तात्विक विचारधारा...
"इदं धार्यते जगत ।" प्रकृति के दोरुप हैं:-(१)परा प्रकृति (२)अपरा प्रकृति । पृथ्वी, जल,अग्नि, वायु, आकाश, मन,बुध्दि, अहंकार ये आठ प्रकार से अपरा प्रकृति हैं।ये जड़ हैं।मन या बुध्दि अपने आप कुछ नहीं कर सकते, ये परमात्मा से प्रेरित हैं। दूसरी परा प्रकृति-चेतन या जीवरुप हैं।उससे जगत का निर्माण एवं संचालन होता हैं।ईश्वर का अहंकार सृष्टि का सर्जन करता है।मनुष्य का अहंकार विनाश-विसर्जन की ओर ले जाता हैं। ईश्वर चाहता है मैं एक से अनेक बन जाऊँ ।मनुष्य चाहता हैं सिर्फ मैं ही मैं रहूँ । ये मैं-मैं की रट अहंकार हैं।