The Ultimate Guidance in Hindi Spiritual Stories by Alfha production house books and stories PDF | The Ultimate Guidance

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The Ultimate Guidance

The
  
    Ultimate

               Guidance         







                ROHAN MATHUR





                                                           



                                                            
                ALFHA [Indian institution]

                      The Ultimate guidance 

                                     2

                   Authors Introduction


The Author of this book is' Rohan mathur ' ,who is an lrycist,poet and story writter. He is an teenage student and has been working on ' The ultimate guidance for months.He was born in 'Faridabad'.

You can contact us on whatsapp and at,' 9899850290'


He is also an creator of an institution named 'ALFHA (indian institution)
The institution is an parental institution on parental guidens.(online classes available)

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                      The ultimate guidance.             3

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                      THE ULTIMATE GUIDANCE       4


Contenets:

Chapter 1:- अनंत नृत्य।                                5

Chapter 2:- सत्य की कोज।                          13

Chapter 3:- ज्ञान का सच्चा अर्थ।                   19

Chapter 4:- धैर्य व अनमोल की घड़ी।             25

Chapter 5:- गीता का अमूल्य पाठ।                     33

Chapter 6:- sanskrit shlokas(students)    41

Chapter 7:- The source of ultimate           47                         guidance 

( volume 2 will publish soon as possible as
Titled with "vedic insights" )











                               अनंत नृत्य                          5





       पाठ

         1







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अनंत नृत्य: आर्यन की आध्यात्मिक यात्रा

काशी — वह प्राचीन नगरी जहाँ गंगा की लहरें चाँदी की तरह चमकती थीं और जहाँ हर पत्थर पर शिव का नाम अंकित था। इसी नगरी में एक विनम्र विद्वान रहता था — आर्यन।

आर्यन का जीवन वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता के अध्ययन में बीतता था। उसके पास ज्ञान था, पर मन बेचैन था। ग्रंथों के शब्द उसकी आत्मा तक नहीं पहुँच पा रहे थे। वह सत्य की खोज में था — ऐसा सत्य जो केवल पुस्तकों तक सीमित न हो, बल्कि अनुभव की गहराइयों में समाया हो।

एक शाम, जब गंगा के तट पर आर्यन ध्यान में लीन था, अचानक हवा में एक मधुर संगीत तैरने लगा। कोहरे से लिपटी एक दिव्य आकृति प्रकट हुई — नारद मुनि, उनकी वीणा से स्वर्गीय राग गूंज रहे थे।

“आर्यन,” नारद ने कहा, “तुम ग्रंथों में सत्य ढूँढ रहे हो, पर सत्य शब्दों से परे है। आओ, मैं तुम्हें ब्रह्मांड के उन अनंत रहस्यों को दिखाता हूँ जो सृष्टि, माया और मोक्ष के सूत्रों से जुड़े हैं।”
एक दिव्य प्रकाश के साथ, आर्यन ने खुद को पाँच दैवीय लोकों के सामने पाया। हर लोक एक विशाल दर्पण की तरह था — हर एक में एक अलग ऊर्जा की चमक थी।

                               अनंत नृत्य.                                        7


सृष्टि का लोक (Creation — Srishti)

पहला लोक रंगों की एक दिव्य लहर की तरह झिलमिला रहा था। आर्यन ने देखा — भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर शयन कर रहे थे। उनके नाभि से एक कमल निकला, और उस पर ब्रह्मा प्रकट हुए। उनके मुख से “ॐ” की ध्वनि गूँज उठी — और उसी के साथ समय, आकाश, और ब्रह्मांड का निर्माण हुआ।

नारद बोले, “यह सृष्टि है — जहाँ हर रचना एक उद्देश्य से जन्म लेती है।”

आर्यन ने देखा कि ब्रह्मा ने चार वेदों की रचना की, और साथ ही धरती पर जीवों को जन्म दिया। पर तभी उसने एक मछुआरे — रोहन — को देखा, जो एक डूबते हुए व्यक्ति को बचा रहा था। आश्चर्य की बात यह थी कि वह व्यक्ति एक राजा था। राजा ने आशीर्वाद दिया, पर फिर भी रोहन का जीवन कठिनाइयों से भर गया।
“लेकिन उसने तो भलाई की, फिर उसे पीड़ा क्यों मिली?” आर्यन ने पूछा।
नारद ने मुस्कुरा कर कहा, “कर्म एक धागा है, जो सृष्टि के इस जाल को बुनता है। अच्छे और बुरे कर्म तुरंत फल नहीं देते — वे समय की गहराइयों में बीज की तरह उगते हैं।”



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पालन का लोक (Preservation — Sthiti)

