सर्जा राजा – भाग 1
(बैलों का महान मेला – शुरुआत)
लेखक राज फुलवरे
अध्याय 1 – बैलों का सबसे बड़ा मेला
सुबह का सूरज अभी धीरे-धीरे आसमान में चढ़ रहा था।
एक हल्की-सी गुलाबी रोशनी खेतों पर फैल चुकी थी।
फसलों पर ओस की बूंदें मोती जैसी चमक रही थीं।
दूर-दूर से लोग अपने–अपने बैल लेकर एक विशाल खुले मैदान में इकट्ठे हुए थे।
यह वह दिन था जब गाँव में साल का सबसे बड़ा बैल बाजार भरता था—
जहाँ किसान अपनी आशाएँ लेकर आता,
जहाँ खरीदार अच्छे बैलों की तलाश करता,
और जहाँ हर बैल के दिल में एक डर और एक उम्मीद छुपी होती।
भीड़, शोर, पुकारें, अनाउंसमेंट,
बैलो का रंभाना,
बच्चों की हँसी,
और धूल का हल्का-सा गुबार—
पूरा वातावरण जीवंत था।
इसी विशाल बाजार के एक कोने में
दो बैल शांत खड़े थे—
सर्जा और राजा।
सर्जा का रंग चमकदार काला था, आँखें शांत और गहरी,
जबकि राजा का रंग गेहुँआ भूरा था, स्वभाव थोड़ा चंचल,
लेकिन दोनों की काया देखने लायक थी।
मगर दोनों की एक कमी थी —
वे अभी पूरी उम्र के नहीं थे।
कामकाज के हिसाब से “कम उम्र” मानकर
बहुत से खरीदार उन्हें नज़रअंदाज़ कर रहे थे।
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अध्याय 2 – सर्जा और राजा की चिंता
राजा बेचैन होकर इधर-उधर देख रहा था।
कुछ लोग आते, दात देखते, पैर टटोलते,
और फिर कहते—
खरीदार:
“अभी छोटे हैं… अभी से काम नहीं आएँगे।”
राजा ने धीरे से सर्जा के कान में कहा—
राजा (चिंतित):
“सर्जा… कहीं हमें कोई खरीदेगा ही नहीं?
सब हमें ऐसे देख रहे हैं जैसे हम बेकार हों…”
सर्जा शांत स्वर में बोला—
सर्जा (गंभीर):
“राजा… चिंता मत कर। सही मालिक की नज़र में उम्र नहीं, दिल की सच्चाई मायने रखती है।
जिसे हमारा मन समझ आएगा, वही हमें चुनेगा।”
राजा ने हाँ में सिर हिलाया,
लेकिन उसकी बेचैनी कम नहीं हुई।
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अध्याय 3 – हिम्मतराव का प्रवेश
भीड़ के उस शोर में अचानक धूल उड़ती दिखाई दी।
एक दृढ़, मजबूत कद-काठी वाला व्यक्ति मीठे स्वभाव के साथ मैदान में दाखिल हुआ।
उसकी आँखों में तेज़ भी था और प्रेम भी।
चेहरे पर हल्की दाढ़ी, बदन पर गमछा,
और चलने में एक आत्मविश्वास…
यह थे — हिम्मतराव।
संपूर्ण भीड़ में उनका व्यक्तित्व अलग ही चमक रहा था।
वे धीरे-धीरे कदम रखते हुए बैलों की कतार से गुज़रे,
कई बैल देखे, कई को टटोला,
मगर उनके चेहरे पर संतोष नहीं था।
और फिर…
उनकी नज़र सर्जा और राजा पर पड़ी।
वे दोनों की तरफ बढ़े।
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अध्याय 4 – पहली मुलाकात
हिम्मतराव दोनों बैलों के सामने आकर रुके।
पहले उन्होंने सर्जा के माथे पर हाथ फेरा,
फिर राजा की गर्दन पर।
दोनों बैल जैसे समझ गए—
“यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है।”
सर्जा ने हल्के से सिर झुकाया।
राजा ने पूँछ हिलाई।
हिम्मतराव मुस्कुराए—
हिम्मतराव (नरम आवाज में):
“तुम दोनों की आँखों में अपनापन दिख रहा है…
शरीर छोटा है, पर आत्मा बड़ी लगती है।”
पास खड़े एक व्यापारी तुरंत बोला—
व्यापारी:
“साहब, यह दोनों अच्छे हैं, पर छोटे हैं।
काम के लायक अभी नहीं।
अगर लेना हो तो सस्ते में दे दूँ।”
हिम्मतराव थोड़ा नाराज़ होकर बोले—
हिम्मतराव (दृढ़):
“बैल की कीमत उसकी उम्र से नहीं,
उसकी निस्वार्थता से तय होती है।
मुझे इन दोनों में कुछ अलग दिखाई दे रहा है।
मैं इन्हें ले जाऊँगा। जितना दाम कहो, दे दूँगा।”
राजा ने सर्जा को धीरे से कहा—
राजा (उत्साहित):
“सर्जा! लगता है हमें सही मालिक मिल गया!”
सर्जा ने शांत आवाज में उत्तर दिया—
सर्जा:
“हाँ राजा… इनकी आँखों में इंसानियत है।
हम इनके साथ अच्छा जीवन जियेंगे।”
और उसी क्षण
हिम्मतराव ने दोनों बैलों को खरीद लिया।
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अध्याय 5 – घर की ओर यात्रा
हिम्मतराव बैलों की रस्सी पकड़कर उन्हें अपने गाँव की ओर ले जाने लगे।
राजमार्ग के दोनों ओर हरे पेड़, सुनहरी धूप,
और दूर खेतों की महक थी।
रास्ते में हिम्मतराव धीरे-धीरे बोलते गए—
हिम्मतराव:
“मैं तुम्हें कोई बोझ नहीं समझूँगा।
तुम मेरे परिवार का हिस्सा बनोगे।
तुम्हारे खाने, पानी, आराम की पूरी चिंता मैं करूँगा।”
सर्जा ने मन में सोचा—
सर्जा (मन में):
“हमारे जीवन की दिशा आज बदल रही है…”
राजा ने भी मन-ही-मन खुश होकर कहा—
राजा (अंदर ही अंदर):
“काश, नया घर अच्छा हो…
काश, यह इंसान हमारी कद्र करे…”
हिम्मतराव उनके भाव जैसे समझ रहे थे।
वे फिर बोले—
हिम्मतराव:
“चिंता मत करो…
जहाँ मैं रहूँगा, वहाँ तुम पर कभी हाथ नहीं उठेगा।
तुम बस दिल से साथ देना।”
हवा चल रही थी,
आसमान गुलाबी होता जा रहा था,
और दोनों बैल नई उम्मीदों के साथ अपने नए घर की ओर बढ़ रहे थे।