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#Alone अकेले की कसक दर्द न बन जाए, सुकून को तलाश उसमें ठहर कर। वक्त ने दिया है मौका तुम्हें, खुद को तराशकर बढ़ जीवन पथ पर। * अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद उत्तर प्रदेश
#Alone अकेला होना उस अकेलेपन से कहीं अच्छा, गर भीड़ में भी अकेला ही महसूस हो। सुख के साथी तो होते सभी हैं यहाँ, दुःख-दर्द में अकेले गर रह जाते जो। अकेले रह हम खुद से परिचय कर पाते, वर्ना आपाधापी में स्वयं के अस्तित्व को तलाशते। बहुत कुछ पाने की हसरत लिए, वर्तमान को खुलकर नहीं जी पाते। * अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
हर व्यक्ति के अंतर्मन में चलता है नित्य अंतर्द्वन्द्व, स्वयं से नित जूझता है उसका निर्मल-कोमल मन। अस्मिता को लेकर चल रहा, नारी का नित संघर्ष आत्मसम्मान की रक्षा के खातिर कर रही द्वंद्व। * अर्चना सिंह जया -Archana Singh
प्रेम का रंग जन-मन को भाए, धरा-गगन को भी फागुन मास सुहाए। कान्हा अपने रंग में रंग दे मोहे, लाल-पीला सब रंग फीका पड़ जाए। --अर्चना सिंह जया
मुझ में अपार प्रेमभाव व भक्ति भर दे माँ! मन का तिमिर दूर कर, नव प्रभात भर दे। कर सकूँ परोपकार सत्कर्म-कर्तव्य हे माँ! ईर्ष्या, द्वेष,लालच,मोह पाश से मुक्त कर दे। * अर्चना सिंह जया
दहेज कोई प्रथा नहीं, बेटी का शोषण करते। दस्तूर की आड़ में कुरीतियों को जन्म देते। सीता सबको चाहिए, राम बनने की चाहत नहीं तरीके बदल गए, धन के लोभी अब भी हैं कईं। -Archana Singh
त्याग कर ईर्ष्या,द्वेष,घृणा,लोभ-लालच,मन में प्रीत का कर अनुष्ठान। करुणा,दया,ममता-प्रेम, परोपकार का, कर स्वयं के हिय में प्रतिष्ठान। -Archana Singh
सुप्रभात 🙏🌻 ✍️✍️✍️✍️ तमाशागर खुद के आँसू छुपाकर हंसता, दिखाकर तमाशा हर दिल पुलकित करता। पर तमाशाई हर्षित हो घर का रुख करता, मन की पीड़ा उसकी कहाँ कोई समझता। अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद
" राम में रम जाओ" गाओ री मंगल गीत सखि, आया राममहोत्सव, ढ़ोल-मंजीरे लाओ री सखि। जय राम,श्री राम में रम जाओ री सखि। सरयू तट पर हुई भीड़ भारी,धन्य हुई है अयोध्या सारी, ईंट-ईंट राम के हैं आभारी, झूम रहे बच्चे, बूढ़े, नर-नारी, माटी-माटी से आवाज आई, बस 'राम नाम है सुखदाई।' श्री राम का स्वागत करने उमड़ पड़ी है प्यारी। भूमि पूजन,पुष्प,तिलक,अब प्राण प्रतिष्ठा की घड़ी है आई। राम नाम ही है सत्य साईं, रोम-रोम में राम समायी, दो अक्षर में जग रमायी,परम आनंद इस नाम में भाई। भक्ति रस में डूबी नगरी सारी,राम लला की छवि लागे प्यारी। धरती अंबर में है गुंजायमान,अंर्तमन में रम गए सियाराम। राम आदि-अनंत है साईं, हनुमान सी भक्ति हिय है जागी। प्रभु को कर जीवन समर्पित, प्रसन्न चित होंगे अवध बिहारी। गाओ री मंगल गीत सखि, आया राम महोत्सव, ढ़ोल-मंजीरे लाओ री सखि। जय राम,श्री राम में रम जाओ री सखि। * अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
छलकते नयन तेरी अंतर्मन की पीड़ा कह जाते, तू लाख छुपा अपनी मुस्कान कायम रख, गालों पर ठहरे आँसू अनकही दास्ताँ कह जाते। दामन में उल्लास-उमंग भर ले तू, पलकों पर बिखरे सपने समेटकर, फिर भी भींगी पलकें अपनी दर्द बयाँ कर जाते। टपकते नमकीन आँसू जख्म को गहरे कर, मोहब्बत चाहत के रंग को धुंधले कर जाते। लाख बचाना चाहा दामन अपना , पर अश्क प्रेम के ठहर नहीं पाते। मन के पीर होते गए गहरे, वक्त भी कितना सितमगर निकला, हिय में दर्द-नम आँखें दे, मुस्कान चुराने लग गया। सुख-दुःख के इन लम्हों के बीच, आखिरकार उम्र का चांद ढल ही गया। * अर्चना सिंह जया,गाजियाबाद उत्तर प्रदेश
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