दूसरा लोक नीले प्रकाश से जगमगा रहा था। आर्यन ने भगवान विष्णु को अनंत शेषनाग पर लेटे देखा। उनके अवतार — श्रीराम और श्रीकृष्ण — इस लोक में कर्तव्य निभा रहे थे।
एक बड़ा वट वृक्ष था, जिसके नीचे चार यात्री बैठे थे:
• एक व्यापारी — जो धन और वैभव की ओर भाग रहा था।
• एक कलाकार — जो सौंदर्य और सुख की तलाश में था।
• एक संन्यासी — जो धर्म और कर्तव्य का पालन कर रहा था।
• एक योगी — जो मोक्ष की ओर बढ़ रहा था।

वे चारों जीवन के उद्देश्य पर बहस कर रहे थे।
नारद ने कहा, “अर्थ (धन), काम (इच्छाएँ), धर्म (कर्तव्य) और मोक्ष (मुक्ति) — ये चार पुरुषार्थ जीवन को संतुलित रखते हैं। परंतु यदि कोई एक मार्ग पर अति कर दे, तो संतुलन टूट जाता है।”
आर्यन को महसूस हुआ कि संतुलन बनाए रखना ही सच्चा पालन है — जैसे भगवान विष्णु सृष्टि को संतुलित रखते हैं।






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संहार का लोक (Destruction — Samhara)

अगला दृश्य एक जलते हुए आकाश की तरह था। आर्यन ने भगवान शिव को तांडव नृत्य करते देखा। उनकी तीसरी आँख से ज्वाला निकल रही थी, उनके हर पदचाप पर ब्रह्मांड थरथरा रहा था।

परंतु यह विनाश केवल अंत नहीं था — जैसे जंगल जलकर नए अंकुरों को जन्म देता है, वैसे ही शिव का तांडव सृष्टि के नवजीवन का संकेत था।

एक कौआ पास के एक साधु का उपहास कर रहा था। साधु शांत बैठा रहा, लेकिन तभी एक शिकारी आया और शोर सुनकर उस पर तीर चला दिया। साधु की शांति ने उसे बचा लिया।

नारद ने कहा, “विनाश केवल बाहरी नहीं होता — कभी-कभी मौन भी एक हथियार है।”
आर्यन ने समझा कि संहार केवल नाश नहीं है — यह एक नवीनीकरण है।






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माया का लोक (Illusion — Maya)

अगला लोक रहस्यमय था — धुंध और भ्रम से भरा। आर्यन ने राजाओं को देख, जो सिंहासन के लिए युद्ध कर रहे थे। संत अहंकार में डूब रहे थे। लोग धन और यश के पीछे भाग रहे थे।

एक गाँव में, एक लड़की ने एक सूखी नदी को खोज निकाला, जिसे स्वार्थी लोगों ने रोक रखा था। जैसे ही पानी बहा, गाँव फिर से जीवंत हो गया।

“यह माया है,” नारद ने कहा। “सत्य हमेशा वहीं होता है — परंतु इच्छाएँ और अज्ञान उसे ढक देते हैं।”
आर्यन ने कृष्ण के शब्दों को याद किया:


“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।” (गीता 2.22)


जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए धारण करता है, वैसे ही आत्मा नया शरीर धारण करती है।



   
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मोक्ष का लोक (Liberation — Moksha)

अंतिम लोक प्रकाश से भरा था — इतना उज्ज्वल कि आर्यन की आँखें बंद हो गईं। वहाँ उसने महान संतों — आदि शंकराचार्य और मीराबाई — को देखा, जो ब्रह्म में विलीन हो चुके थे।

एक दिव्य जुलाहा एक जादुई वस्त्र बुन रहा था। हर धागा एक आत्मा की यात्रा थी — हर गाँठ कर्म का प्रभाव।
जुलाहे ने कहा, “भाग्य तुम्हारे कर्म का धागा है, परंतु तुम्हारा मन और कर्तव्य उस धागे को आकार देते हैं।”
आर्यन ने महसूस किया कि मोक्ष केवल संसार छोड़ना नहीं है — यह अपनी आत्मा को भीतर से मुक्त करना है।


वापसी और सच्चा ज्ञान
क्षण भर में आर्यन फिर से काशी में था। पर अब गंगा की लहरों में उसे कृष्ण की मुरली और शिव के तांडव की लय सुनाई दे रही थी।

वह अब केवल ग्रंथों से नहीं पढ़ाता था — वह अनुभव से सिखाता था।
उसकी शिक्षा तीन सूत्रों पर आधारित थी:



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• कर्म योग: कर्तव्य करो, फल की इच्छा मत करो।

