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"आख़िरी बीज" गाँव के एक बुज़ुर्ग किसान का नाम था हरिलाल। उसकी उम्र ढल चुकी थी, मगर मेहनत अब भी वैसी ही थी। एक दिन उसने अपने पोते मोहन से कहा — > “बेटा, यह मेरे खेत का आख़िरी बीज है। इसे अच्छे से बोना।” मोहन हँस पड़ा, > “दादाजी, अब तो ये पुराना बीज है, इससे क्या होगा? नया लेंगे तो फ़सल बेहतर होगी।” हरिलाल मुस्कुराया और बोला, > “बेटा, कभी-कभी जो पुराना लगता है, वही ज़मीन की जड़ तक जानता है।” मोहन ने फिर भी ध्यान नहीं दिया। वो बीज को एक कोने में फेंक कर चला गया। साल बीता — खेत में कई जगह नई फसलें बोई गईं, पर अजीब बात हुई — जहाँ-जहाँ नया बीज बोया गया था, वहाँ सूखा पड़ गया। सिर्फ़ उसी जगह एक छोटा पौधा उग आया था — जहाँ मोहन ने पुराना बीज फेंका था। 🌱 धीरे-धीरे वही पौधा बड़ा हुआ और पूरे खेत को हरा कर गया। गाँव वाले चकित थे। मोहन अब समझ चुका था कि > “कभी-कभी नया सबक सीखने के लिए पुरानी बातों को याद रखना ज़रूरी होता है।” उसने अपने दादाजी की कब्र के पास जाकर कहा — > “दादाजी, आपने जो बीज दिया था, वो सिर्फ़ मिट्टी में नहीं, मेरे दिल में भी उग गया है।” 🌾 --- 💭 कहानी का संदेश: हर इंसान के अंदर एक “आख़िरी बीज” होता है — एक उम्मीद, एक हिम्मत, या एक सपना। दुनिया चाहे हज़ार बार कहे कि अब कुछ नहीं हो सकता, पर अगर वो बीज ज़मीन से नहीं, दिल से बोया जाए, तो वो ज़रूर उगता है। 🌅 ---
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