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https://www.matrubharti.com - Dr Sonika Sharma
गणपति जन्म माँ ने खुद से तुमको गढ़ा, खुद के उबटन से रूप सँवारा, भक्ति-प्रेम की मूरत रचकर, धरती पर तुमको उतारा। ममता के आँचल से ढककर , द्वार पर बैठाया पहरेदार बनाकर, बोली "कोई न आए अंदर , जब तक न हो स्नान पूर्ण। तभी पिता शिव लौटे कैलाश से, देखा बालक द्वार खड़ा, मार्ग रोका उसने दृढ़ होकर, बोला "माता का है यह वचन बड़ा। शिव का क्रोध प्रचंड हुआ, त्रिशूल उठा गर्जन हुआ, धरती हिली, गगन मौन हुआ , बालक का शीश कटकर गिरा धरा पर। माँ विलाप कर उठीं देखकर, अश्रुधार बहती गई, करुण पुकार से त्रिलोक डोला, हर दिशा दु:ख में डूब गई। देव-दनुज सब आ जुटे सभी, विनती करने लगे महादेव से, माँ की पीड़ा शांति करें, जीवन लौटा दें उस बालक में। तब शिव ने करुणा दिखाई, विष्णु गरुड़ पर चढ़ तभी आए, हाथी का मस्तक संग लाए, उस बालक के धड पर रखा। श्वास पुनः अंगों में भरा, जीवन का संचार हुआ, सबने देखा अद्भुत बालक, गणनायक अवतार हुआ। शिव ने वरदान दिया सर्वप्रथम पूज्य कहलाओगे, हर शुभ कार्य में, तुम्हारा नाम ही जग गाएगा। माता ने आँचल फैलाकर, तुम्हें गले लगाया प्रेम से, तब से विघ्नहर्ता विनायक, पूजित हो जन-जन के हृदय से।
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