फक़त कुछ पलों की,
कहानी हैं,
मिट्टी की देह,
मिट्टी में मिल जानी हैं.....
सही वक़्त पर,
इंसाफ होगा,
जिस्म यें फ़ना हो,
सुपुर्द -ए -खाक, होंगा.....
न जीता हैं,
कोई मौत से यहाँ,
जीत सको प्यार से,
तो शायद 'नाम' होगा.....
झूठे दर्पण,
झूठी शान,
अंत मांगे, बस,
दो गज़ मकान....
मौत की उस घड़ी में,
जब न कोई पास होंगा,
तुझे तेरे किये ज़ुल्मों का,
अहसास होंगा......
ऐसे ही गुज़र रही है,
उम्र यारों,
मिट्टी की होंने के पहलें,
"मिट्टी" थोड़ी संवार लो........
#मिट्टीकी