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Rupesh

Rupesh

@rupesh336601


तेरी सोच में खोया रहता हूँ
अक्सर जब तू सच में मिलती है
तो सोचता हूँ — ये हकीकत है या मेरा सपना
अगर हकीकत भी है
तो हर एक पल कुछ सोच
अक्सर जैसे शब्दों में गवाँ देता हूँ।
तेरी सोच फिर से मुझे बाँध लेती है
और मैं फिर खुद को तुझमें ही पा लेता हूँ।

-रूपेश-

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घोर कलियुग आ चुका
इंसान अपने अंदर के इंसान को मार चुका
हर चीज़ बस अपने लिए पाना चाहता है
अपने अंदर के हबान को अब दूसरों से मिलना चाहता है

दूसरों को उनके रास्ते से हटाना चाहता है
हाथ मिलाता है और पीठ पीछे कुछ और बाताता है
घोर कलियुग आ चुका

इंसान अब इंसान को ही खा चुका
उसके भीतर ईर्ष्या की गर्मी है
सब चीज़ अपने लिए करनी है
सब चीज़ अपने लिए करते करते अपनी इंसानियत को मरते हुए
ये युग आ गया,ईर्ष्या की गर्मी ज़्यादा है,
घोर कलियुग आ गया
-रूपेश-

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