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हां,कवि हूं क्षण-क्षण में तलाशता हूं, कविता टेढ़े-मेढ़े शब्द टटोलकर , छैनी, हथोड़ी से ठिठ पाषाण शब्द तोड़कर , जीर्णोद्धार करता हूं मन-मस्तिष्क की गहराई से शब्द-शब्द गढ़ता हूं प्रत्येक्ष-परोक्ष रूप से सत्य-असत्य देखता हूं भावनाओं का रस पीकर , कल्पनाओं के शहर दौड़ता हूं लय, गति, अवधि में चलता हूं ठाट-बाट से शृंगार पहनाकर , पाठकों के समक्ष दर्शाता हूं अद्भुत, अप्रतिम काव्य रचना । -© शेखर खराड़ी तिथि-२८/३/२०२२, मार्च
विशेष मंतव्य व्यक्त करने और प्रोत्साहित करने के लिए हृदय तल से आभार प्रेमिला जी...💐
बहुत सुंदर रचना 👌👌आपका काव्य अनेक संभावनाओं से भरपूर।
दिल से धन्यवाद 💐
सुन्दर।
स्नेह पूर्वक धन्यवाद प्रिये..🌹
Waal lajvab 👌
दिल से बहुत धन्यवाद 💐
wahh...✍🏻👌🏻👌🏻👌🏻
विशेष टिप्पणी करने के लिए हृदय तल से आभार प्रणव जी 💐🙏
गहन,चिंतन शील अभिव्यक्ति 👌💐
बहोत ही बढ़िया..👌👌
Good pietry and good picture
हृदय तल से आभार 💐
अति सुन्दर
क्या कहने , बहुत सुंदर
दिल से बहुत धन्यवाद मित्रवत 💐
Thank you so much 💐
ખૂબ ખૂબ આભાર કાજલ બેન 💐💐
Superb 👌🏼
Jordar .......👌👌👌
Bahut badiya 👌👌
સાવ સાચું 👌🏻👍🏼
Awesome
વાહ વાહ વાહ ભાઈ, બિલકુલ 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
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