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तुम्हें जीवन में एक औरत बिल्कुल नमक की मात्रा में चाहिए ना कम, ना ज़्यादा। ज़्यादा हो जाए - तो दिमाग़ खराब हो जाता हैं। कम हो - तो कोई मज़ा नहीं आता है। असल में- तुम्हें नमक हो या स्त्री एक 'मात्रा' में चाहिए, जो तुम्हारे स्वादानुसार ढल जाए। जो तुम्हारा स्वाद बनाए रखे तुमसे प्रेम करे और प्रेम में इतनी पागल हो जाए कि उसे तुम्हारे सिवा कुछ दिखे ही नहीं। जो तुम्हें सराहे, तुम पर फ़क्र करे, तुम्हारी हर ग़लती में अपनी ग़लती ढूंढ़ निकाले। तुम कुछ भी कहो या करो वो चुप रहे! बस तुमसे प्रेम करती रहे। तुम उसे बताओ कि दुनिया कैसी है, और वो -बस तुम्हारी दुनिया को सुंदर बना दे। लेकिन उसके पास अपनी कोई दुनिया न हो। वो वही सवाल पूछे जिनका जवाब देकर तुम्हें लगे कि तुम बहुत ज्ञानी हो। वो कभी ऐसे सवाल न पूछे जो तुम्हें आईना दिखा दें। तुम हँसो - तो वो मुस्काए, तुम रोओ - तो वो टूट जाए, लेकिन उसके अपने कोई भाव न हों। तुम्हें प्रेम हो - या जीवन, एक स्त्री नहीं, कई स्त्रियाँ चाहिए -जो तुमसे प्रेम करें, तुम्हारे रूठने पर मनाएँ, और तुम्हारे 'होने' को जाने। लेकिन ज़रा सोचो कितना बड़ा अपराध है ना -किसी के अस्तित्व पर ख़ुद को सराहना सिर्फ़ इसलिए कि हर बार तुम्हें सही साबित होना है।
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