• भक्ति योग: ईश्वर से प्रेम करो, बिना शर्त के।

• ज्ञान योग: माया के भ्रम से परे सत्य को देखो।

काशी की संध्या में, आर्यन का मन शिव के तांडव और कृष्ण की मुरली की अनंत धुन पर सदा के लिए नाच उठा।













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            पाठ

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“सत्य की खोज: आत्मा का संवाद”


प्राचीन भारत के एक छोटे से आश्रम में एक जिज्ञासु युवक रहता था — उसका नाम था विद्युत। वह ज्ञान का प्यासा था, दिन-रात ग्रंथों का अध्ययन करता और ऋषियों से प्रश्न पूछता। फिर भी, उसके मन में शांति नहीं थी।

एक दिन, वह अपने गुरु ऋषि सोम के पास गया और बोला,
“गुरुदेव, मैंने वेद पढ़े, उपनिषदों को समझने का प्रयास किया, भगवद गीता के श्लोक रट लिए —

फिर भी मुझे सत्य का अनुभव क्यों नहीं होता?”

गुरु ने मुस्कुराकर कहा,
“बेटा, सत्य पढ़ने से नहीं — अनुभव से जाना जाता है। कल तुम मुझे पहाड़ की चोटी पर मिलना, मैं तुम्हें सत्य दिखाऊँगा।”

अगली सुबह, विद्युत ने कठिन पहाड़ पर चढ़ना शुरू किया। रास्ते में उसने तीन विचित्र घटनाएँ देखीं।




                   सत्य की खोज                         15


पहली घटना: किसान और चट्टान

सबसे पहले, उसने एक वृद्ध किसान को देखा जो एक भारी चट्टान हटाने की कोशिश कर रहा था। घंटों प्रयास करने के बाद भी चट्टान हिली नहीं। थककर किसान बैठ गया और रोने लगा।

विद्युत ने कहा, “बाबा, आप क्यों रो रहे हैं?”
किसान ने उत्तर दिया,
“मैंने अपने जीवन में हमेशा अच्छे कर्म किए — फिर भी यह कठिनाई क्यों? क्या भगवान मेरा परिश्रम नहीं देखते?”
विद्युत ने कोई उत्तर नहीं दिया और आगे बढ़ गया।


दूसरी घटना: व्यापारी और नदी
आगे जाकर उसने एक व्यापारी को नदी के पास बैठे देखा। उसके पास एक टूटा हुआ घड़ा था, जिससे सारा पानी बह गया था। व्यापारी निराश होकर बड़बड़ा रहा था,

“मैंने इतनी मेहनत से व्यापार किया, पर मेरे सारे पैसे डूब गए। यह कैसा न्याय है?”

विद्युत ने यह सुना, पर चुपचाप चलता रहा।



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तीसरी घटना: बालक और दीपक

अंत में, उसने एक छोटे बालक को देखा जो एक दीपक जलाने की कोशिश कर रहा था। हवा हर बार दीपक को बुझा देती थी, पर बालक हार नहीं मान रहा था। अंततः उसने दीपक को दोनों हाथों से ढककर जलाया। उसकी आँखों में एक अजीब सी शांति थी।

विद्युत ने पूछा, “तुम थके नहीं? हवा बार-बार दीपक बुझा रही है।”

बालक ने हँसते हुए कहा,

“जब तक मैं प्रयास करूँगा, यह जलता रहेगा। हार मान लूँ तो अंधकार छा जाएगा।”
सत्य का रहस्य
थोड़ी देर बाद विद्युत पहाड़ की चोटी पर पहुँचा, जहाँ ऋषि सोम पहले से प्रतीक्षा कर रहे थे।
गुरु ने पूछा, “तुमने क्या देखा?”
विद्युत ने तीनों घटनाएँ बताईं।
गुरु ने कहा,
“तीनों घटनाओं में सत्य छिपा है:

• वह किसान कर्म योग भूल गया — उसे अपने कर्म पर अधिकार है, फल पर नहीं। (गीता 2.47)
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• व्यापारी ने संसार की माया में सुख खोजा, जबकि यह जगत परिवर्तनशील है।

• पर वह बालक आत्मा का प्रकाश जानता था — उसने प्रयास करना नहीं छोड़ा, क्योंकि सच्चा दीपक हमारे भीतर जलता है।

विद्युत, सत्य यह है कि आत्मा अजर-अमर है। सुख-दुःख, सफलता-असफलता — ये सब क्षणिक हैं। पर जो व्यक्ति अपने भीतर के दीपक को जलाए रखता है, वही सत्य को देख सकता है।”
गुरु ने भगवद गीता का एक श्लोक सुनाया:


