#जिज्ञासु

हर जीव में बसी जिज्ञासा ,
गाती हे बस नव निर्माण की गाथा ।

निर्दोष बचपन हे दोष विकारो से मुक्त ,
बस जाने अपने मन की परिभाषा ।

चलते जाय नन्हे पैर ,
ना पहचाने अपने, ना गैर ।

मासुम से कदम पे , रखे नज़र कृष्णा ,
बनकर साया अर्जुन का ।

Mahek Parwani

Hindi Poem by Mahek Parwani : 111411639

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