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vikram kori

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@vikramkori
(20)


‎नाराज़ दिल , फिर से बही मंजिल

‎पहला पड़ाव था, वो सपनों का सफर,
‎ तू थी करीब, मैं था तेरा हमसफर।
‎ मैंने कहा था, "उस राह पर ना चल,
‎अंधेरे हैं वहाँ, तेरा होगा बुरा हाल।"

‎पर तूने ना मानी, मेरी कोई बात,
‎परवाह ना की, हर दिन हर रात।
‎वो अजनबी साया, तुझे खींचता रहा,
‎ मेरे दिल का हर टुकड़ा, बिखरता रहा।

‎देखते ही देखते, तू दूर हो गई,
‎ मेरी हर पुकार, अनसुनी हो गई।
‎मैंने भी फिर, एक नई राह चुनी,
‎मिली इक हमदम, कहानी नई बुनी।

‎वो अजनबी संग, तेरा रिश्ता बना,
‎ मेरी दुनिया में, इक नया रंग भरा।
‎ दिन बीते, महीने ढले, साल गुजरे,
‎ हम दोनों अपनी दुनिया में सँवरते।

‎पर वक़्त की करवट, अजीब थी बड़ी,
‎ टूटी वो दुनिया, जो थी हर पल खड़ी।
‎ना वो साथ रहा, ना वो कसमें रहीं,
‎ तेरी आँखों में फिर, उदासी वही।

‎और इधर भी, कहानी कुछ ऐसी हुई,
‎ मेरी भी राहें, अकेली सी हुईं।
‎ टूट गए रिश्ते, वादे वो सारे,
‎ फिर वही दिल, जो कभी थे हमारे।

‎तब मिली वो निगाहें, जिनसे थी शिकायत,
‎अधूरी कहानियाँ, अधूरी इबादत।
‎ दोनों के दिल में, था दर्द पुराना,
‎लगा कि फिर से, मिल गया ठिकाना।

‎रूठें-मनें, फिर एक हुए हम,
‎वही पुराने रास्ते, वही पुराने गम।
‎ सीखा था सबक, तन्हाई के साथ,
‎ शायद यही थी, हमारी हर बात।

‎नाराज़ दिल, फिर से वही मंज़िल,
‎ रिश्तों की कश्ती, हुई फिर हासिल।
‎शायद प्यार वही है, जो लौट कर आए,
‎सारी गलतियाँ भूल, हमें अपनाए।


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