“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय

नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।” (गीता 2.22)
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए धारण करता है, वैसे ही आत्मा शरीर छोड़कर नया शरीर लेती है।
विद्युत को अनुभव हुआ कि सत्य शब्दों में नहीं — अनुभव में है। उसने पहली बार भगवद गीता का सार महसूस किया।
अब वह केवल शास्त्र पढ़ने वाला विद्यार्थी नहीं — बल्कि आत्मा का प्रकाश देखने वाला साधक बन चुका था।
सीख:

• कर्म करो, पर फल की चिंता मत करो।
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• माया के भ्रम को समझो, क्योंकि यह संसार स्थायी नहीं है।

• आत्मा के दीपक को जलाए रखो — वहीं सच्चा सत्य का अर्थ











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      पाठ

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"ज्ञान का सच्चा अर्थ"

प्राचीन काल की बात है। गुरुकुल में एक होनहार छात्र था — अर्जुन। वह पढ़ाई में तेज था, हर प्रश्न का उत्तर तुरंत दे देता था, और गुरु के हर पाठ को रट लेता था। लेकिन एक चीज़ उसे परेशान करती थी — 

वह कभी भी संतुष्ट महसूस नहीं करता था।

एक दिन अर्जुन ने अपने गुरु आचार्य वसिष्ठ से पूछा:
"गुरुदेव, मैं इतनी पढ़ाई करता हूँ, हर श्लोक याद करता हूँ, फिर भी मन अशांत रहता है। ऐसा क्यों?"

गुरु ने मुस्कुराकर कहा:

"कल सुबह तुम मुझे वन के पास मिलना, तुम्हारे प्रश्न का उत्तर वहीं मिलेगा।"

अगली सुबह, अर्जुन वन पहुँचा। वहाँ उन्होंने एक विचित्र दृश्य देखा।


🌿 पहली सीख: प्रयास का महत्व
वहाँ एक किसान दिनभर पेड़ के नीचे बैठा एक किताब पढ़ रहा था। अर्जुन ने सोचा कि यह व्यक्ति ज्ञानवान होगा।


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अचानक, एक गरीब लकड़हारा वहाँ आया। उसके पास न तो किताब थी, न कोई शिक्षा। लेकिन उसने पेड़ के नीचे पड़े सूखे पत्तों को इकट्ठा किया और आसपास फैली गंदगी साफ कर दी।

गुरु ने अर्जुन से पूछा:

"इन दोनों में से कौन अधिक ज्ञानी है?"

अर्जुन ने तुरंत कहा:

"किताब पढ़ने वाला व्यक्ति ही ज्ञानी है।"

गुरु ने मुस्कुराकर कहा:

"नहीं, अर्जुन। लकड़हारे ने बिना पढ़े कर्म किया। उसने अपने चारों ओर सफाई की। सच्चा ज्ञान वह है जो केवल पढ़ाई तक सीमित न रहे, बल्कि कर्म के रूप में प्रकट हो।"


🔥 दूसरी सीख: धैर्य और एकाग्रता
फिर गुरु अर्जुन को एक नदी किनारे ले गए। वहाँ एक मछुआरा जाल फेंककर मछलियाँ पकड़ने की कोशिश कर रहा था, पर बार-बार असफल हो रहा था। 
            The ultimate guidance.                        22


उसने हार नहीं मानी और अंततः कई मछलियाँ पकड़ लीं।

गुरु ने कहा:

"देखो अर्जुन, यह मछुआरा असफलता से निराश नहीं हुआ। पढ़ाई में भी यही होता है। यदि एक बार में कुछ समझ न आए, तो प्रयास करते रहो। सफल वही होता है जो धैर्य और एकाग्रता बनाए रखे।"


✨ तीसरी सीख: ज्ञान का उद्देश्य
आखिर में गुरु ने अर्जुन को एक झरने के पास ले जाकर कहा:

"इस झरने की ओर देखो। इसका जल लगातार बहता है।"

अर्जुन ने पूछा:

"इसका ज्ञान से क्या संबंध है, गुरुदेव?"

गुरु ने कहा:

"सच्चा ज्ञान भी इस झरने की तरह है। यह केवल एक जगह ठहरता नहीं — यह प्रवाहित होता है, दूसरों तक पहुँचता है, और नया जीवन देता है। अगर तुमने पढ़ाई 

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की, पर उसे दूसरों तक नहीं पहुँचाया, तो वह ज्ञान मृत हो जाएगा।"


📖 अर्जुन की आँखें खुल गईं
अर्जुन ने उस दिन सीखा:

