The mysterious journey of Tarak Mehta in Hindi Detective stories by Ravi Bhanushali books and stories PDF | तारक मेहता की रहस्यमई सफर

Featured Books
Categories
Share

तारक मेहता की रहस्यमई सफर

शीर्षक: तारक मेहता का रहस्यमय सफर


गोकुलधाम सोसाइटी में उस सुबह कुछ अलग ही बेचैनी थी। आसमान में घने बादल छाए थे, हवा में अजीब सी ठंडक थी और सोसाइटी के पुराने पीपल के पेड़ से रह-रह कर पत्ते झर रहे थे। आम दिनों में जहाँ बच्चों की किलकारियाँ और महिलाओं की बातचीत गूंजती रहती थी, वहाँ आज एक अनजाना सन्नाटा पसरा हुआ था।


जेठालाल अपनी बालकनी में खड़े होकर मोबाइल फोन को बार-बार ऊपर उठा रहे थे।

“अरे बाप रे बाप, नेटवर्क ही नहीं है! आज तो दुकान भी बंद रखनी पड़ेगी क्या?”

उसी समय बगल की बालकनी से भिड़े खिड़की खोलते हैं।

“जेठालाल, क्या आपको भी अजीब लग रहा है? सुबह से मन घबराया हुआ है।”


नीचे आंगन में टप्पू सेना इकट्ठा थी। टप्पू के हाथ में एक पुरानी सी डायरी थी, जो उसे क्लब हाउस की सफाई के दौरान मिली थी।

“दोस्तों, ये देखो! इस डायरी में गोकुलधाम के नीचे किसी सुरंग का ज़िक्र है,” टप्पू उत्साहित होकर बोला।


सोनू ने आँखें चौड़ी करते हुए पूछा,

“सुरंग? यहाँ?”

गोगी बोला,

“मतलब कोई खजाना-वजाना?”

गोली ने डरते हुए कहा,

“अरे नहीं, हो सकता है भूत-वूत हो।”


इसी बीच तारक मेहता नीचे आते हैं। उनके चेहरे पर हमेशा की तरह शांति थी, लेकिन आँखों में जिज्ञासा साफ झलक रही थी।

“क्या हो रहा है बच्चों?”

टप्पू ने डायरी उन्हें थमा दी।


तारक ने ध्यान से पन्ने पलटे। उसमें पुराने समय की लिखावट थी, कुछ जगह स्याही फैल चुकी थी।

“इसमें लिखा है कि आज़ादी से पहले यहाँ एक व्यापारी रहा करता था, जिसने अपने रहस्यों को छुपाने के लिए ज़मीन के नीचे रास्ता बनवाया था।”


उधर सोसाइटी के कोने से चंपकलाल आते हैं।

“क्या चर्चा हो रही है?”

जब उन्हें सुरंग की बात पता चलती है तो वे गंभीर हो जाते हैं।

“बेटा, पुरानी चीज़ों से छेड़छाड़ ठीक नहीं होती।”


लेकिन जिज्ञासा सब पर भारी थी। तभी अंजलि भाभी, बबीता जी, माधवी और रोशन भाभी भी आ जाती हैं।

बबीता जी बोलीं,

“अगर सच में कुछ रहस्य है तो हमें पता तो होना ही चाहिए।”


अचानक बिजली वापस आती है, लेकिन उसी पल क्लब हाउस के नीचे से तेज़ आवाज़ आती है, जैसे ज़मीन हिल गई हो। सभी डर जाते हैं।


अब्दुल दौड़ते हुए आता है।

“सुनीये क्लब हाउस के पीछे ज़मीन में दरार पड़ गई है!”


सभी लोग वहाँ पहुँचते हैं। सच में ज़मीन के एक हिस्से में छोटा सा गड्ढा बन गया था। उसमें से ठंडी हवा बाहर आ रही थी।

जेठालाल फुसफुसाते हैं,

“हे भगवान, ये तो सुरंग का मुंह लग रहा है।”


तारक मेहता स्थिति को संभालते हैं।

“घबराइए मत। पहले सोच-समझ कर फैसला लेते हैं।”


लेकिन तभी टप्पू सेना आगे बढ़ जाती है।

“अंकल, हम अंदर झांक कर देखते हैं।”

चंपकलाल डाँटते हैं,

“अरे पागल हो गए हो क्या?”


