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भावों की ये, अभिव्यक्ति शब्दों के आधार है मेरी कलम ही, मेरे अस्तित्व की पहचान है.
रामायण भाग - 32 **************** लक्ष्मण की चेतना (दोहा - छंद) ************************* क्षमा मांग हनुमान से, पछताये प्रभु भक्त। जाओ लेकर तुम बुटी, निकले ना ये वक्त।। विधा भरत से ले चले, महा वीर हनुमान। संजीवनी बुटी से बची , लक्ष्मण जी की जान।। वानर सेना खुश हुई, बोले जय श्री राम। युद्ध हुआ आरंभ फिर, लेकर प्रभु का नाम।। Uma Vaishnav मौलिक और स्वरचित
रामायण भाग - 31 *************** भरत से भेंट (दोहा - छंद) ********************* सारे पौधे एक से, फर्क़ नहीं है एक। किसे कहे संजीवनी, पौधे यहां अनेक।। उठा लिया पर्वत तभी, लेकर प्रभु का नाम। हनुमत के होते हुए , कैसे ना हो काम।। साथ पवन के चल पड़े, पवन पुत्र हनुमान। राम नाम की धुन लिए, उड़ चले आसमान।। देखा हनु को भरत ने, चला दिया तब बाण। राम नाम प्रभु का सुना,बचा लिया तब प्राण।। समाचार सारा सुना , हुए भरत बैचैन। शोक करके बैठ गए , रोये दोनों नैन।। Uma Vaishnav मौलिक और स्वरचित
रामायण भाग - 30 *************** संजीवनी (दोहा - छंद) ****************** सब सेना व्याकुल हुई, सारे करते शोक। अश्रु धारा बहती चली, कौन सका है रोक।। हनुमत लाए वैद्य को, उठा के गृह समेत। वैद्य कहे संजीवनी, लाए इनकी चेत।। राम कहे हनुमान ही, करे राम के काज। ले आओ संजीवनी, तुम हो हनु जांबाज।। राम चरण छू कर चले, लेकर प्रभु का नाम। पवन पुत्र करने चले, अपने प्रभु का काम।। Uma Vaishnav मौलिक और स्वरचित
रामायण भाग - 29 **************** योद्धा आरम्भ (दोहा - छंद) ********************** युद्ध हुआ आरम्भ जब , मच गया कोहराम। वानर सेना चल पडी, बोले जय श्री राम।। वानर सेना साथ में, लेकर शिव का नाम । धनुष बाण लेकर चले, संग में लखन राम।। मेघनाथ ने शक्ति का , करके तब उपयोग। लक्ष्मण को घायल किया, चिंतित थे सब लोग।। Uma Vaishnav मौलिक और स्वरचित
#ख्वाब कुछ ख़्वाब बस दिल में रह गए, आंसू बन कर जो आँखों से बह गए, मिली थी हमें भी तारों से रोशनी, हम पागल बन चांद को तक़ते रह गए। Uma vaishnav ©
रामायण भाग - 28 **************** शांति - दूत (दोहा - छंद) **********'********* शांति दूत अंगद बने , रावन से की बात। सभा बीच में पग जमा, देदी सब को मात।। निश्चित तेरी हार हैं , रावन तू ये जान। क्षमा राम से माँग ले ,और बढ़ेगा मान।। बाहु शक्ति का था सदा ,रावन को अभिमान। कहे युद्ध करना मुझे, चाहे जाये जान।। Uma Vaishnav मौलिक और स्वरचित
रामायण भाग - 26 **************** लंका से वापसी (दोहा - छंद) **********************' समाचार ले मात का, पहुंचे प्रभु के पास। राम भक्त हनुमान जी, बने राम के खास।। चूड़ामणि दी राम को , सुनते हैं संदेश। ले जाओ अब राम जी, मुझको अपने देश।। समाचार सुन राम जी , हुए बड़े बैचैन। मुख से कुछ बोले नहीं, जर जर बरसे नैन।। लखन धीर बंधा रहे, कहते हैं ये बात। आज्ञा दे श्री राम जी , चले आज ही रात ।। Uma Vaishnav मौलिक और स्वरचित
रामायण भाग - 25 **************'*** लंका दहन (दोहा - छंद) ******************** रावन बोला कौन तुम, आए हो किस काम। वेश लगे कपि सा मुझे, बोलो क्या है नाम।। राम काज करता सदा, राम दास हूँ जान। सीता माँ को मुक्त कर , पाएगा सम्मान।। बीच सभा में कर खड़ा, जला पूंछ में आग। बोले इसको छोड़ दो, खुद जाएगा भाग।। आग लगी जब पूंछ में, हनु ने किया धमाल। पूंछ घुमाई जोर से, हनु ने किया कमाल।। सारी लंका तब जला, लौट गए हनुमान। राम भक्त ने रख लिया , हरि इच्छा का मान।। Uma vaishnav मौलिक और स्वरचित
रामायण भाग - 23 ***************** सीता माँ से विदाई (दोहा - छंद) ************************** चूड़ामणि दी मात ने, फिर हनुमत के हाथ। कहना प्रभु को ले चलो, आकर अपने साथ।। मीठे मीठे फल लगे, गला गया है सूख । आज्ञा हो तो मात की , शांत करूँ ये भूख।। सावधान रहना जरा, मत करना तुम शोर । रखवाले पकड़े नहीं , पहरा है सब ओर।। याद रखूँगा बात ये , नहीं करूंगा शोर। रखवाले बैठे जहां , जाऊँ ना उस ओर।। Uma Vaishnav मौलिक और स्वरचित
रामायण भाग - 22 *************** सीता माँ से वार्ता (दोहा - छंद) **************************** नमन किया तब मात को, आए माँ के पास। हनुमत मेरा नाम है, मैं हूँ प्रभु का दास।। राम नाम की मुद्रिका, दी माता के हाथ। राम नाम अंकित मिला,छवि भी देखी साथ।। देख निशानी राम की, माता हुई अधीर। कब आयेगे राम जी, बतलाओ बलवीर।। मैया मैं तो दास हूँ, करूँ राम का काज। आज्ञा दो तो ले चलूँ, माता तुमको आज।। सूर वीर हैं राम जी, करते सब के काज। ले आएगे प्रभु मुझे, रखने कुल की लाज।। Uma Vaishnav मौलिक और स्वरचित
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