• ज्ञान का असली अर्थ केवल रटने में नहीं, उसे जीवन में उतारने में है।

• असफलता से घबराना नहीं चाहिए — पढ़ाई में धैर्य और निरंतर प्रयास ज़रूरी है।

• ज्ञान बाँटना चाहिए — यह झरने की तरह बहता रहना चाहिए, तभी यह सार्थक है।

उस दिन से अर्जुन ने केवल किताबों के पन्ने नहीं पलटे — उसने हर सीख को अपने जीवन में अपनाया।


💡 शिक्षा:
• पढ़ाई में रटने से ज़्यादा ज़रूरी है उसे समझना और जीवन में लागू करना।




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• असफलता से घबराओ मत — प्रयास जारी रखो।
• जो ज्ञान तुम्हें मिला है, उसे दूसरों के साथ बाँटो।
















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           पाठ

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कहानी:-      अनमोल घड़ी 

बेटे की अनमोल घड़ी

एक समय की बात है, एक पिता अपने बेटे को पढ़ाई के लिए हमेशा डांटते रहते थे। 

उनका सपना था कि बेटा बड़ा होकर एक सफल इंसान बने, लेकिन बेटा अक्सर खेल-कूद में ही खोया रहता। 

पिता को यह चिंता सताती रहती थी कि कहीं उनका बेटा जिंदगी में पिछड़ न जाए।

एक दिन, जब बेटा स्कूल से घर लौटा, पिता ने उसे एक पुरानी घड़ी दिखाई। यह घड़ी उनके दादा जी की थी — पुरानी, जंग लगी और चलने की हालत में भी नहीं थी।

पिता ने बेटे से कहा, "बेटा, इसे लेकर बाजार जाओ और देखो कि इसकी क्या कीमत है।"

पहले बेटा उस घड़ी को एक घड़ी की दुकान पर लेकर गया। दुकानदार ने घड़ी देखकर कहा, "ये तो बहुत पुरानी है, मैं इसके 200 रुपये ही दे सकता हूँ।"

बेटा वापस आया और पिता को बताया। पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, "अब इसे एक प्राचीन वस्तुओं की दुकान पर ले जाओ।"
             धैर्य  व अनमोल की घड़ी.           31


वहाँ दुकानदार ने घड़ी को ध्यान से देखा और कहा, "ये तो ऐतिहासिक घड़ी है, मैं इसके 10,000 रुपये देने को तैयार हूँ।"

बेटा हैरान हो गया। उसने फिर घर आकर पिता को बताया। पिता ने कहा, "अब इसे एक नीलामी घर (ऑक्शन हाउस) में ले जाओ।"

जब बेटा घड़ी लेकर नीलामी घर पहुँचा, तो वहाँ के विशेषज्ञों ने उसकी बारीकी से जांच की और बोले, "ये घड़ी दुर्लभ है, इसकी कीमत कम से कम 1 लाख रुपये है!"

बेटा अवाक रह गया। वह भागते हुए घर लौटा और पिता को सब कुछ बताया।

पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, "देखा बेटा? जब तुम गलत जगह गए, तो इस घड़ी की कीमत कम आंकी गई।

लेकिन सही जगह पर इसकी कदर लाखों में आँकी गई। यही बात तुम्हारे जीवन पर भी लागू होती है। 

अगर तुम अपनी काबिलियत को गलत जगह पर साबित करने की कोशिश करोगे, तो लोग तुम्हारी अहमियत नहीं समझेंगे।
लेकिन जब तुम सही जगह पर अपने हुनर को दिखाओगे, तो दुनिया तुम्हारी कद्र करेगी।"

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🌿 सीख:

यह कहानी माता-पिता के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देती है। 
हर बच्चे की अपनी अलग खासियत होती है। कभी-कभी हमें बस उन्हें सही माहौल और सही मंच देने की जरूरत होती है। 
हर बच्चा अनमोल है — बस उसे पहचानने और सही दिशा में मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है। 
इसलिए बच्चों को डांटने के बजाय उनकी ताकत और रुचियों को समझने की कोशिश करें। 
उन्हें वह मंच दें, जहाँ वे अपनी असली कीमत को पहचान सकें। 🌟















       पाठ

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               The ultimate guidance.                        34


गीता का अमूल्य पाठ: बेटे का प्रश्न, पिता का उत्तर

एक समय की बात है, एक गाँव में एक ज्ञानी पिता अपने बेटे के साथ रहते थे। बेटा बहुत होशियार था, लेकिन हर छोटी असफलता पर निराश हो जाता। 
एक बार परीक्षा में कम अंक आने पर उसने गुस्से में किताबें फेंक दीं और कहा, "पिताजी, मैं कभी सफल नहीं हो पाऊँगा! मेरे प्रयास बेकार हैं!"

पिता मुस्कुराए और अलमारी से भगवद गीता निकालकर लाए। बेटे ने हैरानी से पूछा, "ये गीता क्यों लाई है? इसमें मेरी असफलता का हल कैसे मिलेगा?"

