मोम हूं मगर युँ पिधलती नहीं
इस जमानेके साँचे में ढलती नहीं
जीवन कस्ती की परवा मैं करती नहीं
मौजों के इशारोपे मैं चलती नहीं
जो हकीकत है उसको मैं बया करती हूं
खौफ से आईना मैं बदलती नहीं
चाहो तो परख लो मुझे कभी भी तूम
वक्त के साथ मैं बदलती नहीं
फूल चढे देव पें,अर्थी पें,या गुथे सैहरे में
पर फूल कभी अपनी खुश्बु बदलता नहीं
आन के लीऐ समर्पित कर दु यह तन
पर जयचंदो के सायेमें मैं पलती नहीं
प्रेम सबसे मैं निःस्वार्थ करू
स्वार्थ के दीप मैं जलाती नहीं

Hindi Poem by Daxa Bhati : 111814711

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now