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Krunalkumar Pravinbhai

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@krunalkumarpravinbhai824873


love Letter

कविता: "माँ कहती थी"

मिट्टी से सने हाथों में, जब किताबें थमा दी थीं,
दुनिया हँसी थी मुझ पर, पर माँ हँस कर चल दी थी।

फटी कमीज़, खाली जेबें, ना कोई आसरा था,
पर माँ कहती थी बेटा, तुझमें ही उजाला था।u

भूखे पेट कई रातें बीतीं, आँखें कभी ना रोईं,
सपनों की जो जोत जली थी, बस वही चुपचाप बोई।

लालटेन की लौ के नीचे, सपनों को मैंने पाला,
माँ की एक दुआ ही थी जो, हर दर्द पे भारी डाला।

आज भी जब मंज़िल मिलती है, भीड़ तालियाँ बजाती है,
पर दिल वहीं लौट जाता है — जहाँ माँ चुपके से मुस्काती है।
by krunal star

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