पिता ने एक श्लोक पढ़ा:

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।"

(भगवद गीता 2.47)

फिर पिता ने समझाया, "भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने पर है, लेकिन फल पर नहीं। परिणाम की चिंता मत करो — 



                   गीता का अमूल्य पाठ          35


बस अपना कर्तव्य करते रहो।"

बेटा चुपचाप सुनता रहा।
पिता ने आगे कहा, "अगर तुम फल की चिंता करते हुए पढ़ाई करोगे, तो हर बार नंबर कम आने पर निराश हो जाओगे। 

लेकिन अगर तुम पूरी ईमानदारी से पढ़ाई को ही लक्ष्य बनाओ, तो सफलता अपने आप तुम्हारे पास आएगी।"

इसके बाद पिता ने एक बीज उठाकर कहा, "यह देखो, यह बीज। अगर मैं इसे धरती में बोऊँ, पानी दूँ, और धूप मिले —
तो यह पेड़ बनेगा। लेकिन अगर मैं हर दिन खोदकर देखता रहूँ कि अंकुर निकला या नहीं, तो यह कभी नहीं उगेगा। इसी तरह, अगर तुम लगातार अपने प्रयास पर ध्यान दोगे, तो एक दिन सफलता का वृक्ष जरूर उगेगा।"

बेटे की आँखों में चमक आ गई। 
उसने गीता को सीने से लगाया और कहा, "पिताजी, मैं अब केवल अपने कर्म पर ध्यान दूँगा। परीक्षा के अंक मुझे नहीं गिरा सकते, लेकिन मेरा परिश्रम मुझे ऊँचा उठाएगा।"

🌿 सीख:
              The ultimate guidance.                        36


इस कहानी में भगवद गीता का मूल संदेश छुपा है — कर्म योग। 
माता-पिता को यह सिखाना चाहिए कि बच्चों को केवल परिणाम पर ध्यान देने की जगह, उन्हें मेहनत और ईमानदारी से काम करने की आदत डालनी चाहिए। 

जब हम बिना फल की चिंता किए कर्म करते हैं, तो सफलता देर-सवेर जरूर आती है।

इसलिए, गीता का पाठ यह है:

“फल की चिंता छोड़कर कर्तव्य करो — क्योंकि सच्चा परिश्रम कभी व्यर्थ नही जाता।” 🌟
(श्री कृष्ण का मार्गदर्शन)


दुसरी सीख 🌿

शिष्य की जिज्ञासा और गीता का उत्तर
कई वर्षों पहले, हिमालय की एक शांत गुफा में ऋषि वसिष्ठ का आश्रम था। वहाँ एक युवक शिष्य, अर्जुन, दिन-रात वेदों और शास्त्रों का अध्ययन करता था। लेकिन एक दिन, वह उदास मन से ऋषि के पास पहुँचा और बोला:

"गुरुदेव, मैं पूरी मेहनत से अध्ययन करता हूँ, पर जब 

                   गीता का अमूल्य पाठ           37


परीक्षा पास आती है तो डर मुझे घेर लेता है। असफल होने का भय मुझे कुछ भी करने नहीं देता। मैं शांति कैसे पाऊँ?"

ऋषि वसिष्ठ ने मंद मुस्कान के साथ भगवद गीता का एक श्लोक पढ़ा:

"योगस्थ: कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।"
(भगवद गीता 2.48)

( Do not pronounce it,if no guidance of an spiritual saints or guru) warning

अर्थ: श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं — हे धनंजय! योग में स्थित होकर, आसक्ति छोड़कर, सफलता और असफलता दोनों को समान मानकर कर्म करो। यही समभाव की अवस्था ही योग है।
शिष्य ने चकित होकर पूछा, "गुरुदेव, इसका क्या अर्थ है?"

ऋषि ने उसे पास बैठाया और बोले, "बेटा, सफलता और असफलता केवल परिणाम हैं, लेकिन सच्चा योगी वही है जो इन दोनों से परे होकर अपना कर्तव्य करता है। जब तुम पढ़ाई करो, तो सिर्फ इस बात पर ध्यान दो कि तुम पूरे मन से मेहनत कर रहे हो। अगर असफलता का भय मन में रहेगा, तो वह तुम्हारी एकाग्रता को खा जाएगा।"

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फिर उन्होंने एक और श्लोक सुनाया:

"न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै:।।"
(भगवद गीता 3.5)

अर्थ: कोई भी व्यक्ति एक क्षण भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता। प्रकृति के गुण उसे निरंतर कर्म करने के लिए मजबूर करते हैं।

