jahan se khud ko paya -4 last part in Hindi Motivational Stories by vikram kori books and stories PDF | जहाँ से खुद को पाया - 4 (लास्ट पार्ट)

Featured Books
Categories
Share

जहाँ से खुद को पाया - 4 (लास्ट पार्ट)

Part - 4 लास्ट पार्ट 



सुबह की हवा में हल्की ठंडक थी, लेकिन सयुग के भीतर अजीब सी तपिश थी। 

‎रात भर उसने करवटें बदली थीं। आँखें बंद करता तो आयशा का चेहरा सामने आ जाता, और खुलतीं तो वही सवाल—क्या वह सच में उस दुनिया के सामने खड़ा हो पाएगा, जो अब तक उसे छोटा समझती आई है?

‎उसने खुद से एक बात साफ़ कर ली थी। 

‎अब भागने का रास्ता नहीं था। न गाँव से, न दिल्ली से, न हालात से। इस बार उसे खड़ा रहना था।

‎कैफे का नया आउटलेट अब सिर्फ़ एक दुकान नहीं था, वह सयुग की पहचान बन चुका था। 

‎उसने हर चीज़ को नए नज़रिये से देखना शुरू किया। काम का विस्तार किया, ऑनलाइन डिलीवरी शुरू की, कुछ नए कॉन्सेप्ट जोड़े। 

‎दिन-रात मेहनत रंग लाने लगी। मुनाफ़ा बढ़ा, भरोसा और भी गहरा हुआ। कुछ ही महीनों में मालिक ने उसे आधिकारिक तौर पर पार्टनर बना लिया।

‎जब उसने काग़ज़ों पर साइन किए, तो हाथ हल्का काँप रहा था। 

‎उसे याद आया—वही लड़का जो कभी स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर भूखा सोया था, आज एक बिज़नेस का हिस्सेदार बन रहा था। 

‎लेकिन उसके चेहरे पर खुशी से ज़्यादा ठहराव था। क्योंकि असली जंग अभी बाकी थी।

‎उसने आयशा के पिता से मिलने का समय माँगा। इस बार कैफे में नहीं, सीधे उनके घर। 

‎बड़े से बंगले के बाहर खड़ा होकर उसने गहरी साँस ली। दरवाज़ा खुला तो वही सख़्त चेहरा सामने था, लेकिन आज उनकी आँखों में सवालों के साथ उत्सुकता भी थी।

‎बैठक कमरे में एक अजीब सी खामोशी थी। 

‎आयशा वहीं थी, थोड़ी घबराई हुई, लेकिन आँखों में भरोसा। 

‎सयुग ने बात शुरू की। उसने ऊँची आवाज़ में कुछ नहीं कहा, कोई दावा नहीं किया। बस अपनी ज़िंदगी रख दी उनके सामने—गाँव, गलती, दिल्ली, संघर्ष, कामयाबी। उसने साफ़ कहा कि वह परफेक्ट नहीं है, लेकिन ईमानदार है। 

‎उसने यह भी कहा कि वह आयशा को कोई सपनों का महल नहीं, बल्कि एक सुरक्षित और सम्मान भरी ज़िंदगी देना चाहता है।

‎आयशा के पिता देर तक चुप रहे। फिर उन्होंने पूछा, “अगर कल को मुश्किल आई, तो क्या तुम मेरी बेटी के साथ खड़े रहोगे?”

‎सयुग ने बिना रुके जवाब दिया, “मैं मुश्किलों से भागकर यहाँ तक नहीं आया हूँ।”

‎वह पहली बार था जब कमरे में किसी ने कुछ नहीं कहा। कुछ पल बाद आयशा के पिता उठे, खिड़की के पास गए। बाहर का आसमान देखते हुए बोले, “इज़्ज़त पैसों से नहीं, निभाने से बनती है।”

‎उन्होंने पीछे मुड़कर आयशा की तरफ़ देखा और फिर सयुग की तरफ़।

‎ “अगर तुम दोनों एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ोगे, तो मुझे भी ऐतराज़ नहीं।”

‎आयशा की आँखों से आँसू बह निकले। सयुग ने पहली बार राहत की साँस ली।

‎शादी सादगी से तय हुई। कोई दिखावा नहीं, कोई शोर नहीं। जब शादी के दिन आयशा ने लाल जोड़ा पहना और सयुग के सामने आई, तो उसे लगा जैसे उसकी सारी थकान उतर गई हो।

‎ वह सिर्फ़ उसकी पत्नी नहीं थी, वह उसके हर संघर्ष की साथी थी।

‎शादी के बाद सबसे मुश्किल फ़ैसला था—गाँव लौटना। यह वापसी पहले जैसी नहीं थी। 

‎इस बार उसके साथ आयशा थी, उसका आत्मविश्वास था और उसकी पहचान भी। 

‎ट्रेन से उतरते वक़्त उसने देखा, वही स्टेशन, वही रास्ते। लेकिन उसके कदम अब डगमगा नहीं रहे थे।

‎घर के दरवाज़े पर माँ खड़ी थी। उसने आयशा को देखते ही गले लगा लिया।

‎ पिता थोड़ी दूरी पर खड़े थे। सयुग ने आगे बढ़कर उनके पैर छुए। 

‎पिता ने हाथ उसके सिर पर रखा। उस एक स्पर्श में बरसों की दूरी मिट गई।

‎गाँव में धीरे-धीरे बातें फैलने लगीं। लोग मिलने आने लगे। वही लोग, जो कभी ताने देते थे, अब उसकी मिसाल देने लगे।

‎ पंचायत के वही बुज़ुर्ग अब उसकी तारीफ़ कर रहे थे। सयुग ने किसी से कुछ नहीं कहा। उसने बस अपने काम और व्यवहार से जवाब दिया।

‎एक शाम वह उसी नदी के किनारे खड़ा था, जहाँ कभी उसकी ज़िंदगी ने गलत मोड़ लिया था।

‎ पानी अब भी वैसा ही बह रहा था। आयशा उसके पास आकर खड़ी हो गई। दोनों ने चुपचाप बहते पानी को देखा।

‎“अगर वो दिन न होता,” आयशा ने धीरे से कहा, “तो शायद आज ये सब भी न होता।”

‎सयुग मुस्कुराया। “शायद कुछ गलतियाँ रास्ता दिखाने आती हैं।”

‎उस दिन गाँव वालों ने उसे सिर्फ़ एक कामयाब आदमी की तरह नहीं, बल्कि एक बदले हुए इंसान की तरह देखा। उसके माता-पिता की आँखों में गर्व था। वह इज़्ज़त, जो कभी शर्म में दब गई थी, आज उससे कई गुना ज़्यादा लौट आई थी।

‎रात को जब वह अपने पुराने कमरे में लेटा, तो उसे नींद जल्दी आ गई। सपनों में न स्टेशन था, न डर। बस एक सुकून था—कि उसने खुद को नहीं छोड़ा।

‎सयुग की कहानी वहीं खत्म नहीं हुई, लेकिन उस दिन उसने एक बात समझ ली थी। इंसान गिरता है, टूटता है, भटकता है—लेकिन अगर वह रुकता नहीं, तो एक दिन उसकी पहचान खुद उसके नाम से बड़ी हो जाती है।

‎और यही उसकी सबसे बड़ी जीत थी।


       Wirter:- ............... vikram kori.


अगर स्टोरी आपको पसंद आई है तो अगली स्टोरी के लिए हमें follow जरूर करे ।