कहते हैं न,कभी-कभी उम्र कम पड़ जाती है प्यार करने के लिए,और कभी-कभी पूरी उम्र भी कम लगती है किसी को चाहने के लिए।
किसी को सालों तक कोई नहीं मिलता,और किसी को एक ही लम्हे में कोई अपना सा लगने लगता है।शायद प्यार ऐसा ही होता है —बिना बताए, बिना इजाज़त,सीधे दिल में उतर जाता है।
मैं उन्हीं ख्यालों में खोई हुई सड़क पर चल रही थी,जब मेरी नज़र एक छोटे-से, नन्हे से बिल्ली के बच्चे पर पड़ी।वह बार-बार सड़क पार करने की कोशिश कर रहा था,जैसे उसे इस दुनिया की तेज़ रफ्तार से कोई डर ही न हो।पर मुझे डर लग रहा था।गाड़ियाँ, हॉर्न, शोर…सब कुछ बहुत तेज़ था।मैं उसे उठाना चाहती थी,पर हिम्मत नहीं हो पा रही थी।
फिर खुद से फुसफुसाई —“कुछ नहीं पायल… आज डर को जीत ले।”और मैं आगे बढ़ गई।जैसे ही मैंने उस बिल्ली के बच्चे को बाहों में लिया,वक़्त जैसे थम सा गया।एक कार तेज़ी से मेरी तरफ़ बढ़ रही थी।मेरे कदम जड़ हो गए।
दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा थाकि लगा सबको सुनाई दे रहा होगा।मैंने खुद को समेट लिया,और उस नन्ही जान को और कसकर सीने से लगा लिया।आँखें बंद करके बस यही कहा —“भगवान… आज बचा लो।”और तभी…एक तेज़ आवाज़ के साथ कार बिल्कुल मेरे सामने आकर रुक गई।मैंने आँखें खोलीं।साँस जैसे लौटकर आई हो।कार से एक लड़का उतरा।उसके चेहरे पर गुस्सा था,पर आँखों में… चिंता।
“Are you mad?तुम्हें ज़रा भी अंदाज़ा है तुम क्या कर रही थीं?”उसकी आवाज़ में डांट थी,पर उसमें डर भी छुपा था —शायद मेरे लिए।मैं कुछ कह पाती…पर शब्द जैसे खो गए।क्योंकि वह…बहुत ख़ास था।गहरी काली भौंहें,सलीके से पहना हुआ सूट,like dream boy—जैसे किसी कहानी से निकलकरसीधे मेरे सामने खड़ा हो गया हो।उसकी नज़र मुझ पर पड़ी…और बस वहीं…दिल ने पहली बारबिना पूछे किसी को अपना मान लिया।
मेरा दिल तेज़-तेज़ धड़कने लगा।मैं सुन तो रही थी,पर समझ कुछ भी नहीं आ रहा था।वह मेरे बहुत क़रीब आ गया था।इतना क़रीब किमैं उसकी साँसों की गर्माहट महसूस कर सकती थी।तभी मेरी बाहों में बैठी बिल्ली नेहल्की-सी “म्याऊँ” की।
और मैं हड़बड़ा गई।वह मुस्कुराया…बस एक पल के लिए।पर उस पल नेमेरे दिल में हमेशा के लिए जगह बना ली।“मैं इतनी देर से बोल रहा हूँ,”उसने नरमी से कहा
,“तुम कहीं खो गई थीं क्या?”फिर थोड़ा रुककर बोला —“ध्यान रखा करो…इस दुनिया में सब कुछ इतना मेहरबान नहीं होता।”और वह चला गया।पर…मेरा दिल वहीं खड़ा रह गया। मैं उन लड़कियों में से बिल्कुल नहीं हूँजो चुपचाप बैठकर सब कुछ सह लेती हैं।जो बिना बोले हर बात मान लेती हैं।
पर उस दिन…पहली बार ऐसा हुआकि मैं कुछ कह ही नहीं पाई।शायद वजह उसकी आँखें थीं।जब मेरी नज़र उसकी आँखों से टकराई,तो जैसे मैं वहीं अटक गई।न आवाज़ निकली,न कोई शिकायत,न कोई जवाब।मैंने बस धीरे सेउस नन्ही बिल्ली के बच्चे को सहलायाऔर उसे अपनी बाहों में भर लिया।दिल में एक अजीब-सा एहसास था —जैसे किसी बहानेकिस्मत ने मुझे उससे मिलवा दिया हो।
पर मैं जानती थी…ऐसी मुलाक़ातेंज़िंदगी में दोबारा नहीं होतीं।उसी दिन पापा ने कहा —“आज लड़के देखने वाले आ रहे हैं।
”मेरे पास कोई विकल्प नहीं था।मैंने समझाने की कोशिश की,बहुत समझाया…पर कोई नहीं माना।क्योंकि मैं मजबूर थी।दिल कह रहा था —अगर मुझे उससे एक बार और मिलना हो,तो चाहे वह मुझे चाहे या न चाहे,मैं उसे अपना मान चुकी हूँ।
वह एक हवा का झोंका बनाकर मेरी जिंदगी में आया ,जो मेरे दिल को छूकर चला गया था।
मैं बिल्ली के बच्चे को घर ले आई।थोड़ी ही देर मेंलड़के वाले आ चुके थे।मेरा मन नहीं था उन्हें देखने का।बस यही लग रहा थाकि यहाँ से कहीं दूर चली जाऊँ।पर माँ मुझे तैयार होने के लिएअंदर ले गईं।मैंने बिल्ली के बच्चे को वहीं छोड़ दिया।
कुछ देर बादमाँ ने चाय, बिस्किट और ट्रेमेरे हाथ में थमाईऔर कहा —“ले जाओ…जो तुम्हें पसंद करेंगे।”मन बिल्कुल नहीं था।पर फिर भी…मैं चाय लेकर बाहर गई।और जैसे ही मैंने ट्रे आगे बढ़ाई…मेरी नज़रउस पर टिक गई।वही था।
क्या सच में मेरी किस्मत इतनी मेहरबान थी?या मैं कोई सपना देख रही थी?हर जगह उसका ही चेहरा,उसकी ही आँखें,उसकी ही मौजूदगी।मैं चाहकर भीनज़र हटा नहीं पाई।
तभी उसकी बहन हँसते हुए बोली —“भाभी, I knowमेरे भाई बहुत हैंडसम हैं,पर इसका मतलब ये नहींकि आप उन्हें नज़र ही लगा दें।”सब हँस पड़े।और मैं…हक़ीक़त में लौट आई।नहीं…ये सपना नहीं था।ये सच था।वह वहीं था।
मैं जैसे शर्मा गई और हंसते ही बाहर आ गई और सुनाने लगी क्या फिर उसका फैसला क्या होगा ।और उसने हां कह दिया।
मैं हंसते हाल की ओर भागी और फिर , मैंने बिल्ली के बच्चे को उठायाऔर उसके साथ खेलने लगी,जैसे मुझे कोई अनमोल तोहफ़ा मिल गया हो —उसे बचाने काऔर उसी के ज़रिएउसे पाने का।
मैंने उसे गले लगायाऔर दिल ही दिल में कहा —“थैंक यू…”आख़िरकार…मुझे मेरा ड्रीम बॉय मिल गया था। 💞