Quotes by Dr Darshita Babubhai Shah in Bitesapp read free

Dr Darshita Babubhai Shah

Dr Darshita Babubhai Shah Matrubharti Verified

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मैं और मेरे अह्सास

रूप तुम्हारा
मनमोहक रूप तुम्हारा मन को बहका रहा l
निगाहों से बहकता पैमाना छलका रहा ll

बेखुदी में सनम इतने नज़दीक आ गये की l
साँसों के टकराने से साँसों को महका रहा ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास
मुलाकात
जल्द ही मुलाकात के आसार नजर आते हैं l
इस लिए खुशमिजाज सरकार नजर आते हैं ll

साहिल पर बेसब्री से इंतिज़ार करता है कोई l
कश्तियां पर बैठे हुए बेकरार नजर आते हैं ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

अंतरंग संबंध
प्राकृति और हमारे बीच अंतरंग संबंध बहुत गहरा हैं l
क़ायनात में हर जगह इन्द्रधनुष का रंग
लहरा हैं ll

आँखों में उनका चेहरा और साँसों में उनकी सुगंध l
जिंदगी में वो हसीन लम्हा वहीं का वहीं ही ठहरा हैं ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

जिया लागे ना
जिया लागे ना राब्ता बनाए रखिये l
जिन्दगी के हर पल सजाए रखिये ll

जानेवाले लौटकर वापिस नहीं आते l
तस्वीरों से दिल को बहलाए रखिये ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

आराधना
लंबी आराधना के बाद पाया है सुकून l
बड़ी मुद्दतों के बाद आया है सुकून ll

बेइंतिहा इंतजार के बाद संदेशा भेजा l
खत के साथ डाकिया लाया है सुकून ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

सावन आया झूम के l

सावन आया झूम के l
बारिस लाया ढूँढ के l
आओ झूमे नाचे गाये आज l
भीगकर भीगो दे तन मन आज l
मल्हार गाया झूम के ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

प्रीत तुमसे हुईं
जब से प्रीत तुमसे हुईं तब से तमन्ना जीने की हुईं l
बरसो बाद प्रफुल्लित रहने की आदत सीने की हुईं ll

आज महफिल भरी हुई है शराब और शबाब से तो l
आरज़ू ए निगाहों को हुस्न का शबाब पीने की हुईं ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मेघा बरस
आँखों से अश्क़ों का मेघा बरस रहा हैं l
यादों के उफान से दिल छलक रहा हैं ll

गुलमोहर के दिन आये बादल गरजे कि l
झिलमिल बारिस से मन बहक रहा हैं ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

याद
याद में दिन रात गुजारता है कोई l
दिल से बोझ बड़ा उतारता है कोई ll

अपनों से ही चोट खाया हुआ आज l
अपनेआप को ख़ुद संभालता है कोई ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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मैं और मेरे अह्सास

मुखौटे से निकल कर
मुखौटे से निकल कर असली चेहरा दिखा l
भीतर कुछ और चहरे पे और है लिखा ll

असलियत छुपाकर कब तक जी सकोगे l
कैसे खामोश रहे पाते हो जरा वो सिखा ll

"सखी"
दर्शिता बाबूभाई शाह

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