चार सहेलियाँ
शहर के एक साधारण से मोहल्ले में चार सहेलियाँ रहती थीं — आशा, पायल, नेहा और साक्षी। चारों अलग-अलग स्वभाव की थीं, लेकिन उनकी दोस्ती में एक अजीब-सी मजबूती थी, जो समय के साथ और गहरी होती चली गई।
आशा सबसे बड़ी थी। जिम्मेदार, समझदार और हर बात को गहराई से सोचने वाली। घर और दोस्तों के बीच संतुलन बनाकर चलना उसे अच्छे से आता था। पायल चंचल थी, हँसमुख और हर किसी को हँसाने वाली। उसके चेहरे की मुस्कान सबसे उदास इंसान को भी खुश कर देती थी। नेहा पढ़ाई में तेज थी और अपने लक्ष्य को लेकर बहुत गंभीर रहती थी। उसे पता था कि उसे ज़िंदगी में क्या बनना है। साक्षी सबसे शांत थी। वह कम बोलती थी, लेकिन जब बोलती, तो दिल से बोलती थी। उसकी आँखों में सपने थे, लेकिन डर भी उतना ही था।
चारों की मुलाकात कॉलेज के पहले दिन हुई थी। नया माहौल, नए लोग और दिल में हल्का-सा डर। उसी दिन पायल ने हँसते हुए कहा था, “लगता है हम चारों यहीं अटकने वाली हैं।” सब हँस पड़ीं और उसी हँसी के साथ उनकी दोस्ती शुरू हो गई।
हर शाम वे कॉलेज के पीछे वाले बगीचे में बैठतीं। वहीं ज़िंदगी की बातें होतीं, सपने बुने जाते, कभी आँसू बहते और कभी बेवजह की हँसी गूँज उठती। वही जगह उनकी दुनिया बन गई थी।
एक दिन नेहा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि वह आगे पढ़ाई के लिए बाहर जाना चाहती है। आशा ने बिना सोचे कहा कि उसे ज़रूर जाना चाहिए और कुछ बड़ा बनना चाहिए। पायल ने ताली बजाकर उसका हौसला बढ़ाया। लेकिन साक्षी उस दिन कुछ ज़्यादा ही खामोश थी।
पायल ने उसका हाथ पकड़कर पूछा कि क्या हुआ। साक्षी की आँखें भर आईं। उसने धीरे से बताया कि उसकी शादी की बात चल रही है और शायद उसकी पढ़ाई वहीं खत्म हो जाएगी। यह सुनकर सब चुप हो गईं। माहौल अचानक भारी हो गया।
आशा ने साक्षी के कंधे पर हाथ रखा और कहा कि वह अपने सपने मत छोड़े। पायल ने मज़ाक के अंदाज़ में कहा कि ज़रूरत पड़ी तो वे सब लड़ भी लेंगी। नेहा ने भरोसे से कहा कि साक्षी अकेली नहीं है। उस दिन साक्षी खुलकर रो पड़ी। पहली बार उसे लगा कि उसकी लड़ाई में वह अकेली नहीं है।
समय बीतता गया। ज़िंदगी अपनी रफ्तार से चलती रही। नेहा का सिलेक्शन हो गया और वह आगे पढ़ाई के लिए चली गई। पायल ने थिएटर जॉइन कर लिया। आशा ने नौकरी शुरू कर दी। साक्षी ने घर की ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ पढ़ाई जारी रखी, भले ही रास्ता आसान नहीं था।
फिर एक दिन पायल ने उदास होकर बताया कि उसके घरवाले थिएटर के खिलाफ हैं। सबने एक-दूसरे की तरफ देखा। नेहा ने फोन पर ही कहा कि पायल को हार नहीं माननी चाहिए। आशा ने समझदारी से बात करने का सुझाव दिया। साक्षी ने शांत आवाज़ में कहा कि जिस तरह सब उसके लिए खड़ी रहीं, अब वह भी पायल के साथ खड़ी रहेगी।
चारों ने मिलकर कोशिश की। बातें हुईं, आँसू भी बहे, लेकिन आखिरकार सच्चाई और मेहनत ने रास्ता बना लिया। पायल को आगे बढ़ने का मौका मिला।
सालों बाद, चारों उसी पुराने बगीचे में फिर मिलीं। नेहा एक सफल प्रोफेसर बन चुकी थी। पायल थिएटर की दुनिया में अपनी पहचान बना चुकी थी। आशा आत्मनिर्भर होकर अपनी ज़िंदगी संभाल रही थी। साक्षी ने शादी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी पूरी कर ली थी।
पायल ने हँसते हुए कहा कि यहीं बैठकर वे सपने देखा करती थीं। आशा ने कहा कि डर भी यहीं बाँटा था। नेहा ने मुस्कुराकर कहा कि उन्होंने कभी हार नहीं मानी। साक्षी की आँखें नम हो गईं। उसने कहा कि अगर ये तीनों साथ न होतीं, तो वह खुद को कहीं खो देती।
चारों ने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया। उन्हें समझ आ गया था कि दोस्ती सिर्फ साथ हँसने का नाम नहीं, बल्कि एक-दूसरे की ताकत बनने का नाम है। उस शाम चार सहेलियाँ फिर हँस रही थीं, पहले से ज़्यादा मज़बूत और पहले से ज़्यादा निडर।