फिर भी सबकी सहमति से तय होता है कि सभी बड़े लोग साथ में जाएंगे। सोसाइटी की टॉर्च, रस्सी और मोबाइल लेकर एक छोटा सा दल तैयार होता है।


जैसे ही वे नीचे उतरते हैं, एक पुरानी ईंटों से बनी सुरंग दिखती है। दीवारों पर अजीब से निशान बने थे। हवा में सीलन और रहस्य की गंध थी।


रोशन सिंह डरते हुए कहते हैं,

“ये जगह ठीक नहीं लग रही।”

तारक मुस्कुराते हैं,

“रहस्य हमेशा डराता है, लेकिन सच सामने आना ज़रूरी है।”


सुरंग आगे जाकर एक बड़े कमरे में खुलती है। बीच में लकड़ी का पुराना संदूक रखा था।

गोगी चिल्लाता है,

“खजाना!”

लेकिन चंपकलाल उसे रोकते हैं।


तारक धीरे से संदूक खोलते हैं। अंदर सोने-चाँदी के सिक्के नहीं, बल्कि कागज़ों का बंडल होता है। पुराने दस्तावेज़, नक्शे और कुछ चिट्ठियाँ।


तारक पढ़ते हैं।

“ये कागज़ उस व्यापारी के हैं। उसने यहाँ छुपकर आज़ादी के आंदोलनकारियों की मदद की थी। अंग्रेजों से बचने के लिए उसने ये सुरंग बनाई थी।”


सभी के चेहरे पर सम्मान और आश्चर्य का भाव आता है।

माधवी कहती हैं,

“तो ये जगह देशभक्ति की गवाह है।”


तभी अचानक पीछे से आवाज़ आती है। सुरंग का एक हिस्सा धँसने लगता है।

“जल्दी बाहर चलो!” तारक चिल्लाते हैं।


सभी भागकर बाहर निकलते हैं। जैसे ही आखिरी आदमी बाहर आता है, सुरंग का मुंह बंद हो जाता है।


सभी हांफते हुए एक-दूसरे को देखते हैं।

जेठालाल कहते हैं,

“बाप रे, आज तो बाल-बाल बचे।”


कुछ देर बाद पुलिस और नगर निगम के लोग आते हैं। दस्तावेज़ सुरक्षित निकाल लिए जाते हैं। अधिकारी बताते हैं कि इस जगह को ऐतिहासिक स्थल घोषित किया जाएगा।वह कागज आजादी में लड़ने वाले सैनीक के थे ।  कहानी यहां खत्म नहीं होती । उसमें लीखा था हमने अंग्रेजों से बचकर अपना खजाना  हरीपर में छुपाया हे । बाद में पप्पु गुगल पे सर्च करता हे तो पता चलता हे हरीपर और कोई जगह नहीं पर जेठालाल की दुकान का एरिया हे 1947 में उसै हरीपर कहा जाता था। अंत में वह खजाना जेठालाल की दुकान के नीचे से मीलता हे । और वह खजाना सरकार को दे दें ये हे। और वह खजाना हमारे राष्ट्र की धरोवर हो जाता हे । 


शाम को गोकुलधाम में सभा होती है।

तारक मेहता कहते हैं,

“आज हमने सीखा कि हर रहस्य डरावना नहीं होता। कुछ रहस्य हमें अपने अतीत से जोड़ते हैं।”


चंपकलाल गर्व से कहते हैं,

“हमारी सोसाइटी सिर्फ रहने की जगह नहीं, इतिहास का हिस्सा है।”


टप्पू सेना खुश होकर तालियाँ बजाती है।

गली मुस्कुराकर कहती है,

“अच्छा है, कोई भूत नहीं निकला।”


रात होते-होते आसमान साफ हो जाता है। चाँदनी गोकुलधाम पर बिखर जाती है। सब अपने-अपने घर लौटते हैं, लेकिन सबके दिल में एक नई कहानी बस चुकी थी।


तारक मेहता बालकनी में खड़े होकर सोचते हैं।

“सफर सिर्फ जगह बदलने से नहीं होता, कभी-कभी सच की खोज भी एक रहस्यमय सफर बन जाती है।”


और गोकुलधाम फिर से अपनी हँसी, प्यार और एकता के साथ शांत हो जाता है — मगर अब उसके नीचे छुपा इतिहास हमेशा यादों में जीवित रहेगा।