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बुद्धिविवेक प्रतिपल उसकी हो रही न्यून,
दान-दया से परे लोभ-लालच में जकड़।
मानव मन बड़ा ही अख्ज़ आता नज़र,
सिर्फ पाने की चाहत ही रखी है जकड़ ।
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सड़ी गली वस्तुओं से ही मा़त्र, नहीं आती है यहाँ चरायंध।
गर दूषित हो सोच विचार, तो इत्र से भी नहीं जाती दुर्गंध।
* अर्चना सिंह जया