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prema

prema

@prema7493
(3)

वो अब धीरे बोलता है,

धीरे चलता है,

धीरे सुनता है,

धीरे से देखता है वो सब,

जो उसकी आँखों के सामने होता आया है कई शतकों से !

धीरे धीरे करता है अब हर काम,

काम, जो पहले भी किया करता था,

अब वो तेज़ी नही, आवाज़ में खारापन और आक्रोश नही,

लेकिन झुकता नही, पिघलता नही, घुटने टेकता नही,

उसने सीख लिया है अब भेड़ियों के झुण्ड में रह कर

सरदार के दांत खट्टे करना,

वो एक आम आदमी है!

@ Prema

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कुछ रिश्तों का
नाम नही होता.
उनको नाम
दिया भी नही जा सकता
गुमनामी में नही
बस नामी में ,
उन्हें रहना पसंद नही होता है।
वो बहते पानी ,उड़ती हवा और
मीठी मुस्कान लिये हमेशा साथ बने रहने का
एहसास याद दिलाते है ।

-prema

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दरमियान
वो बैचनी और घबराहट में
व्हाट्सएप की चैटिंग,
कभी कभार
वॉइस कॉल की आवाज़
बन जाया करती थी।
तन्हाई में
बन्द कमरे की अतिथि,
गुप अंधेरे में पैरों
की पद चाप मिटाती थकान,
अवसाद में सुनाई गई उसकी
कोई कहानी की गवाह या श्रोता
बनकर बिस्तर पर लिपट सो जाना
उसकी आदतों में एक था।
पानी की आधी बोतल, चाय का झूठा कप,
बिगड़ा सा बिस्तर,थके पैरों की राहत,
धीमी सी आवाज़ से कान में गूँजती
उसकी कोई फरमाइश
पर जी-हज़ूरी बन जाना , जिससे अभी कोई मुकम्बल
रिश्ता क़ायम नही हो पाया था उसका।
वो डरी डरी रहती थी कुछ बोलने को
और वो डरा डरा रहता था कुछ ऐसा न सुनने को।
दोनो इस बात को समझने लगे थे।
इसलिए अब वो ऐसे ही जीने लगे थे।

-prema

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तुम्हारा प्यार
गीली रेत पर लिखा नाम
लहर के एक झोंकें ने
मिटा दिया सब ,
साथ ही बह गए
प्रेम पत्र और डायरी के संकड़ो पन्ने
जो सबुत थे तुम्हारे प्यार के।
सागर के किनारे उठती
ऊँची ऊँची लहरों के
शोर में गुम हो गए तुम्हारे
वो प्यारे अल्फ़ाज़
जो कभी हमारे प्यार के साक्षी थे
चाँद- तारे भी अब नही देते
गवाही तुम्हारे प्यार की।
सुकून देने वाली हवाओं ने
अपना रुख बदल लिया है।
सुबह होते ही भेद तुम्हारे
सब खुल जाने हैं।
सूर्य के तेज में सब छिप जाने हैं।
बताओं तुम फिर कैसे साबित करोगें
अपनी मोहब्बत।
हम फिर से बिछड़ जाने वाले हैं।

-prema

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तर्पण पर तुम्हारी स्मृति शेष
***
तुम अब पास नही
शायद साथ रहते हो हर पल
तुम्हें देखे सालों बीत गए
तुम सी सूरत वाला 
अभी तक कोई दिखा नही
तुमने प्यारी सी सूरत पाई थी
हाँ कभी कभी नज़र
दीवार पर टँगी तुम्हारी तस्वीर 
पर चली जाती है
सूखे फूलों की
माला के बीच तुम्हें हमेशा
एक सी हँसी हँसते हुए देखती हूँ।
तीज़ -त्योहार,
तुम्हारे पसंद के पकवान
खीर पूरी
अपने तर्पण पर देख
तुम खुश होते होंगें।
कई मिलें तुम्हारे नाम वाले
जो तुम से एक दम अलग ही होंगे
क्योंकि तुम अनोखे थे
तुम्हारा नाम बादलों पर
कभी कभी लिखा दिखता है
जो अचानक हवा के झोंके से
मिट जाया करता है।
कितना पसंद था तुम्हें सोना
देख तर्पण तुम्हारा
याद आता है वो रूठ कर सो जाना
अब कई सालों हो गए
तुम्हे रूठे हुए
ये कौन सी नींद है तुम्हारी
जो कभी खुलती ही नही
इतना भी कोई भला सोता है।
तारों में चमकती तुम्हारी हँसी
चाँद में चमकता तुम्हारा चेहरा
बहुत सालों तक पुकारा तुम्हें
लेकिन अब लगता है
तुम कभी सुन भी सकोगे हमारी आवाज़
शायद तुम्हें वहीं अच्छा लगने लगा है।
यही मनोकामना है कि
तुम जहाँ रहो वहाँ
खुश रहो।

