ये कछुआ बहुत खुश हैं, क्योंकि ये आज़ाद हो गया। परंतु इस मासूम को ये अंदाज़ा नही कि आज़ादी के नाम पर इसने खो क्या दिया हैं? ऐसी ही आज़ादी आजकल की युवा पीढ़ी को चाहिए। आज़ादी अपनी संस्कृति से, आज़ादी संस्कारों से और आज़ादी अपने बड़ो से। हमारी संस्कृति और संस्कार बोझ नहीं बल्कि हमारा सुरक्षा कवच हैं।
भरतसिंह गोहिल।
जय माताजी जय राजपुताना