ऋषि ने समझाया, "बेटा, कर्म करना मनुष्य का स्वभाव है। तुम चाहो या न चाहो, तुम्हारा मन और शरीर कुछ न कुछ करता रहेगा। इसलिए अपना ध्यान सही दिशा में लगाओ और कर्म को ही पूजा मानो।"

अर्जुन ने अब समझ लिया कि उसे केवल अपना प्रयास करना है — परीक्षा के परिणाम की चिंता नहीं करनी चाहिए।

फिर, ऋषि वसिष्ठ ने अंतिम श्लोक सुनाया:
"स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:।"
(भगवद गीता 3.35)





                     गीता का अमूल्य पाठ           39


अर्थ: अपने धर्म (कर्तव्य) में मरना भी श्रेयस्कर है, लेकिन दूसरे के धर्म (कर्तव्य) को अपनाना भयावह है।
उन्होंने कहा, "तुम्हारा धर्म अभी अध्ययन करना है। अगर तुम सच्ची लगन से पढ़ोगे, तो तुमने अपना कर्तव्य निभा दिया। बस यही सच्ची सफलता है।"

अर्जुन ने नतमस्तक होकर कहा, "गुरुदेव, अब मैं केवल अपने कर्म पर ध्यान दूँगा और फल की चिंता नहीं करूँगा।"

🌿 सीख:

इस कहानी के माध्यम से भगवद गीता का सन्देश स्पष्ट होता है —
• फल की आसक्ति छोड़कर कर्म करना

• सफलता और असफलता में समभाव रखना

• स्वधर्म को निभाने पर ध्यान देना
• 
गीता सिखाती है कि हमारा कर्तव्य कर्म करना है,
परिणाम नहीं। यदि हम पूरे मन और निष्ठा से कर्म करते हैं, तो सच्ची शांति और सफलता दोनों हमारे पास आती हैं।









       पाठ

         6







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Sanskrit shlokas for students, covering wisdom, knowledge, focus, and discipline, with their meanings:

Shlokas on Knowledge & Education

• गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

The Guru is Brahma, Vishnu, and Shiva. The Guru is the Supreme Reality. I bow to that Guru.


• विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद् धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

Knowledge brings humility, humility leads to worthiness, worthiness brings wealth, and wealth leads to righteousness and happiness.

• न चौर हार्यं न च राज हार्यं न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी।



व्यये कृते वर्धत एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥


Knowledge cannot be stolen, divided, or destroyed. It always increases when shared. It is the greatest wealth.


• सत्यं विद्यातपोदानं सत्यं शीलं पराक्रमः।
सत्यं हि सर्वधर्माणां मूलं प्रोक्‍तमनुत्तमम्॥

Truth, knowledge, penance, charity, character, and courage—truth is the supreme foundation of all virtues.


• असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय॥

Lead me from falsehood to truth, from darkness to light, from death to immortality.


Shlokas on Focus & Hard Work



• कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

You have the right to work but never to its fruits. Do not be attached to the results. (Bhagavad Gita 2.47)
• उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥

Elevate yourself through your own efforts. Do not degrade yourself. You are your best friend or worst enemy. (Bhagavad Gita 6.5)

• शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्॥
A healthy body is the primary tool for achieving righteousness.


• धैर्यमूलं हि विजयः॥
Victory is rooted in courage.

• न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते॥
• 
Nothing is as pure as knowledge in this world. (Bhagavad Gita 4.38)




Shlokas on Discipline & Self-Control

• यथा दीपो निवातस्थो नेङ्गते सोऽपमा स्मृता।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः॥

A disciplined mind is like a lamp in a windless place; it does not flicker. (Bhagavad Gita 6.19)


• न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥

No one can remain actionless even for a moment; all are driven to act by nature. (Bhagavad Gita 3.5)


• समत्वं योग उच्यते॥
• 
Equanimity is called Yoga. (Bhagavad Gita 2.48)

• दुर्बलस्य बलं विद्या।

For the weak, knowledge is strength.


• चिन्तनं प्रथमं शस्त्रं विनियोगस्तु ततः परम्।

Thinking is the first weapon; application comes next.


Shlokas on Positivity & Success

• मनः सप्तस्वरगुणितं कुरुते यस्य साधनम्।
तस्य संसारसागरस्य पारगः॥

One who tunes the mind to wisdom crosses the ocean of life.


• स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥

Even a little righteousness saves one from great fear. (Bhagavad Gita 2.40)


• यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन।
ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा॥

As fire burns wood to ashes, knowledge burns ignorance. (Bhagavad Gita 4.37)



• उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत॥
Arise, awake, and attain excellence.