-prema

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अबकी बार सावन में आना,
गीली घास पर बैठेंगे दोंनो साथ ।
सुनेंगे कोयल की वो मीठी आवाज़ ,
जिसे सुनकर तुम रोमांचित हो उठते हो मुझे सुनने को।
गीली हवा में मिट्टी की सुंगन्ध,
तुम्हें मेरे स्पर्श को याद दिलाती होगी।
फूलों की खुशबू तुम कहाँ भूल पाते होंगे,
जिससे सदा सुगन्धित रहते थे केश मेरे।
गर्म चाय की पियाली वाले हाथों से,
वो छू लेना मेरे रुख़सरों को
तुम्हें बेचैन तो करता होगा मुझ से मिलने को।
अबकी बार सावन में आना ,
बैठेंगें दोनो साथ,
दरमियान सारे विद्वेष, सन्देह मिट जायें,
और हम फिर से हो जाएं एक।
*******प्रेमा--------

-prema

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चाँद ने कब
किससे
पूरी मोहब्बत की है।
चाँदनी उसकी,
आसमान उसका ,
तारों की चमक उसकी,
हमने तो पलभर देखने की
क़ीमत भी सारी रात
जाग कर अदा की है।

-prema

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नींद तुम
आती नही पास मेरे,
बैचेनी में सुकून देने।
तुम भी,
खूब बदला लेती हो
उसका जो
वैवक़्त कभी
मैं सो जाया करती थी।

-prema

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गुस्सा
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बेरोजगारी के आलम
और महामारी काल में
अगर कोई
पूछ लें आप कैसे हो
तो गुस्सा आ जाता है।
कोई अनजान अगर
प्रवेश करना चाहे
मेरे अतीत में
तो गुस्सा आ जाता है।
बिना जाने कोई
मेरे भविष्य का
कर दे निर्णय
तो गुस्सा आ जाता है।
बुद्धिजीवियों की तंग और सँकरी
गलियों से निकलते विचारों का लेखा जोखा
अगर मेरे प्रश्न का उत्तर बन जाये तो
गुस्सा आ जाता है।
कोई अवसरवादी बूढ़ा गिद्ध बुद्धजीवी
अगर मेरे भाग्य और भविष्य पर
अफ़सोस ज़ाहिर करें
तो गुस्सा आ जाता है।
सड़क पर तेज हॉर्न बजाती
आती जाती हज़ारों गाड़ियों,
टोलियां में खेलते बच्चों
का शोर,
एकांत में बैठा
सारंगी बजाता
कोई बूढ़ा,
और खुल जाए अवसाद तनावग्रस्त
में अधखुली पलकें,
तो गुस्सा आ जाता है।
अपने हिस्से का थोड़ा सा स्पेस,
थोड़ी सी स्वच्छ हवा,
थोड़े से स्वंत्रत विचार,
बस यही तो चाह है
मैंने हमेशा से ।
###प्रेमा ##

-prema

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खूबसूरत लगने लगता है
इश्क़ में पड़ा हुआ आदमी,
हँसते हुए,
गाते हुए
रोते हुए,
संघर्ष करते हुए
क्योंकि उसके अंदर का
वो आदमी मर जाता हैं
जो
ईर्ष्या ,
द्वेष,
हिंसा से बना था।

-prema

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