विकास...!!

मानव शरीर में तीन अंग महत्वपूर्ण और प्रमुख हैं__
मस्तिष्क, हृदय और पेट
इसमें सबसे ऊंचा और प्रथम स्थान मस्तिष्क का है,उसके बाद हृदय और पेट का, पशुओं का हृदय और पेट समानांतर रहता है परन्तु मानव का नहीं।।
     मानव शरीर में पेट का स्थान सबसे नीचे और मस्तिष्क का सबसे ऊपर होता है,पेट और मस्तिष्क समानांतर रेखा में होने के कारण पशु का पेट भरने से ही सम्पूर्ण संतुष्टि मिल जाती है किन्तु मानव को सिर्फ पेट की ही भूख नहीं होती,उसे तो और भी कुछ चाहिए।
     सम्भवतः इसीलिए मनुष्य के मस्तिष्क और हृदय ने उसके पेट पर विजय प्राप्त कर ली अर्थात् पशु अभी भी पेट को पाल रहा है और मनुष्य कितना आगे निकल गया है?मानव पेट से भूख , हृदय से भाव और मस्तिष्क से विचार का जन्म होता है ‌
        पशु पेट और हृदय समानांतर होने से उसमें भूख और भाव समान हैं किन्तु मानव जब सजग होकर खड़ा हुआ तो उसके पेट का स्थान सबसे नीचे आ गया,हृदय का उसके ऊपर और मस्तिष्क का सबसे ऊपर, परिणाम यह हुआ कि भूख पर भाव ने विजय प्राप्त कर ली,इसी विजय भाव के  ही कारण मनुष्य में सौन्दर्यानुभूति का विकास हुआ।।
       भौतिकता की उन्नति से मनुष्य में स्वार्थ,लाभ, घृणा,द्वेष आदि की वृद्धि होती है और उसमें दया, करूणा,प्रेम, सहानुभूति आदि मानवीय भावनाओं का अभाव हो जाता है ।।
      सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विकास के द्वारा ही मानव में दया, करूणा,प्रेम, सहानुभूति आदि मानवीय भावनाओं का विकास होता है और इस प्रकार सांस्कृतिक तथा अध्यात्मिक विकास मानव को सच्चे अर्थों में मानव बना देता है।
        पशु और मनुष्य की शरीर रचना तुलना करने पर ज्ञात होता है कि पशु के पेट,मन और मस्तिष्क एक सीध में हैं, किन्तु मनुष्य  के शरीर में पेट सबसे नीचे है, हृदय उससे ऊपर हैं और मस्तिष्क सबसे ऊपर है।।
       भाव यह है कि पशु भोजन,भाव -विभोरता और बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में समान रूप में व्यवहार करता है और इसके कारण उसकी स्थिति में कोई अन्तर नहीं आता किन्तु मानव जीवन में भोजनादि दैनिक आवश्यकताओं की अपेक्षा दया, करूणा,प्रेम,आदि हार्दिक भावों की श्रेष्ठता हैं और उससे अधिक श्रेष्ठ बुद्धि है।।
     संस्कृत साहित्य में पशु और मनुष्य के अंतर को निम्न रूप से कहा गया है_____

आहार निद्रा भय मैथुनम् च,
सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम्।
ज्ञानम् हि तेषामिधिकम् विशेषम्,
ज्ञानेन हीन: पशुभि: समाना:।।

उपरोक्त पंक्तियों में मानव शरीर को मानव समाज का प्रतीक कहा गया है।।

saroj verma....
        

Hindi Blog by Saroj Verma : 111473565
shekhar kharadi Idriya 4 years ago

अति सुंदर वर्णन.. चाहे मनुष्य हो या प्राणी-पौधे विकास क्रमिक वृद्धि कि प्रक्रिया है जो निरंतर चलती रहेंगी तभी तो सृष्टि का समतुल बना रहेगा ।।

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