Quotes by मधु सोसि गुप्ता in Bitesapp read free

मधु सोसि गुप्ता

मधु सोसि गुप्ता

@pzqotozp5263.mb
(14)

पूरी बीत गई ज़िंदगी
अधर में रही
आधी ।।
आधी ,
आँधियों के हवाले !!

#आधा

भूत से डर लगता है
गले चिपट कर गला घोटता है
वक़्त वर्तमान का ।
#भूत

सामान निहारती हूँ
तो ज़र्रा ज़र्रा बोलने लगता है
कान पर हाथ धर आवाज़ों पर रोक लगा
निर्जीव सामान पर अपना बोझ ढो रहीं हूँ ।
#सामान

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सबसे क़ीमती वक़्त है
बाक़ी सब सस्ता
क्षण क्षण व्यय करो
जाता फिर न आयेगा लाख तको तुम रास्ता ।
#कीमती

एक बँगला ,
आज की भाषा में फ़्लैट मिले न्यारा ।
मिला ,
सजा के बैठे थे घर अपना
नये पर्दे , पेंट नया , पोलिश फ़र्निचर पर
कोना कोना सजा
और जैसे ही पूरी हुई सजावट
लक गया लौक आउट
मुरझाए सारे अरमान
किसे जाये दिखाने अपने नये घर की सजावट ?
#सजावटी

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आगे अब क्या होगा ?
होगा तो कैसा होगा ?
प्रश्न चिन्ह है विकराल ????
#आगे

आगे अब क्या होगा ?
होगा तो कैसा होगा ?
प्रश्न चिन्ह है विकराल ????
#आगे

ज़रूरतमंद कि क्या हैं ज़रूरतें
किसी को चाहिए महल
किसी को दौलत के बिना नींद नहीं आती
कोई ख़ाली मटकी में दाने तलाशता है
तो किसी को ज़रूरत मोटी रक़म पास बुक में ।
#ज़रूरतमंद

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कहानी है बड़ी पुरानी एक पेड़ पर दो दोस्त रहते थे एक चिड़िया जो घोंसले बनाने में पारंगत मानी जाती है , उसकी प्रजाति है बया , और एक अलमस्त बंदर , दोनों के बीच बरसों पुरानी साथ था दोनों डाल डाल पर खेलते और चहकते , सारे तीज त्योहार साथ -साथ मनाते ।
एक साल आकाश पर गहरे बादल छाये
बया उड़ कर जा पहुँची बादल के पास और उससे बोली , “ भयया बादल इस बार तुम्हारा रूप कुरूप क्यों है ? निकट खड़ी थी बिजली गिरने को तैयार बोली कड़क कर , जल्दी भाग अपने को कर सुरक्षित क्योंकि इस बार प्रलय होगी , तू करले बचने की तैयारी ।“लदड - फदड , बया नीचे की ओर उड़ी और अपने वृक्ष पर पहुँच कर दम लिया , बादल बिजली की चेतावनी-
डरावनी बात याद कर झटपट लगी लाने , तिनके , रूई के टुकड़े , सूखे पत्ते , लगी तन मन से बनाने अपना घरौंदा , अपने मित्र को याद कर रही थी , पर उसे ढूँढने की फ़ुरसत उसे कहॉ थी , तभी खेलता कूदता आया बंदर , देख उसे व्यस्त बोला “ “चल आजा खेले पकड़म - पकड़ाई , तूने ये क्या धूनी रचाई ?”
“ मित्र आज नहीं खेलने का समय रहा शेष , मिल कर आई हूँ बादल बिजली से उन्होंने दिया हैं संदेश प्रलय है आने वाली , जीव - जनतु , मनुष्य सब कर लो तौबा , आज नहीं खेलना कोई खेल , और हॉ तू भी बना लें अपने लिये एक शरण-स्थल , बना लें कोई घर या ढूँढ ले कोई सुरक्षित ठौर “
बंदर अपनी मस्ती में डाल - डाल झूल रहा था ख़ूब कच्चे पकके अमरूद तोड़ - तोड़ खा रहा था । बया एक बार फिर उसे आगाह किया बादल की चेतावनी बताई , पर बंदर के कान पर जूँ नही रेकी और वो अलमस्त खेलता रहा बयां का घर बन गया था । वो थक हार कर अपने घोंसले में विश्राम करने लगी , वर्षा की गड़गड़ाहट आनी शुरु हो गई । घोंसले में बैठे -बैठे बया ने कहा ,” भयया अब तो चेत जायो , सुरक्षित रहने का जतन करो “ बस फिर क्या था , जैसा हम सुनते आये हैं , बंदर को आया ग़ुस्सा और उसने उस बिचारी बया का घोंसला तोड़ डाला ।
कहानी बड़ी पुरानी पर प्रश्न है और जिज्ञासा भी । बंदर ने ऐसा क्यों किया , अभिमान अहंकार वंश ,शारीरिक बल अधिक होने पर या बुद्धि हीनता वंश ।
आप बताये ?
जो भी हो बया को अपना घर टूटने से अधिक दुख पहुँचा अपनी पुरानी दोस्ती के टूटने का ,। चिड़िया थी , शायद दोबारा घोंसला बना लिया होगा। , कामना तो हम ये ही करते है ।
लौकडाउन में हुया जब अपने बहुत निकटतम को नेक सलाह दी , प्रणाम स्वरूप यह कथा याद हो आई ।

Sent from my iPhone घोंसला

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