future ras officer

माँ

क्या अफसाना लिखू उस माँ का जिसने खुद मुझे लिखा है, जिसने मेरे जन्म लेते ही मोहब्बत का सिर ताज रख दिया, हाँ वो कोख मेरी माँ की ही हैं जहाँ मुझे जन्नत सा सुकुन मिलता है,

कायल हम नहीं सारा जाहान करता,

वो माँ ही है जिसे सलाम हम नहीं सारा जाहान करता है,

वो दामन मेरी माँ का ही है जो सारे दुख दर्द भुला देता है,
सारे गमहों को रुला देता है,
हां मां.... तेरे आफताब की रोशनी

से ही तो तेरा ये चिराग जगमगाता है,

दर्द ना जाने उसने कितना सहा होगा,

गर्भ में जिसके मैं नौ माह रहा होगा,

पहली नजर का पहला प्यार सिर्फ उस मां ने ही किया होगा,

जब जन्म उन्होंने दिया मुझे ,

हाँ....इस गुमनाम दुनिया में उस

माँ... ने ही तो नाम दिया है मुझे

(कौशल्या भाटिया)
Happy mother's day all of mothers

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"आखिर कब तक"

ये चुप्पी बेबसी... घुटन... लिहाज

आखिर कब तक ??? मानसिक अंतर्द्वंद की स्थिति,

समाज की परिस्थिति, क्यों पहुँचती, नहीं एक चरम बिंदु पर ? वो बिंदु जहाँ लालफीताशाही न हो,अकर्मण्यता न हो रूढिवादिता न हो, विचारशून्यता न हो, संवेदनशून्यता न हो,किंतु ये परिवर्तन होगा आखिर कब तक ?

जब दावेदारियों का दौर खत्म होगा और जिम्मेदारियों का दौर शुरू होगा, परंतु समाज की मनोवृत्ति तो देखिए "आखिर मैं ही क्यों" ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ कतराते है लोग हस्तक्षेप से,

आरंभ से पूर्व परिणाम निकाल लेते है, परंतु क्या पता तुम्हारी पहली ही कोशिश सफल होकर कब आखिरी बन जाए, किंतु इस कलियुग में दुर्योधन से लड़ने कृष्ण बने कौन ?

नारें तो खूब लगा लेते हो कि "हम एक हैं" किंतु माफ किजिएगा हुजुर, जब मुसीबत बगल के घर में भी आये तब क्यों आह भरकर रुक जाते हो? क्यों उनके कंधे पर हाथ रखकर नहीं कहते कि "हम एक हैं"



आखिर कब बंद होगा सरकारी फाइलों पर भार रखना?
क्यों इस रावण को खत्म करने कोई राम सामने नहीं आता? अब लांग भी दो इस गुनाहों की दहलीज को,
और ग्रह प्रवेश कर दो एक नवयुग में,
जहां फैल जाए रोशनी नवीन विचारों के सूर्य की,
किंतु आखिर कब?

(written by kaushalya bhati)


This is my second poem if you liked my post then i will motivate thank u

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मैं एक किताब📘📘 हूं, तेरे अल्फ़ाज़ बनना चाहती हूं, नहीं चाहत कि बनू भार तेरा, चाहत है बनू तेरी जिंदगी का सार, मैं एक किताब📙📙 हूं.................... तेरी जिंदगी का किस्सा बनना चाहती हूं, तेरी तकलीफों का हिस्सा बनना चाहती हूं, मैं एक किताब हूं तेरे अल्फाज बनना चाहती हूं, चाहत है कि माध्यम बनू तेरी अभिलाषा की🤗🤗🤗, तेरी चिंताओं की, चाहत मेरी बड़ी नहीं😊😊😊, चाहत बस इतनी सी🥰🥰, कि......... तू लेखक🖊️🖊️🖊️ बन मेरा, मैं बनू तेरी साथी, तू बन तो सही मेरा सारथी, मैं एक किताब हूं, तेरे अल्फ़ाज़ बनना चाहती हूं, तु लिख🖌️🖌️ तो सही........... मैं तेरी कहानी का किस्सा बनना चाहती हूं, तेरी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहती हूं, मैं एक किताब हूं............................ (कौशल्या भाटिया) 16 year old,

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