Quotes by Arun in Bitesapp read free

Arun

Arun

@arunjhorar


रक्षाबंधन पर उस भाई की सोचो जिसको समाज की नजर का पता है ।
वो चाह कर भी रक्षा नहीं कर सकता ।
वो भाई भी कहीं ना कहीं राक्षस बना हुआ है ,
किसी के भाई के बहन के लिए ।

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"जीवन का रण" — अरुण

सुबह उठो, और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अनगिनत दुश्मनों से लड़ो।
ये कोई साधारण दिन नहीं — ये एक युद्ध है।

सोचो…
तुम उस युद्ध में हो जहाँ तुम्हारी सेना छोटी है,
दुश्मन ताक़तवर, निर्दयी और निर्दय।
हारने पर सिर्फ़ तुम्हारा राज्य नहीं —
तुम्हारी उम्मीद, तुम्हारी आने वाली पीढ़ियाँ, और तुम्हारी प्रतिष्ठा भी दाँव पर है।

युद्ध तुम हार रहे हो।
चारों ओर तुम्हारे साथी सैनिक कट रहे हैं।
गला प्यास से सूखा है, और तुम अपना ही खून पीकर प्यास बुझा रहे हो।

अचानक, तुम्हारी आँखों के सामने —
तुम्हारे सेनापति की आंत निकालकर,
उसे तुम्हारे राज्य के ध्वज के भाले पर टांग दिया जाता है।
तुम चाहने लगते हो कि कोई तीर हवा से आए
और तुम्हारी छाती चीर दे।

लेकिन फिर तुम सोचते हो —
जब मरना ही है, तो क्यों न तलवार हवा में लहराई जाए!
क्यों न अपने शरीर को दुश्मन के भाले और तलवार से छलनी कर दिया जाए,
ताकि दुश्मन के दिल में डर पैदा हो कि "ये अब भी जीत सकते हैं!"

तुम चिल्लाते हो —
"आओ! हम दिखाते हैं कि आंत शरीर से कैसे निकाली जाती है!
हाथ में जो मिले, उठा लो!
गर्दन कटे तो कटवा लो,
पर उनकी आँखों में अपनी खोम का डर भर दो!"

इतिहास में ऐसी दास्तान लिखो
कि आने वाली पीढ़ियाँ पढ़कर काँप जाएँ —
"हाँ, ऐसे योद्धा भी होते थे।"

ये युद्ध तुम जीतोगे।
क्योंकि तुम हर दिन ऐसा युद्ध जीतते हो।
तुम अपने घर के, अपने क्षेत्र के, अपने जीवन के महान योद्धा हो।

मुसीबत?
ये तो कुछ भी नहीं है।
बस सोच बदलने की ज़रूरत है।
अगर मरना है तो जीवन-रूपी तलवार छोड़कर
आ रहे हज़ारों तीरों का खुले हाथ स्वागत करो।
कोई न कोई मौत के गले लगा ही लेगा।

और अगर जीना है —
तो तलवार कसकर पकड़ो,
ढाल को बाँध लो,
और टूट पड़ो अपनी मुसीबतों पर।

ताकि आने वाली पीढ़ियाँ कहें —
"कोई था जिसने उस दलदल से बाहर निकाला।"

हम सब राजा हैं।
हमें हारना नहीं है।
हम रण जीतने आए हैं —
अंतिम सांस तक, अंतिम खून की बूंद तक,
अंतिम दुश्मन की चीख तक।

और मैं भगवान से यही कहूँगा —
"मैं तलवार नहीं छोड़ूँगा।
मुझे यश नहीं चाहिए, प्रशंसा नहीं चाहिए।
मुझे बस विजय चाहिए।
चाहे राह दिखाओ जैसे अर्जुन को,
या तीरों से छलनी करो जैसे भीष्म पितामह को —
अंत में जीत मेरी ही होगी।"


