Quotes by Ram Pal Malhotra in Bitesapp read free

Ram Pal Malhotra

Ram Pal Malhotra

@rpmalhotra899gmail.com182045


कई रंग झेले हैं जमाने के हमने

कभी इसने रुलाया, कभी है हंसाया,

कभी उठाया तो कभी है गिराया

कहीं बड़ों की डांट डपट

कभी गरीबी से कशमकश

कभी जरूरतों ने घेरा

कभी ख्वाईशों ने भरमाया

जिम्मेदारियों के रेले ने

सब शौक कुचले

हां बच्चों की मुस्कुराहट ने

भी था कभी गुदगुदाया

जीवन की नैया

जब भी लड़खड़ाई

पतवार इसका हमने

मुकद्दर को थमाया

तकदीर ने भी थे फिर

अजब रंग दिखाए

जब रोए तो हंसाया

गिरे तो उठाया

फूलों की तरह पाला

बस आगे बढ़ाया

जमाना और किस्मत

सभी के हैं संगी

कभी मुकद्दर पीठ मोड़े

तो जमाना उठाये और कभी

जमाने के ठुकराए को

तकदीर का सहारा

जमाना और किस्मत जिसका

एक साथ हाथ छोड़ें

उस बदनसीब का

बस हिम्मत ही सहारा

पर जो जमाने को

अपनी मुठ्ठी में हो रखता

वही होता मुकद्दर का सिकन्दर न्यारा



आर पी मल्होत्रा

Read More

शाम के धुंधलके में
दूर क्षितिज के आखरी छोर पर
ढलते सूरज की लालिमा का
कुछ यूँ नजर आना
जैसे सरपट दौड़ते घोड़ों से
उठने वाले गुबार से
किसी अंगार का हो
ढक लिया जाना।


रोज उगना इस सूरज का
उषा की मोहक लालिमा लिए हुए
ऐसे जैसे कोई अबोध बच्चा
हो आकाश चूमने को आतुर
और फिर अंतरिक्ष में ठीक
शिखर पर ऐसा दहकना
कि कोई जुर्रत न कर पाए
देखने की आंख उठाकर,


और फिर ढल जाना,
थक कर उस लाल अंगार का,
गुम हो जाना दूर कहीं दूर
यहाँ गगन धरा को चूमे,
बिल्कुल वैसे ही जैसे
विधि निर्धारित जीवन का
पहिया अविरल घूमे,


भास्कर की तरह मानव भी
चमकता है दहकता है अपनी
शक्तियों के जलाल से,
और कभी ढक भी लिया जाता है
दुखों गमों के बादलों के जाल से,


वक्त ढलने के
तय है जैसे दिनकर का
निस्तेज और क्षीण हो जाना
ठीक वैसे ही तय है
हर जीव का ढलती उम्र में
शक्ति विहीन हो जाना
फिर जो उगा है वह
अस्त तो हर कोई होगा
है यह विधि का विधान
किसी को मिले चिता
तो कोई पहुंचे कब्रिस्तान,
और फिर वापस कौन योनि
कौन जगह कौन गांव
न कोई जाने न किसी को ज्ञान

बस ऐसा ही है मानव जीवन
आदित्य की मानिंद चढ़ना
बढ़ना ढलना और डूब जाना
पर इस कालचक्र का
कौन रचयिता कौन है चालक
किसी ने अब तक न जाना।
किसी ने अब तक न जाना।


आर पी मल्होत्रा

Read More

कभी दमकता था
चेहरा हमारा
जवानी के दिन थे
गजब था नजारा
मस्ती के आलम में
झूमते थे हर दम
फोटो थी ब्लैक एंड व्हाइट
चेहरा था भोला भाला



कमाल का दौर आया
दौर ए बुढ़ापा
चेहरे पर वक्त ने
मोहरें लगा दीं
रंगीन कैमरों ने
की बहुत कोशिश
लगता है मगर, है मात खाई
कुदरत के आगे रहा
किसका बोलबाला?


हर एक अंग ने
फिर साथ छोड़ा बारी बारी
आंखें फिर घुटने और
फिर दांतों ने गिरने की
कर ली तयारी
मिलता था बाजार में हर अंग, लेकिन
अस्ल नकल में था फर्क भारी
कहाँ मानव कहाँ कुदरत
पर संग्राम तो है यूगों से जारी


दिल जिगर गुर्दे जो सालों चले थे
वो भी करने लगे तंग बारी बारी
चारागर सारे लगे कोशिशों में
दवाओं दुआओं का
था प्रयास जारी
पर कुदरत के आगे
सब बेअसर थे
वक्त आखरी फिर
न चला जोर कोई
धरी की धरी रह गई
सब की सब तयारी


आर पी मल्होत्रा

Read More

तलाश

कहां हो तुम
कौन जाने कहाँ हो तुम

ऐसा तो तय नहीं था
कुछ कहना न सुनना

और हो जाना गुम
कहाँ हो तुम

किस से पुछूं कौन बताए
कौन सफर पे निकले तुम

तय हुआ था मिल कर चलना
फिर क्यों अकेले निकले तुम

जीवन साथी थे हम दोनों
कसम थी साथ निभाने की

क्यों राह में छोड़ अकेला
अपनी राह पे निकले तुम

यादें तेरी लिपट के मुझ से
मुझको बहुत रुलाती हैं

कभी रात को जगा जगाकर
तुझसे मुझे मिलाती हैं

कब तक होगा छुप छुपकर मिलना
सामने क्यों नहीं आती तुम

कहाँ हो तुम कहाँ हो तुम
😭😭😭😭😭

Read More