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Agastya Moga

Agastya Moga

@kumarjonikumar1234gmail.com090353


एक ही तो थे असरानी साहब...

मैं उसको ढूँढने निकला हूँ
जो मुझमें लापता है,
बाहर निकलने से ना
जाने क्यों कांपता है।
बैठा है कहीं मन के
भीतर वो डर के,
आवाज को अपनी न जाने
क्यों खामोशी में भर के।
पता नहीं क्यों वो अपने
आप में गुम-सा रहता है
सुनता तो सबकी है पर
अपनी एक न कहता है।

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