछ कह नहीं पाई।

जब होश आया, सरला बोली, "तुम ठीक हो ना बेटा? मुझे डर था कहीं तुम्हें कुछ ना हो जाए।"

पायल सिसक पड़ी — "मुझे क्या होगा मां... आप ही तो मेरी परवाह करती थीं, पर मैं समझ न सकी..."


कुछ हफ्तों बाद सरला ठीक होकर घर लौटी। पायल अब रोज़ उनके पांव दबाती, खुद खाना बनाकर उनके साथ बैठती। एक शाम, सरला के कांपते हाथों में गर्म दूध का गिलास थमाते हुए पायल बोली —
"आज से ये मां नहीं, मेरी दुनिया हैं... और अब मैं आपकी परवाह करूंगी मां... जैसे आपने बरसों की थी... बिन जताए।"

सरला की आंखों से आंसू निकल पड़े। शायद वो आंसू थे — सालों की परवाह, जो आज जाकर किसी को महसूस हुई।



कभी-कभी परवाह चिल्ला कर नहीं जताई जाती...
वो बस चुपचाप दिल से की जाती है...
और सौतेले रिश्ते अगर सच्चे हो जाएं —
तो वो सबसे अपने बन जाते हैं।