• दृष्ट्वा मनसि चिन्तयेत्।

Observe and then think.

Shlokas on Good Conduct & Morality

• सत्यमेव जयते नानृतं।

Truth alone triumphs, not falsehood.

• अहिंसा परमो धर्मः॥

Non-violence is the highest virtue.

• अन्नं न निन्द्यात् तद्व्रतम्॥

Never insult food; it is a sacred vow.

• यद्भावं तद्भवति।

As you think, so you become.











       पाठ

         7



















यहाँ भगवद गीता, वेदों और अन्य ग्रंथों से लिए गए संस्कृत श्लोकों का एक क्रमवार संग्रह दिया गया है, जो सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक के दैनिक जीवन के विभिन्न चरणों को दृश्य (छलक) दिखलाता है ।

1. जागने पर (प्रातः स्मरणम)

(विष्णु पुराण से)
श्लोक:

"कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥"
अर्थ:

• हमारे हाथों के अग्रभाग में लक्ष्मी जी, मध्य में सरस्वती जी और मूल में भगवान गोविंद (विष्णु) स्थित हैं।

• सुबह उठते ही अपने हाथों का दर्शन करने से पूरे दिन शुभता बनी रहती है।

2. धरती पर पैर रखने से पहले (भूमि प्रार्थना)

(अथर्ववेद से)
श्लोक:


"समुद्र-वसने देवी, पर्वत-स्तन-मण्डिते।
विष्णु-पत्नी नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे॥"
अर्थ:

• हे माता पृथ्वी! आप समुद्र को वस्त्र के रूप में धारण करती हैं और पर्वत आपके स्तन हैं।

• आप भगवान विष्णु की पत्नी हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मेरे पैरों के स्पर्श को क्षमा करें।

3. स्नान (शुद्धि मंत्र)

(ऋग्वेद से)
श्लोक:
"आपो हि ष्ठा मयोभुवः, ता न ऊर्जे दधातन।
महि रनाय चक्षसे॥"
अर्थ:

• जल पवित्रता और शक्ति का स्रोत है। यह हमें ऊर्जा और शुद्धता प्रदान करता है।

4. प्रार्थना और ध्यान (ध्यान एवं जप)
(गायत्री मंत्र - ऋग्वेद 3.62.10)

श्लोक:
"ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं


भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्॥"

अर्थ:

• हम उस दिव्य प्रकाश (सूर्य) का ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धि को प्रकाशित करे।

(भगवद गीता 9.22 - ईश्वर में विश्वास हेतु)
श्लोक:

"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥"
अर्थ:

• जो अनन्य भाव से मेरी आराधना करते हैं, मैं उनके योग-क्षेम (आवश्यकताओं और सुरक्षा) का स्वयं ध्यान रखता हूँ।


5. भोजन से पहले (भोजन मंत्र)

(भगवद गीता 4.24)
श्लोक:

"ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविः, ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं, ब्रह्म-कर्म-समाधिना॥"


अर्थ:

• भोजन, अर्पण करने वाला, अग्नि और ग्रहण करने वाला सब ब्रह्म ही है। इसे इस भावना से ग्रहण करने से यह पवित्र हो जाता है।


6. अध्ययन एवं कार्य (विद्या मंत्र)
(भगवद गीता 2.47 - कर्म का महत्व)
श्लोक:

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥"
अर्थ:
• तुम्हें केवल कर्म करने का अधिकार है, फल पर नहीं। कर्मफल की इच्छा मत करो और निष्क्रियता की ओर मत बढ़ो।
• 
7. संध्या वंदन (शाम की प्रार्थना एवं कृतज्ञता)

(यजुर्वेद 40.1)
श्लोक:
"ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किं च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम्॥"

अर्थ:


• संपूर्ण ब्रह्मांड ईश्वर से व्याप्त है। जो कुछ भी मिला है, उसे त्याग की भावना से ग्रहण करो और किसी अन्य की संपत्ति के प्रति लालसा मत रखो।


8. सोने से पहले (शयन मंत्र)

(भगवद गीता 18.66 - आत्म समर्पण मंत्र)
श्लोक:

"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"

अर्थ:

• सब कुछ त्यागकर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा।

(रामायण से - शुभ निद्रा के लिए)
श्लोक:

"रामं स्कन्दं हनूमन्तं, वैनतेयं वृकोदरम्।
शयने यः स्मरेन्नित्यं, दुःस्वप्नं तस्य नश्यति॥"
अर्थ:

• जो व्यक्ति सोने से पहले राम, स्कंद (कार्तिकेय), हनुमान, गरुड़ और भीम का स्मरण करता है, उसे 


• कभी बुरे सपने नहीं आते और वह सुखपूर्वक सोता 
• है /



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