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अगर आपको आपकी कलम आपको लिखने की हिमत ना दे ,
तो समझ ले कलम ने आपकी और अपने समाज की हथकड़ियां पहन रखी है ।
जो लंबे समय के बाद एक कैदी को वो चूड़ियों का सुख देने लगती है ,
जैसे बिन ब्याह महबूब को देती है ।
आप और मै बागी है ,
कलम ही वो तलवार है ,
जिससे हम इस हथकड़ी को काट सकते है ।

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मुझे तो उस व्यक्ति की खोज है , जिसने महिला के आजादी की बात की ।
क्या इतनी आजादी सही है , जो आज समाज ने अपनी भूख मिटाने के लिए दे रखी है ।
या वो जंजीरें सही थी , जो महिला को महज अपने पति तक सिमीत रखा था ।
आज जो समाज जल रहा है , महिला की आजादी से ,
कितने घर उजड़ गए होंगे , इस आजादी से ।
हम ने एक को अधिकार देने के लिए समाज से अपना अधिकार कहीं खो दिया है ।
यहां सबको अपने मन का करने के आज मौलिक अधिकार का नाम दिया गया है ।
समाज आज उस मौलिक अधिकार के नीचे कहीं दब सा गया है ।

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चंद मिनटों के मेरे हजार विचार है ,
सब के सब व्यर्थ तो नहीं ।
कुछ तो है जो शब्द मुझे से चाहते है ,
की मै एक ऐसा वाक्य बनाऊ ,
जो मुझे कुछ और लिखने की अनुमति ना दे ।
मेरे देह संस्कार के बाद , मुझ से उठता अधजला शरीर से धुआं ,
ये किसी के अंदर तो जाए गा ही ।
वो यूंही लिखता लिखता देह त्याग देगा , एक अंतिम वाक्य की खोज में ।

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कितनी किताबों में कितनी कहानियां दफन है ,
और कितनी ही कहानियां अभी जन्म लेने को है ।
सबका शीर्ष एक जैसा ही है , बुराई पर अच्छाई की जीत ,
पर कभी सोचा है ,
बुराई ने भी तो सम्राज्य खड़ा किया , कितनी अच्छाइयों को मिट्टी में दफन कर के ।
उनकी कहानियां कोई नहीं लिखता , क्यों कि यहां सब अच्छाई के पात्र बने हुए है , हर कोई यहां दिखावे का संदेश देने में लगे हुए है ।

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हम चिंता किस बात की करते है ,
कभी सोचा है ।
हम आने वाले भविष्य की चिंता करते है , पर हमें चिंता तो ये होनी चाहिए कि क्या हम उस भविष्य को देखने के लिए उपस्थित होंगे ।
कुछ भी तय नहीं हमारे लिए ,
क्योंकि
पहले से तय है यहां सब के लिए ।

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मैं सच्चा धर्मी उसी को मानता हूं जो धर्म के लिए अपने प्राण त्याग दिए है ।
यूंही मंदिरों में भटकना , महज दिखावा है ।
अपने दुखो के लिए हम ऐसे करते है ।
आप और मै कभी मंदिर की सुरक्षा या धर्म के लिए प्राण नहीं त्यागे ग़े।
ये सत्य है , आपको भी मालूम है ।

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मैं किसी अभिमानी व्यक्ति को गलत नहीं मानता ,
वो अपनी जगह सत्य है ।
भ्रम इस दुनिया में होना तय है , ये श्रृष्टि के नियम है ।
आपको ज्यादा बलशाली बना कर , आपको अभिमानी का चोला पहना दिया जाए गा ।
फिर किसी साधारण पुरुष को हाथों उसकी मृत्यु करवा देना ,
पर वो साधारण पुरुष भी एक अभिमानी बन जाता है ,
हम सब एक माला के मोती है , सबकी बारी आती है , माला जपने के बहाने से हमें आगे कर दिया जाता है ।

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